Friday, December 19, 2014

माता-पिता पर एक बेहतरीन रचना - द्वारा - परम पूज्य राष्ट्र संत श्री मोरारी बापू जी



********
जिसकी कोख से जन्म होता : वह माँ
जिसके पेट पर खेलने में मजा आता:वह पिता

जो धारण करती : वह माँ
जो सिंचन करता : वह पिता !

जो गोद में लेकर सहलाती : वह माँ
जो हाथों में धरकर ऊंचा उठाता:वह पिता!

जो उंगली पकड़कर चलना सिखाती:वह माँ
जो कंधों पर लेकर दौड़ना सिखाता:वह पिता

जो डूब-डूब गगरी करती: वह माँ
जो हर-हर गंगे करता : वह पिता !

जो आँचल तले दबाती: वह माँ
जो पिंजड़े से बाहर निकालता :वह पिता!

जो व्याकुल होती : वह माँ
जो संयम सिखाता : वह पिता !

जो आशीर्वचन जैसी: वह माँ
जो नमस्कार तुल्य : वह पिता !

जिसके सिवा जीवन नहीं : वह माँ
जिसके सिवा भविष्य नहीं: वह पिता !!
************
प्रेषक - हितेश जोशी जी

Friday, November 7, 2014

क्या है सफलता - एक चर्चा

लेखिका - नीना दयाल

(नीना दयाल एक लाइसेंस्ड लाइफ़ सक्सेस सलाहकार, बिजनेस और पर्सनल कोच, कैपेबिलिटी बिल्डिंग एक्सपर्ट, मेंटल रेसिलिएंस* स्पेशलिस्ट, मैनेजमेंट कन्सल्टेंट और लेखिका हैं। आप सीक्रेट पुस्तक व फिल्म में दिखाये गये और मानवीय क्षमता को बढ़ाने में माहिर श्री बॉब प्रॉक्टर से प्रशिक्षित हैं।



आप लम्बे समय से बहुत सी राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों के लिये प्रशिक्षण दे रही हैं।

नीना जी की कम्पनी सक्सेस सिनर्जी इंटरप्राइजेज कॉर्पोरेट और पब्लिक श्रोताओं के लिये हर वर्ष बहुत से इवेंट्स करती है।

नीना जी के डी परिवार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और के डी परिवार में अपने ज्ञान व अनुभव को साधारण जन के साथ शेयर कर रही हैं। इस लेख को भेजने के लिए के डी परिवार नीना जी का हार्दिक धन्यवाद करता है।

इस लेख के माध्यम से नीना जी आपको आमंत्रित कर रही हैं, सफलता के आपके मानक आदर्शों पर चर्चा करने के लिये। इस चर्चा में शामिल हों और अपनी सफलता की दिशा में ठोस कदमों के साथ आगे बढ़ें।)



क्या है सफलता - एक चर्चा

अपने मान्य आदर्शों की ओर प्रगतिशील रहना ही "सफलता" है।
अर्ल नाईटएंगल

आइये इस पर चर्चा करें -



सफलता की व्याख्याओं में ऊपर दी गई व्याख्या सबसे अधिक संतुष्टि देने वाली मानी जाती है, जो प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होती है। अर्ल ने 1959 में 17 वर्षों के अपने गहन शोध के बाद यह व्याख्या दी। पूरी दुनिया में बहुत से माहिर लोग आज भी सफलता का विवरण देते समय इस व्याख्या का उपयोग करते हैं।

साधारण तर्क यही कहता है कि किसी चीज़ के होने से पहले आपका उसको जानना जरूरी है।

इसलिये मान्य आदर्श की ओर प्रगतिशील होने से पहले आपको ये जानना जरूरी है कि "आपका मान्य आदर्श आखिर' है क्या?"

आप सभी मित्रों से निवेदन है कि कृपया इस चर्चा में भाग लें और बतायें कि आपका सफलता का मान्य आदर्श क्या है?

अनुवादक - विपिन कुमार शर्मा

Thursday, November 6, 2014

सफलता का ज्ञान





आजकल सफलता शब्द बहुत ज्यादा सुनाई देता है। संसार बहुत ज्यादा कम्पीटीटिव हो गया है।

मनुष्य जीवन में प्रतियोगिताएं छोटी उम्र में ही शुरू हो जाती हैं। मैंने कहीं पढ़ा था कि एक बच्चा जब अपने पैर का अंगूठा मुंह में लेने का प्रयास करता है, वहीं से आरम्भ होता है सारा जीवन चलने वाला उसका अंतहीन संघर्ष।

अब अगर जीवन में संघर्ष है, प्रतियोगिताएं हैं और चारों तरफ कम्पीटीशन है तो विजय यानि सफलता के प्रति मनुष्य की उत्सुकता स्वाभाविक ही है।

इसी सफलता की चाह में मनुष्य गुरु और ज्ञान की तलाश करता है।

सफलता के अनेकानेक गुरुओं का ज्ञान आज सहज ही उपलब्ध है। आज बहुत सारी पुस्तकें केवल "सफलता" विषय पर ही प्रकाशित हो रही हैं। कागज़ की पुस्तकों के अलावा ई-बुक्स और ऑडियो बुक्स के रूप में इंटरनैट पर सहज ही उपलब्ध है। इंटरनैट पर बहुत सा ज्ञान तो नि:शुल्क उपलब्ध है। जिसे आप अपने कम्प्यूटर या मोबाईल पर कुछ ही सैकेंड्स में डाउनलोड कर सकते हैं।

बुक बून एक इसी तरह की वैब साईट है। इस साईट से आप अपने काम की बहुत सी पुस्तकें बिल्कुल फ्री डाउनलोड कर सकते हैं।


सफलता के ज्ञान की पहचान कैसे करें?

सफलता का यह ज्ञान दो तरह का है। एक ज्ञान तो केवल साहित्यिक है। यह उपदेश के रूप में है जो सफलता हेतू दर्शन ज्ञान प्रदान करता है। सफलता की इच्छा रखने वाले के लिये ये ज्ञान काम का है।

लेकिन सफलता के लिये केवल साहित्यिक ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि व्यवहारिक ज्ञान की भी आवश्यकता है।

सफलता का ये व्यवहारिक ज्ञान आसानी से उपलब्ध नहीं है।

ये ज्ञान या तो किसी मेंटर से मिल सकता है या पूर्व में सफलता हासिल कर चुके किसी अनुभवी व्यक्ति से।

निश्चित ही सफलता का ये व्यवहारिक ज्ञान पुस्तकों में भी है, परन्तु ये किन पुस्तकों में हैं यह ज्ञान भी किसी मेंटर या अनुभवी व्यक्ति से ही मिल पायेगा।

अगर आप सफलता की तलाश में हैं और इसके लिये मेंटर या अनुभवी लोगों की मदद लेना चाहते हैं तो के डी परिवार में आपका स्वागत है।

के डी परिवार में बहुत से राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षक और के डी परिवार से ज्ञान हासिल कर रहे अनुभवी सफल लोग आपका मार्गदर्शन करने के लिये प्रस्तुत हैं।

चाहे आप विद्यार्थी हों या शिक्षक, चाहे नौकरीपेशा हों या व्यवसायी, चाहे गृहणी हों या कामकाजी महिला, चाहे विवाहित हों या अविवाहित; के डी परिवार में आपको अपनी सफलता के लिये व्यवहारिक ज्ञान व मार्गदर्शन ज़रूर मिलेगा।

के डी परिवार से सम्पर्क करने के लिये अभी kdparivar@gmail.com पर अभी मेल भेजें।

Sunday, October 19, 2014

के डी परिवार का "सफलता का ज्ञान-अनुसन्धान यज्ञ"


आओ मिलकर सफलता के व्यावहारिक कोर्स की रचना करें।

आप सब आमंत्रित हैं के डी परिवार के अभूतपूर्व "सफलता के ज्ञान-अनुसन्धान यज्ञ" में।

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है कि ये यज्ञ सफलता के ज्ञान के लिए होगा।

के डी परिवार में हम चाहते हैं कि सम्पूर्ण मानव जाती के लिए और भावी पीढ़ी के लिए कल्याणकारी व्यवहारिक शिक्षा व ज्ञान का एकत्रिकरण किया जाये।

आप भी सादर आमंत्रित हैं।

इस ज्ञान-यज्ञ में हम सभी लोग अपने-अपने ज्ञान की आहुति डालेंगे।

यह ज्ञान अनुभवजन्य हो तो अति उत्तम।

अन्यथा इस ज्ञान का अनुसन्धान किया जाए। के डी परिवार की मदद से सफलता सम्बन्धी ज्ञान हासिल करें और ज्ञान को व्यवहार में लाने का हवन करें। सफल अनुभव की पूर्णाहुती के पश्चात इस ज्ञान रूपी प्रसाद को जन-जन में वितरित करें।

आईये, सफलता के लिए आवश्यक समस्त ज्ञान को एक ही जगह इकट्ठा करें।

अपने विचारों से इस "सफलता के ज्ञान अनुसन्धान यज्ञ" को सफल बनायें।

बताइये कि एक व्यक्ति को किस उम्र में किस तरह का ज्ञान मिलना चाहिए जिसे पा कर वह सफल, सुखी और समृद्ध हो सके।

यह भी बताइये कि एक व्यक्ति को सफल होने के लिए स्कूली शिक्षा के अलावा किस तरह के ज्ञान की आवश्यकता होगी।

अगर आपके पास सफलता के लिए आवश्यक ज्ञान है तो उसे यहाँ शेयर करें, ताकि वो अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचे।

अगर आपको जानकारी है कि सफलता के लिए किस तरह के ज्ञान की आवश्यकता है, तो अपनी जानकारी यहाँ शेयर करें, ताकि हम उस ज्ञान को यहाँ शामिल करें।

अगर आपको अपनी सफलता के लिए किसी विशेष ज्ञान की आवश्यकता है तो हमें बताइये। हम वो ज्ञान आपके लिए यहाँ के डी परिवार में उपलब्ध करवायेंगे।

हमें उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप हमेशा की तरह हमारे इस प्रयास को भी पसंद करेंगे और "सफलता के इस ज्ञान-अनुसन्धान यज्ञ" को सफल बनाने हेतू अपना सहयोग अवश्य डालेंगे।

Thursday, October 16, 2014

एक प्रेरणास्पद कहानी : पुल


बटाला से के डी परिवार की माननीय सदस्या गुरजीत कौर जी को धन्यवाद सहित
दो भाई साथ साथ खेती करते थे। मशीनों की भागीदारी और चीजों का व्यवसाय किया करते थे। चालीस साल के साथ के बाद एक छोटी सी ग़लतफहमी की वजह से उनमें पहली बार झगड़ा हो गया था झगड़ा दुश्मनी में बदल गया था।
एक सुबह एक बढ़ई बड़े भाई से काम मांगने आया. बड़े भाई ने कहा “हाँ ,मेरे पास तुम्हारे लिए काम हैं। उस तरफ देखो, वो मेरा पडोसी है, यूँ तो वो मेरा भाई है, पिछले हफ्ते तक हमारे खेतों के बीच घास का मैदान हुआ करता था पर मेरा भाई बुलडोजर ले आया और अब हमारे खेतों के बीच ये खाई खोद दी, जरुर उसने मुझे परेशान करने के लिए ये सब किया है अब मुझे उसे मजा चखाना है, तुम खेत के चारों तरफ बाड़ बना दो ताकि मुझे उसकी शक्ल भी ना देखनी पड़े."
“ठीक हैं”, बढ़ई ने कहा।
बड़े भाई ने बढ़ई को सारा सामान लाकर दे दिया और खुद शहर चला गया, शाम को लौटा तो बढ़ई का काम देखकर भौंचक्का रह गया, बाड़ की जगह वहा एक पुल था जो खाई को एक तरफ से दूसरी तरफ जोड़ता था. इससे पहले की बढ़ई कुछ कहता, उसका छोटा भाई आ गया।
छोटा भाई बोला “तुम कितने दरियादिल हो , मेरे इतने भला बुरा कहने के बाद भी तुमने हमारे बीच ये पुल बनाया", कहते कहते उसकी आँखे भर आईं और दोनों एक दूसरे के गले लग कर रोने लगे. जब दोनों भाई सम्भले तो देखा कि बढ़ई जा रहा है।
"रुको! मेरे पास तुम्हारे लिए और भी कई काम हैं", बड़ा भाई बोला।
"मुझे रुकना अच्छा लगता ,पर मुझे ऐसे कई पुल और बनाने हैं", बढ़ई मुस्कुराकर बोला और अपनी राह को चल दिया.
दिल से मुस्कुराने के लिए जीवन में पुल की जरुरत होती हैं खाई की नहीं। छोटी छोटी बातों पर अपनों से न रूठें।
"दीपावली आ रही है घरेलू रिश्तों के साथ साथ सभी दोस्ती के रिश्तों पर जमी धूल भी साफ कर लेना, खुशियाँ चार गुनी हो जाएंगी"
आने वाली दीपावली आप सभी के लिए खुशियाँ ले कर आए.

Wednesday, October 8, 2014

कहानी - एक समझौता - कल्पनाओं से परे


हिमांशु पुष्करणा को धन्यवाद सहित
--------------------

वो एक खेल का मैदान था।

8 लड़के दौड़ने के लिए ट्रैक पर एकदम तैयार खड़े थे।

आवाज़ गूंजी - "रेडी! स्टेडी! गो।"

पिस्टल की आवाज़ के साथ ही सब लडकों ने दौड़ना शुरू कर दिया।

अभी वो सब 10 से 15 कदम ही दौड़ पाए थे कि उनमें से 1 लड़का फिसला और गिर गया।

दर्द के कारण वो रोने लगा।

जब दूसरे 7 लडकों ने उसकी आवाज़ सुनी तो वे दौड़ते दौड़ते "रुक गये"।

एक क्षण के लिए वो रुके, इसके बाद वे मुड़े और उस गिर गए लड़के की ओर दौड़ पड़े।

उन सभी सातों लड़कों ने मिलकर उसे उठा लिया और उसे उठाये उठाये ही वो सब दौड़ की अंतिम रेखा तक पहुँचे।

लोग सन्न हो गये।

बहुत सी आँखों में आंसू थे।

ये घटना 2 वर्ष पहले पूना में घटी थी।

नैशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हैल्थ की ओर से इस दौड़ का आयोजन किया गया था।

सभी प्रतिभागी मानसिक तौर पर कमजोर थे।

उन्होंने क्या सिखाया?
टीमवर्क,
इंसानियत,
खेल की भावना,
प्रेम,
ध्यान,
और
समानता।

हम लोग निश्चित तौर पर ऐसा कभी नहीं कर सकते,

क्योंकि ........

हम दिमाग रखते हैं .......
हममें अहम् है ........
हममें दिखावा है .......

के डी परिवार की ओर से निवेदन - यदि इस घटना ने आपके दिल को छुआ हो, आपको जरा भी प्रभावित किया हो तो इसे अपने मित्रों के साथ जरुर शेअर करें।

Saturday, October 4, 2014

स्वच्छ भारत : एक अभियान


प्रधानमन्त्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 3 अक्तूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान का शुभारम्भ किया गया।
श्री मोदी जी के अनुसार ये अभियान राजनीती से नहीं बल्कि देश भक्ति से प्रेरित है।
प्रधानमन्त्री महोदय ने देश को साफ़ रखने में किसी भी तरह के पूर्व में किये कार्यों की प्रशंसा की और देश के प्रत्येक नागरिक को पूरे देश को स्वच्छ रखने के लिए प्रेरित किया।
मैं श्री मोदी जी के इस कार्य को देश भक्ति के साथ साथ मानवता से भी प्रेरित मानता हूँ।
माननीय मोदी जी ने कुछ सूत्र दिए हैं : अगला चित्र देखें


इन सूत्रों को पढ़ने के लिए दैनिक जागरण देखें।
पर क्या ये 10 सूत्रीय कार्यक्रम सफल हो पायेगा? जैसा पंजाब की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांत चावला जी का कहना है अगर वैसा हुआ तो सच में ये कार्यक्रम असफल हो जाएगा।


प्रो. लक्ष्मीकांत चावला जी का कहना है कि ये अभियान केवल फोटो खिंचवाने तक ही सीमित ना रह जाए। बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ वर्ष में एक दिन भी कोई सफाईकर्मी नहीं पहुँचता। ऐसे बहुत से स्थान हैं जहाँ चूहे और मच्छर भरे पड़े हैं, ऐसे स्थानों की भी सुध ली जाये।
एक सूत्र के डी परिवार की ओर से : हमें अपनी आदतों और व्यवहार में बहुत बड़ा परिवर्तन लाना होगा। साफ़ सफाई से सम्बन्धित आदतों में हमें बदलाव करना होगा।
हम फलों, मूंगफलियों के छिलके, टॉफ़ी - चिप्स - चाकलेट आदि के खाली पैकेट और खाली बोतलें हम जहाँ तहां फैंकने के आदी हैं। हमें ये आदत बदलनी होगी।
क्या हम अपने घर में भी ऐसा ही करते हैं?
क्या हम अपने घर में केला या मूंगफलियां खा कर छिलके ऐसे ही इधर उधर फेंकते हैं? अगर नहीं तो घर से बाहर होने पर हम ऐसा क्यों करते हैं? अगर हम अपने घर में कूड़ा फैलाना पसंद नहीं करते तो घर से बाहर कूड़ा क्यों फैलाते हैं?
प्रधानमन्त्री जी के इस "स्वच्छता अभियान" को हमारे और आपके सहयोग के बिना पूरा नहीं किया जा सकता।
मेरे ख्याल से श्री मोदी जी के इस कार्य को सभी ने पसंद किया होगा। पर क्या सभी आज से ही गंदगी फैलाना बंद कर देंगे? क्या ये उम्मीद की जा सकती है कि कल सुबह जब सडकों पर जायेंगे तो सडकें साफ़ मिलेंगी? क्या हम घर से बाहर भी घर की तरह ही साफ़ सफाई रखने में सहयोग देंगे?
अगर हाँ तो मेरा यकीन मानिए हम अपने देश को भी उतना ही खुबसूरत बना लेंगे जितने हम सब के घर हैं।
हममें से जो लोग बाहर देश जा के आते हैं वो बाहर के देशों की सफाई और सुन्दरता के गुण गाते हैं। आओ मिलकर अपने देश को इतना स्वच्छ और सुंदर बनायें कि बाहर देश से आये लोग हमारे गुण गायें।
इसके अलावा जिन क्षेत्रों में लोग गंदगी में रहते हैं उन स्थानों पर बार-2 जा कर उन लोगों को गंदगी को साफ करने और गंदगी ना फ़ैलाने के लिए प्रेरित किया जाये। उन्हें समझाया जाये कि अगर उनके क्षेत्र में सफाईकर्मी नहीं आता तो वे खुद सफाई करें। क्योंकि सफाईकर्मी के ना आने से नुकसान सफाईकर्मी का नहीं बल्कि लोगों का ही होता है।
के डी परिवार पिछले 8 वर्षों से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को स्वच्छ रहने की प्रेरणा दे रहा है। आप अपने क्षेत्र में ऐसे स्थानों की तलाश करें और वहां रहने वाले लोगों को सफाई हेतू प्रेरित करें।
आओ संकल्प लें, जैसा कि "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" की टीम ने कहा - "आज से ना तो खुद गन्दगी फैलायेंगे और ना ही किसी को फ़ैलाने देंगे"।
जय हिन्द! जय भारत!
शुभेच्छाओं के साथ के डी परिवार
(चित्र साभार दैनिक सवेरा)

Thursday, October 2, 2014

गाँधी जी के शिक्षा सम्बन्धी कुछ विचार


गाँधी जयंती की हार्दिक बधाई के साथ गाँधी जी के शिक्षा सम्बन्धी कुछ विचार गौर फरमाएं।



1) शिक्षा में हृदय की शिक्षा यानि चरित्र के विकास को पहला स्थान मिलना चाहिए।

2) चरित्र सफलता की बुनियाद है। अगर बुनियाद मजबूत हो तो अवसर मिलने पर दूसरी बातें किसी की मदद से या खुद भी सीखी जा सकती हैं।

3) शिक्षा के साथ विद्यार्थियों को चरित्र का ज्ञान तभी मिल सकता है जब शिक्षक स्वयं चरित्रवान होंगे।

4) साधारण चरित्र वाले शिक्षक के हाथ में कभी भी बच्चों को नहीं सौंपना चाहिये। शिक्षक में अक्षर ज्ञान भले ही थोड़ा हो पर उसमें चरित्र बल तो ज़रूर ही होना चाहिये।


मोहनदास करमचंद गाँधी, मेरे सत्य के साथ प्रयोग की कहानी पुस्तक से
द्वारा के डी'स विपिन कुमार शर्मा

काश मैं आजाद होता : देश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत एक भावुक कविता


लेखक कवि के बारे में -
इस कविता के लेखक श्री उमेश कुमार शर्मा हैं, जो अपनी रचनाओं में अपने नाम के साथ “रूप” लिखते हैं। उमेश जी गाजियाबाद में रहते हैं और नौकरी करते हैं।


उमेश जी में लेखन के साथ-2 गायन और तबला वादन का भी हुनर है।
उमेश जी की कविताओं में लोगों की भावनायें दिखती हैं। इनकी कविता पढ़-सुन कर ऐसा लगता है मानो कोई हमारे ही दिल की बात कह रहा हो।
ऐसी ही है उमेश जी की ये कविता - काश मैं आजाद होता।
उमेश जी के अनुसार - वैसे तो हमारा देश 1947 में आजाद हो गया था। लेकिन आज आजादी के 67 साल बाद भी देश के हालात को देख कर बिल्कुल भी नहीं लगता कि हम आजाद हैं।
देश की बुरे हालातों को अपनी कविता “काश मैं आजाद होता” में उमेश जी देश की ओर से कहते हैं किः

काश मैं आजाद होता
खुले रहते घर के दरवाजे, शीतल मंद पवन लहराती।
मेरी मां, बहन और बेटी, निर्भीक हो कहीं भी जाती।
लूट रेप का डर ना सताता।
काश मैं आजाद होता॥

बेईमानी का कागज और लालच का कलम ना होता।
(तो) अपनी काबिलियत के दम पर, दुनिया में परचम लहराता।
रिश्वत का चारा ना खिलाता।
काश मैं आजाद होता॥

देश में ना कोई दंगा होता।
किसी का ना कोई पंगा होता।
साम्प्रदायिकता खत्म कराता।
काश मैं आजाद होता॥

गैर मुल्क की हिम्मत देखो, रोज है हमको आँख दिखाता।
वोटों की राजनीति में, ध्यान किसी का उधर ना जाता।
अपना कश्मीर मैं अपना बनाता।
काश मैं आजाद होता॥

एक वर्ष में दो-दो बार जो, कन्या पूजन हैं करवाते।
कन्या के जन्म से पहले वो ही, अर्थी उसकी हैं सजवाते।
(कन्या के) भ्रूण हत्या पर (पूर्ण रूप से) रोक लगाता।
काश मैं आजाद होता॥

आजादी की वर्षगांठ पर, नेताजी झंडा फहराते।
कस्में वादे (चाहे) ना करते, पर देश पे अपने प्राण गंवाते।
ऐसे महान देश भक्त पर, कोटि-कोटि निज शीश गंवाता।
काश ........... ! काश मैं आजाद होता॥

“रूप” है मेरा प्यारा पर, भ्रष्टाचार की गर्दिश छाई है।
मेरे ही अपनों ने देखो, मुझमें आग लगाई है।
(काश आज भी) सोने की चिड़िया कहलाता।
काश मैं आजाद होता॥

प्रिय मित्रों, उमेश जी की ये पहली कविता हमने आपके सामने पेश की है। आशा है आपको पसंद आई होगी। शीघ्र ही अन्य कवितायें भी प्रस्तुत करेंगे।
कृपया अपने सुझावों, विचारों से उमेश जी और के. डी. परिवार की हिम्मत बढ़ायें।
और हां, कविता को अपने मित्रों के साथ शेअर करना ना भूलें।

Monday, September 15, 2014

बुक रीव्यू


(To read Book Review in English CLICK HERE)

सम्पादिका की टिप्पणी –
आखिर’ के आरम्भ से ही हर माह बुक ऑफ दि मंथ कॅालम के माध्यम से हम आपको एक महत्वपूर्ण किताब के बारे में जानकारी देते आ रहे हैं।

अब उसी कॅालम को हम यहां बुक रीव्यू के रूप में आरम्भ कर रहे हैं।

जैसा कि आप जानते ही हैं कि सफल होने के लिये सीखना बहुत अनिवार्य है। सीखने का यह आवश्यक कार्य पुस्तकों के माध्यम से बहुत आसानी से हो जाता है।

हमें पूरी उम्मीद है कि सफलता के सम्बन्ध में पुस्तकों के महत्व को आप अच्छी तरह समझते हैं।

इस कॅालम के माध्यम से हम आपको उन महत्वपूर्ण पुस्तकों की जानकारी देंगे जो सफलता की राह में आपका भरपूर मार्गदर्शन कर सकें, आपको सही राह दिखा सकें और सफलता पाने के लिये आपकी सहायक बन सकें।

इस कॅालम में आपको जिन पुस्तकों के बारे में जानकारी दी जायेगी, उन पुस्तकों को आपसे पहले बहुत से लोग पढ़ चुके हैं और इनका लाभ उठा चुके हैं।

यह भी हो सकता है कि आप भी इन पुस्तकों को पढ़ चुके हों या इन के बारे में जानते हों। जो भी हो यह कॅालम आपकी बहुत अधिक मदद करेगा। क्योंकि इस कॅालम के माध्यम से आप पुस्तकों को सफलता के संदर्भ में एक नये दृष्टिकोण से देखेंगे।

प्रत्येक पुस्तक के साथ उस पुस्तक के मिलने का विवरण दिया जायेगा, जहाँ से आप पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं। न मिलने पर हमसे kdparivar@gmail.com पर सम्पर्क करें।

वैसे तो इस बात को तय करना बहुत मुश्किल है कि कोइ व्यक्ति सफलता के लिये सबसे पहले कौन सी किताब पढ़े। क्योंकि हर व्यक्ति की रूचि, आदतें, स्थिति, परिस्थिति, पृष्ठभूमि, उसका ज्ञान स्तर सब कुछ अलग-२ होता है। इसलिये बिना किसी व्यक्ति से मिले अथवा बिना किसी व्यक्ति को जाने उसके बारे में पुस्तक का निणर्य करना कठिन है।

लेकिन फिर भी यदि बात मानवीय सफलता की हो तो सफलता पाने के लिये सबसे पहले मानसिक स्तर को सुधारना अत्यन्त आवश्यक एवम् अनिवार्य है।

इसलिये सफलता के लिये यदि कोई कोर्स बनाया जाये तो उसकी सबसे पहली पुस्तक यानि सफलता की प्राथमिक पढ़ाई होगी - नेपोलियन हिल की लिखी पुस्तक - सोचिये और अमीर बनिये (Think and Grow Rich)। इस पुस्तक में लेखक ने सोचने की शक्ति से सफल हाने की व्यवहारिक विधियों का वर्णन किया है।

सोचने की यह शक्ति बहुत शक्तिशाली है। इसके सामने दुनिया की सारी ताकतें कमजोर हैं।

मानवीय दिमाग सृष्टि में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु को अपने हित के लिये उपयोग करने की क्षमता रखता है।

सफलता पाने के लिये कोई भी अन्य चीज इतनी सहायक नहीं हो सकती जितना कि आपका दिमाग तथा आपकी सोचने की शक्ति।

सोचने की शक्ति एक ऐसी शक्ति है जो प्रत्येक व्यक्ति के पास उपलब्ध है। एक साधारण से व्यक्ति से लेकर असाधारण क्षमता वाले व्यक्ति तक, सभी के पास यह शक्ति मौजूद है। यह शक्ति प्रत्येक मानव को परमात्मा का दिया हुआ एक अद्भुत उपहार है जो सब के पास बराबर मात्रा में उपलब्ध है। यह न तो किसी के पास अधिक है और न ही किसी के पास कम।

लेकिन अधिकतर लोग इस शक्ति का सदुपयोग करने के बजाये इसका दुरूपयोग ही करते हैं।

अधिकतर लोग अपनी सोचने की विलक्षण क्षमता का सही उपयोग कर सफल होने के बजाये असफल रह जाते हैं।

वे इसलिये असफल हो जाते हैं क्योंकि वे अपनी सोचने की क्षमता को सकारात्मक दिशा में रखने के बजाये नकारात्मक दिशा में रखते हैं।

यह बात सभी जानते हैं (निश्चित ही आप भी यह जानते होंगे) कि शरीर के गर्दन से निचले हिस्से से काम करने वाल लोगों के मुकाबले गर्दन के ऊपरी हिस्से से काम करने वाले लोग अधिक सफल होते हैं।

इसका मतलब यह है कि कोई भी व्यक्ति शारीरिक मेहनत से नहीं बल्कि दिमागी मेहनत से सफल हो सकता है।

लेकिन ऐसा कैसे होता है? क्या शारीरिक मेहनत करने वाले लोगों के पास दिमाग नहीं होता? या वे अपने दिमाग का उपयोग नहीं करते?

आखिर’ क्या कारण है कि केवल कुछ लोग ही बेहद सफल हो पाते हैं और अधिकतर लोग असफल ही रह जाते हैं? क्या वे सफल होना ही नहीं चाहते? या वे सफल होने की विधि नहीं जानते?

सफल होने की विधि क्या है? सफल होने का सोचने से क्या सम्बन्ध है? सफलता के लिये सोचने की क्षमता का किस तरह सदुपयोग करें? अपने दिमाग को सफलता हेतू किस तरह तैयार करें?

साधारण कार्य करते हुये असाधारण परिणाम कैसे प्राप्त करें? सोचने की क्षमता का सही उपयोग करके सफलता और अमीरी कैसे हासिल करें? सोचने जैसा साधारण काम करके अमीर कैसे बनें?

इस तरह के और भी बहुत से सवालों का जवाब है - नेपोलियन हिल की पुस्तक - सोचिये और अमीर बनिये (Think and Grow Rich)। एक कालजयी रचना।

यह पुस्तक अभी अपने नजदीकी पुस्तक विक्रेता से मांगें या नीचे दिये लिंक पर क्लिक करके अभी ओन-लाइन आर्डर करें या kdparivar@gmail.com पर हमें मेल करें।



To purchase this book in English - Click Here - Think And Grow Rich (English)

Friday, August 1, 2014

उत्साह बढ़ाने वाला वीडियो



प्रिय मित्रों,
ओम नारायण
मित्रों, कई बार जीवन में हम कमज़ोर पड़ जाते हैं. कभी ना कभी हम सब के जीवन में ऐसा दौर आता है जब हम ये मानने लग जाते हैं कि हम कुछ नहीं कर सकते. ऐसे समय में अगर कोई हमारा हौंसला बढ़ा दे तो हम अपनी उस नकारात्मक स्थिति से बाहर आ जाते हैं और सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ जाते हैं. आज हम एक वीडियो शेयर कर रहे हैं, जो अत्यंत नकारात्मक परिस्थितियों में भी आपका भरपूर उत्साह बढ़ायेगा.
https://www.youtube.com/watch?v=XDMGH1yNztc

के. डी. परिवार तक इस वीडियो को पहुंचाने का श्रेय जाता है श्री मनोज कुमार जी को, जो लुधियाना में रहते हैं. मनोज जी स्व-व्यवसायी हैं और अत्यंत नकारात्मक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आज बहुत ही आनंद से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं. आज मनोज जी दूसरे लोगों को सकारात्मकता का सन्देश देते हुए सही ढंग से जीवन जीना सिखा रहे हैं.

के. डी. परिवार की और से मनोज कुमार जी को हार्दिक धन्यवाद
यह पोस्ट आपको कैसी लगी? कृपया अपने विचारों-सुझावों से हमारा मार्गदर्शन करें. आप आखिर' में क्या पढ़ना चाहते हैं, हमें बताएं. हम आपके विचारों-सुझावों के अनुसार सामग्री प्रस्तुत कर देंगे.
लोगों को सकारात्मक साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करें. अपने मित्र-सम्बन्धियों को आखिर' पढ़ने की सलाह दें. उन्हें आखिर' का लिंक भेजें - kdsakhir.blogspot.in
सफलता की राह पर आपका मित्र
के. डी.'स विपिन कुमार शर्मा
द्वारा के. डी. परिवार
सफलता की शिक्षा व ज्ञान को समर्पित एक परिवार

Saturday, July 12, 2014

बहाने या सफलता - चुनाव आपका




क्या कभी आपने सोचा कि कुछ लोग बहुत अधिक सफल हो जाते हैं और कुछ लोग बहुत अधिक मेहनत करके भी सफलता हासिल नहीं कर पाते, तो इसके पीछे क्या कारण है?
इसके पीछे असली कारण यह है कि सफलता पाने वाले लोग हर मुश्किल को पार करके कार्य करते हैं और असफल रहने वाले लोग बहाने बनाते रहते हैं।
असफल लोग किस तरह के बहाने बनाते हैं? इन बहानों के बारे में पढ़िये इस लेख में।
ध्यान से देखिये - कहीं आप भी इस तरह के बहाने बनाकर अपनी सफलता से दूर तो नहीं होते जा रहे?
अगर आपको लगता है कि आपमें कोई शारीरिक अथवा किसी अन्य तरह की कमी है जो आपको सफलता पाने से रोक रही है तो इस लेख में जानिये उन लोगों के बारे में जिनमें ये कमियां थीं और जिन्होंने इन कमियों के बावजूद सफलता हासिल की और पूरे विश्व में अपना नाम बनाया।

आम बहाने और सफलता
1 - मुझे उचित शिक्षा लेने का अवसर नहीं मिला. उचित शिक्षा का अवसर फोर्ड मोटर्स के मालिक हेनरी फोर्ड को भी नहीं मिला.
2 - बचपन में ही मेरे पिता का देहाँत हो गया था. प्रख्यात संगीतकार ए. आर. रहमान के पिता का भी देहांत बचपन में हो गया था.
3 - मैं अत्यंत गरीब घर से हूँ. पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी गरीब घर से थे.
4 - मैं बचपन से ही अस्वस्थ था. ऑस्कर विजेता अभिनेत्री मरली मेटलिन भी बचपन से बहरी व अस्वस्थ थी.
5 - मैंने साइकिल पर घूमकर आधी जिंदगी गुजारी है. निरमा के करसन भाई पटेल ने भी साइकिल पर निरमा बेचकर आधी जिन्दगी गुजारी.
6 - एक दुर्घटना में अपाहिज होने के बाद मेरी हिम्मत चली गयी. प्रख्यात नृत्यांगना सुधा चन्द्रन के पैर नकली हैं.
7 - मुझे बचपन से मंद बुद्धि कहा जाता है. थामस अल्वा एडीसन को भी बचपन से मंदबुद्धि कहा जाता था.
8 - मैं इतनी बार हार चुका अब हिम्मत नहीं. अब्राहम लिंकन 15 बार चुनाव हारने के बाद राष्ट्रपति बने.
9 - मुझे बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पङी. लता मंगेशकर को भी बचपन से परिवार की जिम्मेदारी उठानी पङी थी.
10 - मेरी लंबाई बहुत कम है. सचिन तेंदुलकर की भी लंबाई कम है.
11 - मैं एक छोटी सी नौकरी करता हूँ, इससे क्या होगा. धीरु अंबानी भी छोटी नौकरी करते थे.
12 - मेरी कम्पनी एक बार दिवालिया हो चुकी है, अब मुझ पर कौन भरोसा करेगा. दुनिया की सबसे बङी शीतल पेय निर्माता पेप्सी कोला भी दो बार दिवालिया हो चुकी है.
13 - मेरा दो बार नर्वस ब्रेकडाउन हो चुका है, अब क्या कर पाऊँगा. डिज्नीलैंड बनाने के पहले वाल्ट डिज्नी का तीन बार नर्वस ब्रेकडाउन हुआ था.
14 - मेरी उम्र बहुत ज्यादा है. विश्व प्रसिद्ध केंटुकी फ्राइड चिकन के मालिक ने 60 साल की उम्र में एक रेस्तरां को अपनी पहली रैसिपी बेची थी.
15 - मेरे पास बहुमूल्य आइडिया है पर लोग अस्वीकार कर देते है. जेराक्स फोटो कापी मशीन के आइडिये को भी ढेरों कम्पनियों ने अस्वीकार किया था पर आज परिणाम सामने है.
16 - मेरे पास धन नहीं. इन्फोसिस के पूर्व चेयरमैन नारायणमूर्ति के पास भी धन नहीं था उन्हें अपनी पत्नी के गहने बेचने पड़े.
17 - मुझे ढेरों बीमारियां हैं. वर्जिन एयरलाइंस के प्रमुख भी अनेकों बीमारियो से पीड़ित थे. राष्ट्रपति रुजवेल्ट के दोनो पैर काम नहीं करते थे.
अभी भी, इतना कुछ पढ़ने के बाद भी कुछ लोग कहेंगे कि यह जरुरी नहीं कि जो प्रतिभा इन महानायको में थी, वह हम में भी हो? मैं सहमत हूँ, लेकिन यह भी जरुरी नहीं कि जो प्रतिभा आपके अंदर है वह इन महानायको में भी हो.
सार यह है कि - "आज आप जहाँ भी हैं या कल जहाँ भी होंगे इसके लिए आप किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते, क्योंकि आप जो हैं, यह आपका ही चुनाव है। आने वाले कल में भी आप जो होंगे, वह आपका ही चुनाव होगा।"
इसलिए आज चुनाव करिये "आपको सफलता और सपने चाहियें या खोखले बहाने .......?"
संकलन व लेखन - विपिन कुमार शर्मा ‘सागर’, दिनांक 12 जौलाई 2014
यह लेख आपको कैसा लगा? कृपया अपने विचारों, सुझावों से हमारा मार्गदर्शन करें.
अपने मित्रों जानकारों को आखिर' पढ़ने की सलाह दें. उन्हें इस लेख का लिंक भेजें.

Tuesday, July 8, 2014

पाठक जी से सीखा


सम्पादिका की टिप्पणी
सुरेन्द्र मोहन पाठक जी भारत के एक जाने-माने सफल नावल लेखक हैं। आज उनके बहुत से चाहने वाले पाठक हैं। पाठक जी के नावेल्स में एक खास बात होती है, वे अपनी लेखनी के माध्यम से बहुत कुछ ऐसा कह देते हैं जो हमारे लिए बहुत गहरी सीख बन जाता है।
पाठक जी के नावेल्स से संग्रह की गइ कुछ ऐसी ही सीखों को इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं। आशा है आपको हमारा ये प्रयास अवश्य पसंद आयेगा। कृपया इस पोस्ट को अपने मित्रों के साथ शेयर करें। अपने सुझावों व विचारों से हमारा मार्गदर्शन अवश्य करें।
अरूणिमा, सम्पादिका

पाठक जी से सीखा

कोई काम नामुमकिन नहीं होता। मुश्किल होता है, ज्यादा मुश्किल होता है लेकिन नामुमकिन नहीं होता।
डबल गेम, पेज 34
***************
जिंदगी को एक सिग्रेट की तरह एंजाय करो, वरना सुलग तो रही ही है, एक दिन वैसे ही खत्म हो जानी है।
चोरों की बारात
***************
गुनाह को आंखों के सामने होता देख कर खामोश रहना गुनहगार की मदद करना है।
डबल गेम, बैक कवर
***************
खतरों से डरने से क्या होता है? जो शख्स खतरों से डरता है, उसके लिए तो जिन्दगी में खतरे ही खतरे हैं।
पूरे चान्द की रात, पृष्ठ 187
***************
कोई अनुष्ठान, कोई यज्ञ, कोई जप-तप प्रारब्ध को नहीं बदल सकता। फेट इज इनएवीटेबल। नियति अटल है।
पूरे चान्द की रात, पृष्ठ 22
***************
दुश्मन को निन्यानवें बार फेल होने पर भी सिर्फ एक बार सफल होना है।
पलटवार
***************
कुत्ते और आदमी में बुनियादी फर्क ये है कि तुम किसी भूखे कुत्ते के लिये दयाभाव दिखाओ और उसे रोटी खिला कर मरने से बचाओ तो वो तुम्हें कभी नहीं काटता।
पूरे चान्द की रात, पृष्ठ 48
***************
गलती किसी से भी हो सकती है। गलती करना नादानी है। गलती करके उसको सुधारने की कोशिश ना करना ज्यादा बड़ी नादानी है।
सीक्रेट एजेंट, पृष्ठ 279
***************
जीवित रहना एक महान कर्तव्य है| जीवन जैसा भी हो उसे सहन करना चाहिए|
***************
सच का गला झूठ उतना नहीं घोंटता जितना कि खामोशी घोंटती है।
डबल गेम, पृष्ठ 112
***************
कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाजे सुकून! जुल्म सहने से जालिम की मदद होती है।
हार-जीत
***************
लाख जौहर हों आदमी में, आदमियत नहीं तो कुछ भी नहीं।
कोलाबा कान्सपिरेसी, पृष्ठ 85
***************
सफलतायें दोस्त बनाती है, विफलतायें उन्हें आजमाती है।
कोलाबा कान्सपिरेसी, पृष्ठ 52

Monday, July 7, 2014

क्या हम खलनायकों को नायक से अधिक पसंद करने लगे हैं?


कहते हैं, फिल्में हमें शिक्षा देने में महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। फिल्में अष्ट-गुरू संस्थाओं में से एक हैं। हमें सिखाने वाली अष्ट-गुरू संस्थाओं में शामिल हैं –

1. शिक्षक 2. पालक 3. समाचार पत्र 4. साहित्य 5. सिनेमा 6. वक्ता 7. संत, महंत, महात्मा और गुरू 8. ब्राह्मण

इन अष्ट-गुरू संस्थाओं में सभी का अपना महत्व है, लेकिन आज के समय में सिनेमा अर्थात् फिल्में इनमें सबसे महत्वपूर्ण है।

इसका कारण यह है कि शिक्षक आज नीति-आधारित शिक्षा नहीं दे रहे बल्कि वे शासन पसंद शिक्षा दे रहे हैं। पालक आजीविका का उपार्जन करने में इतना व्यस्त हैं कि उनके पास बच्चों को सिखाने का समय ही नहीं है। समाचार पत्र केवल नकारात्मकता का प्रचार करने का कार्य कर रहे हैं। आज के युग में लोग साहित्य से दूर होते जा रहे हैं इसलिए साहित्य भी लोगों का मार्गदर्शन करने में नाकामयाब हो रहा है। वक्ता आज लोक कल्याण हेतू अपनी वाणी का सदुपयोग नहीं करते, बल्कि आज यह गुण वोट मांगने वालों और अभिनेताओं के पास ही सिमट कर रह गया है। संत, महंत, महात्मा और गुरू भी आज अपनी महत्ता या महंती बचाने मात्र के कार्य में रत हैं। लोगों के सबसे करीब सिनेमा है।

यह ठीक है कि सिनेमा अर्थात् फिल्में मनोरंजन का महत्वपूर्ण साधन हैं और अधिकतर फिल्मकार आज सिर्फ मनोरंजन के लिए फिल्में बनाते हैं, परन्तु फिर भी फिल्में एक व्यक्ति की मानसिकता पर बहुत गम्भीर असर डालती हैं। एक व्यक्ति फिल्मों से बहुत कुछ सीखता है।

फिल्मों का समाज पर व्यापक प्रभाव और पकड़ होता है।

क्या आप यह महसूस करते हैं कि जब आप फिल्म देखकर बाहर निकलते हैं तो फिल्म का नायक अथवा कोई और चरित्र आपके दिलो-दिमाग पर पूरी तरह हावी होता है। आप उसी की तरह चलते हैं, उसी की तरह बात करने की कोशिश करते हैं। ऐसा किस कारण होता है? यह आप पर फिल्म का शैक्षणिक प्रभाव है। यह वो है जो आपने फिल्म से सीखा है।

कम आयु वाले दर्शकों पर फिल्म अधिक आयु वाले दर्शकों के मुकाबले अधिक असर डालती है। किशोर वय के बालक-बालिकाओं के कोमल, भावुक और अपरिपक्व मन-मस्तिष्क पर भली-बुरी फिल्मों का जल्दी प्रभाव पड़ता है।

आज फिल्मों में दिखाई जाने वाली हिंसा और अपराध की घटनाओं से सीख लेकर कम आयु के अपराधियों की संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है।

फिल्मों के प्रति यह आकर्षण असल में पर्दे का नहीं, बल्कि फिल्म की कहानी, घटनाओं और उसके प्रस्तुतिकरण का है। पूर्व काल में बहुत लम्बे समय तक लोग मंच पर रामलीला और रासलीला जैसे नाटकों से अपना मनोरंजन और ज्ञान-वर्द्धन करते रहे हैं। आज मनोरंजन का माध्यम नाटक से हट कर सिनेमा हो गया है। इसलिए व्यक्ति की मानसिकता और भावनाओं पर सिनेमा का असर बहुत बढ़ गया है।

इसके अलावा एक और बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। पूर्व काल में लोग कहानी के मुख्य पात्र अर्थात नायक को पसंद किया करते थे। नायक उनका आदर्श होता था। लेकिन आज लोग नायक के बजाये खलनायक को पसंद करने लगे हैं।

अभी कुछ समय पूर्व मेरे बच्चे और उनके पड़ौसी दोस्त सभी दशहरे पर घूमने के लिए जाना चाहते थे। मैंने बच्चों से पूछा कि क्या देखने जाना चाहते हो? तो लगभग सभी बच्चों ने एक स्वर में जवाब दिया - रावण।

बच्चों का जवाब सुनकर मैं बहुत हैरान हुआ। मेरे दिमाग में तुरन्त एक विचार आया कि आज हमारे बच्चों का आकर्षण राम में नहीं बल्कि रावण में है। क्योंकि बच्चों के लिए राम आकर्षक नहीं हैं, रावण आकर्षक है। राम में क्या मजा? वो तो सादे से हैं। आकर्षण तो रावण में है। रावण जलता है तो पटाखे छूटते हैं। बच्चों को राम में दिलचस्पी नहीं, बल्कि पटाखों के कारण रावण में है।

बच्चों का छोड़ो, मुझे पता चला कि कुछ लोग रावण के पुतले की अधजली लकड़ियों को घर ले जाते हैं। ऐसा करने वालों की धारणा ये है कि ये अधजली लकड़ी घर से बुराईयों को जलाने का काम करेगी। इस बात में कितना सच है ये तो नहीं पता, पर बड़ों के आकर्षण का केन्द्र भी राम नहीं बल्कि रावण है।

तो बच्चे हों या बड़े; आज लोग राम से अधिक रावण को पसंद कर रहे हैं। अभी कहीं-कहीं यह भी सुनने को मिल रहा है कि कुछ लोग हर साल रावण का पुतला जलाने का विरोध करने लगे हैं। यानि खलनायक नायक से अधिक पसंद किया जाने लगा है।

प्रसिद्ध अखबार दैनिक भास्कर में कुछ दिनों पूर्व प्रसिद्ध फिल्मकार प्रीतिश नंदी का एक लेख प्रकाशित हुआ जो यह बताता है कि आज लोगों को हीरो से अधिक विलेन पसंद आने लगा है।



लेकिन यह कोइ अच्छा संकेत नहीं है।

फिर क्या है समाधान?

ऐसी फिल्में तैयार होनी चाहियें जो शिक्षण की दृष्टि से मानव के चरित्र का निर्माण करने के लिए बनाई जायें।

ऐसा नहीं कि इस तरह के प्रयोग नहीं होते। ना ही ऐसा है कि इस तरह की फिल्में लाभ नहीं देतीं, जैसा कि अधिकतर फिल्मकारों का कहना है।

पूर्व में सोहराब मोदी साहब उच्च आदर्शों को प्रस्तुत करने वाली सफल फिल्मों का निर्माण करते रहे हैं। जैमिनी वालों की फिल्में भी इस लिहाज से बहुत अच्छी हुआ करती थीं। आज भी कुछ फिल्मकार यदा-कदा ऐसा कर रहे हैं। मुन्ना भाई एम बी बी एस, लगे रहो मुन्ना भाई, गुरू, तारे जमीं पर, ३ इडियट्स आदि फिल्मों का उद्देश्य मात्र मनोरंजन नहीं था, बल्कि शिक्षा देना भी था।

लेकिन इसमें सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण भाग है - हम दर्शकों का। हमें सोच-समझ कर केवल अच्छी फिल्मों को ही देखने का चुनाव करना चाहिये। अपने अलावा हमें अपने बच्चों के लिए भी यह निर्णय लेना चाहिये कि वे कौन सी फिल्म देखें और कौन सी नहीं।

लेखक - विपिन कुमार शर्मा ‘सागर’, दिनांक - 23 जून 2014

Tuesday, July 1, 2014

पाठक जी से सीखा


a quote by Surender Mohan Pathak

https://www.goodreads.com/quotes/1269649



कुत्ते और आदमी में बुनियादी फर्क ये है कि तुम किसी भूखे कुत्ते के लिये दयाभाव दिखाओ और उसे रोटी खिला कर मरने से बचाओ तो वो तुम्हें कभी नहीं काटता।

भारत के विश्व प्रसिद्ध लेखक - पाठकों के प्यारे - श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी

Sunday, June 29, 2014

डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के नौकरीपेशाओं के लिए विचार




अपनी नौकरी से प्रेम करें, पर अपनी कम्पनी को नहीं। क्योंकि आप नहीं जानते कि आपकी कम्पनी कब आपसे प्रेम करना बंद कर देगी।

अपने कार्यस्थल को हमेशा समय पर छोड़ें।

कार्य हमेशा चलती रहने वाली एक प्रक्रिया है। ये कभी पूर्ण नहीं हो सकती।

ग्राहक का लाभ महत्वपूर्ण है, आपका परिवार भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

अगर कभी आप गिर जायें तो आपका बॅास/मैनेजर/मालिक या आपका ग्राहक आपकी मदद के लिए आगे नहीं आयेंगे; लेकिन आपका परिवार और आपके मित्र आपको जरूर सम्भालेंगे।

जीवन केवल काम, ऑफिस या ग्राहक तक ही सीमित नहीं है। जीवन में और भी बहुत कुछ है। आपको समाजवादी होने के लिए, मनोरंजन के लिए, आराम के लिए और व्यायाम के लिए समय की आवश्यकता है। जीवन को लक्ष्य रहित न जीयें।

एक व्यक्ति जो अपने ऑफिस में देर तक काम करता है वह मेहनती कर्मचारी नहीं है। इसके बजाये वह मूर्ख है जो यह नहीं जानता कि काम को निर्धारित समय में कैसे पूरा किया जाये। वह अपने कार्य में अयोग्य एवम् अप्रभावशाली है।

आप जीवन में पढ़ाई-लिखाई या मेहनत मशीन बनने के लिए नहीं करते।

अगर आपका बॅास/मैनेजर/मालिक आपको देर तक काम करने के लिए कहता है तो वह अयोग्य और अप्रभावशाली है और वह लक्ष्य विहीन जीवन बिता रहा है। यह लेख उस तक पहुँचायें।

Friday, June 27, 2014

समस्यायें और सफलता


प्रिय मित्रों, हम सभी जीवन में कभी ना कभी किसी न किसी समस्या के कारण बहुत अधिक परेशान हो जाते हैं। कहा जाता है कि इस दुनिया का हर व्यक्ति या तो अभी अभी किसी समस्या से बाहर निकला है या फिर वो किसी समस्या में उलझने जा रहा है।



और यह भी सच है कि समस्यायें और संघर्ष ही एक व्यक्ति को सफल बनाते हैं। कहते हैं कि हर समस्या के पीछे सुख, समृद्धि और सफलता का अवसर छिपा होता है।

किन्तु समस्याओं के कारण होने वाली परेशानियां व्यक्ति को इतना अधिक व्यथित कर देती हैं कि वह व्यक्ति समस्याओं के पीछे छिपे अवसरों को देख ही नहीं पाता।

यदि आप इस समय किसी समस्या के कारण परेशान हैं और अपनी परेशानी का हल तलाश नहीं कर पा रहे तो अभी के. डी. परिवार से सम्पर्क करें।

के. डी. परिवार आपकी परेशानी को हल करने के व्यवहारिक सुझाव प्रदान करेगा, वह भी निःशुल्क। अगर के. डी. परिवार के सुझावों से आप अपनी समस्या का हल पा लेते हैं तो यही हमारे लिए सबसे बड़ा शुल्क होगा।

इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी हेतू अभी http://www.kdparivar.com/problem & solutions.html पर पधारें। अपनी समस्या का समाधान पाने के लिए इस पेज से समस्या के अनुसार फॉर्म डाऊनलोड करें और फॉर्म भर कर kdparivar@gmail.com पर भेज दें।

निश्चिंत रहिये, आपकी समस्या को गुप्त ही रखा जायेगा। आपकी सहमति के बिना आपका नाम आदि किसी के सामने भी प्रगट नहीं किया जायेगा।

अगर आप इस समय किसी समस्या के कारण परेशान नहीं हैं और अगर यह लेख आपके काम का नहीं है, तो इस लेख के बारे में अपने किसी मित्र, सम्बन्धी या जानकार को बतायें, या इसे फेसबुक आदि सोशल नैटवर्क पर शेअर करें। शायद यह किसी और के काम आ जाये।

आशा है कि आप निश्चित ही के. डी. परिवार की सेवाओं से लाभ उठायेंगे।

लेखिका - के. डी.’स अनू शर्मा

दिनांक - 26 जून 2014

Thursday, June 26, 2014

परमात्मा और सफलताः धर्म-कर्म वाले लोग होते ज्यादा सफल


पूजा-पाठ आदि धर्म-कर्म करना पाखण्ड नहीं, बल्कि यह सफलता हेतू भी सहायक है।



कथा-कीर्तन-प्रवचन आदि में जाने से आपका समय नष्ट नहीं होता बल्कि इससे सफलता के लिए अति आवश्यक गुणों में वृद्धि होती है, जैसे काम में अधिक मन लगना, उत्पादन क्षमता बढ़ना, लोगों की नजरों में अच्छी छवि बनना और लोगों से अच्छे सम्बन्ध बनना आदि।

अगर आपमें सफलता के लिए आवश्यक गुणों की वृद्धि हो गई तो आपके लिए सफलता पाना अपने आप ही आसान हो जायेगा।

के. डी. परिवार पिछले काफी समय से इस बात का अनुमोदन और समर्थन करता आ रहा है कि सफलता केवल मानव के प्रयासों से नहीं मिलती। सफलता के लिए मानव के प्रयास और परमात्मा के प्रसाद - दोनों - की आवश्यकता होती है।

के. डी. परिवार द्वारा प्रस्तुत भारत के पहले सकारात्मक मासिक निःशुल्क हिन्दी न्यूज लैटर आखिर’ के विगत अंकों में हमने परमात्मा और सफलता नाम से लेखों की एक श्रृंखला का प्रकाशन किया था। आप आखिर’ के नीचे दिये पुराने अंक निःशुल्क डाउनलोड करके ये लेख पढ़ सकते हैं -

4. Akhir' - Jan09.4

5. Akhir' - Feb09.5



6. Akhir' - March09.6

7. Akhir' - April09.7

9. Akhir' - June09.9

10. Akhir' - July09.10

11. Akhir' - August09.11

12. Akhir' - September09.12

13. Akhir' - October09.13

14. Akhir' - November09.14

15. Akhir' - December09.15

16. Akhir' - January10.16

निःशुल्क आखिर’ डाउनलोड करने के लिए अभी http://www.kdparivar.com/Akhir’.html पर पधारें।

उपरोक्त इस लिस्ट में केवल आखिर’ के केवल उन्हीं अंकों को दिया गया है जिनमें परमात्मा और सफलता श्रृंखला के लेख छपे थे। आप चाहें तो आखिर’ के बाकी अंक भी डाउनलोड कर सकते हैं।

और हां, सबसे जरूरी बात, इस बारे में अपने मित्रों-सम्बन्धियों को बताना ना भूलें। ध्यान रखें ज्ञान तभी लाभ देता है जब इसे बांटा जाये।

इस लेख का लिंक अपने जानकारों को अवश्य भेजें। फेसबुक आदि सोशल नैटवर्क पर इसे अधिक से अधिक लोगों के साथ शेअर करें।

अपने विचारों और अनुभवों से अवगत करायें।

धन्यवाद सहित

सफलता की राह पर आपका मित्र

के. डी.’स विपिन कुमार शर्मा ‘सागर’

दिनांक - 26 जून 2014

Tuesday, June 24, 2014

समस्याएं और समाधान


पाएं अपनी समस्याओं का समाधान http://kdparivar.com/problem%20&%20solutions.html



पधारें http://kdparivar.com/problem%20&%20solutions.html

भारत में शिक्षा के हालात




मित्रों, जैसा कि आप सब को भी अनुभव होगा कि हमारे देश में अंग्रेजी राज के बाद से हमें ऐसी शिक्षा नहीं मिल रही जो हमारे जीवन को सुखी, समृद्ध व सफल बना सके. अब विशेषज्ञों का भी यही मानना है. दैनिक भास्कर में प्रकाशित इस विशेष लेख को पढ़ें और अपने विचार व अनुभव साँझा करें.

नोट - समाधान - जीवन में सच्ची सफलता पाने के लिए के. डी. परिवार से जीवन की असली शिक्षा हासिल करें. अभी के. डी. परिवार की साइट पर पधारें.

Monday, June 23, 2014

प्रेरणादायक लेख - गलतियों से किस तरह सीखें?


सम्पादिका की टिप्पणी - कुछ समय पहले हमने आखिर’ में एक कहानी प्रकाशित की थी - गलतियों से सीखना। इसे काफी लोगों ने पसंद किया। इस कहानी में हमने आपसे वादा किया था कि जल्द ही एक लेख प्रकाशित करेंगे कि गलतियों से किस तरह सीखा जाये। सो अपने वादे को पूरा करते हुए हम यह लेख प्रकाशित कर रहे हैं। कृपया अपने विचारों-सुझावों से अवश्य अवगत करवायें।



हम सभी से जीवन में कभी न कभी कोई न कोई गलती होती रहती है। चाहे यह गलती छोटी हो या बड़ी पर हर दिन हम कुछ न कुछ गलत तो करते ही हैं।

कोई भी गलतियां करना पसंद नहीं करता। लेकिन एक पुरानी कहावत है कि इसांन गलतियों का पुतला होता है।

भले ही आप कोई गलती खुद ना करना चाहें, लेकिन फिर भी आप से हर दिन कोई न कोई गलती अवश्य होती है। कुछ गलतियां छोटी हो सकती हैं और कुछ बहुत बड़ी और गम्भीर गलतियां हो सकती हैं। लेकिन होती अवश्य हैं।

हालांकि आप गलतियों से बच तो नहीं सकते, लेकिन आप उनसे सबक हासिल कर सकते हैं और उन्हें कम अवश्य कर सकते हैं। अगर आप गलतियों से सही तरह से सबक हासिल कर लें, तो गलतियां आपको सही दिशा में ले जा सकती हैं।

गलतियां स्व-विकास का एक अनिवार्य अगं हैं। इसलिए गलती होने पर शर्मिंदा या दुःखी मत होईये, बल्कि यह देखिये कि आप उस गलती से क्या और कैसे सीख ले सकते हैं और किस तरह बेहतरीन व्यक्ति बन सकते हैं।

यहां कुछ सुझाव दिये गये हैं जो गलतियों से सीखने में आपकी बहुत अधिक मदद करेंगे –

1. गलती के लिए स्वयं को दण्ड ना दें :

बहुत से लोग कोई गलती हो जाने पर अपराधबोध से ग्रस्त हो जाते हैं और फिर हीन-भावना के शिकार हो कर जीवन विकास से दूर हो जाते हैं। अपराधबोध की भावना और हीन-भावना एक व्यक्ति के जीवन के विकास का मार्ग अवरूद्ध कर देती हैं।

कोई लोग गलती होने पर अपना मार्ग ही बदल लेते हैं या रूक जाते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति अपने व्यवसाय में कोई गलती कर बैठता है तो वह व्यवसाय को ही छोड़ने का निर्णय कर लेता है। कभी भी स्वयं को इस तरह का दण्ड ना दें।

यह ठीक है कि गलतियां खतरे से भरी होती हैं, पर ध्यान रखिये कि जितना अधिक खतरा होता है उतना ही अधिक लाभ का अवसर भी होता है। गलती होने पर लाभ के अवसर देखें।

क्या आपको याद है जब आपने साईकिल चलाना सीखना शुरू किया था तो क्या हुआ था? क्या आप बिना गलती किये साईकिल चलाना सीख गये थे? नहीं। आपने गिरने का खतरा उठाते हुए साईकिल चलाना सीखना जारी रखा। अगर आप गिरे तो आपने उससे सबक हासिल किया। इसका परिणाम क्या हुआ - आप साईकिल चलाना सीख गये। इस उदाहरण को व्यवसाय और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में याद रखें और गलतियों को विकास और सफलता का माध्यम बनायें।

2. गलती को स्वीकार करें और गलती के लिए विनम्रता से क्षमा मांगें :

अगर आपकी गलती से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर किसी को दुःख अथवा नुक्सान पहुंचा है तो क्षमा मांगना बहुत महत्वपूर्ण है। आपको यह स्पष्ट करना चाहिये कि जो भी हुआ वह एक हादसा था और आप इस बात का ध्यान रखेंगे कि यह दोबारा नहीं होगा।

अगर आप क्षमा मांगने से डरेंगे, शर्मिंदा नहीं होंगे या दिल से क्षमा नहीं मांगेंगे तो जिसके प्रति आपसे गलती हुई होगी वह इसे हमेशा अपने दिल में रखेगा और आपके खिलाफ रहेगा। क्षमा न मांगने की वजह से आपकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँच सकती है।

अगर आप दिल से क्षमा मांगते हैं तो लोग आपको क्षमा करना पसंद करेंगे। पर ध्यान रखें कि बार-बार क्षमा प्रार्थना न करें। गम्भीरता के साथ एक ही बार क्षमा मांगना पर्याप्त है। सही ढंग से क्षमा मांगने से लोगों का आपके प्रति विश्वास पुनः दृढ़ हो जायेगा।

3. पूर्णतावादी न बनें :

किसी भी व्यक्ति के लिए पूरी तरह पूर्णतावादी बनना सम्भव नहीं है। अगर आप गलतियां करने से डरते हुए अपना जीवन बितायेंगे तो आप जीवन में थोड़ा-बहुत ही हासिल कर पायेंगे और वो भी बहुत मुश्किल से।

ध्यान रखें कि गलतियां की नहीं जातीं, बल्कि हो जाती हैं। अगर आप यह सोचते हैं कि आप गलतियों से दूर रहेंगे तो आप अपने आप को बहुत सीमित कर लेंगे।

4. गलतियों को सही सिद्ध करने में समय नष्ट ना करें :

हमारी यह आदत होती है कि हम अपने कार्यों को सही सिद्ध करना चाहते हैं। अधिकतर हम अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोष देते हैं। कभी-२ कोई गलती होने पर हम यह भी कहते हैं कि ये तो होना ही था, मैं इसे रोक ही नहीं सकता था। उदाहरण के लिए जब हमें नौकरी से निकाल दिया जाता है तो हम कहते हैं - “ना तो ये नौकरी ठीक थी और ना ही मेरा बास।” जबकि हम आसानी से उन छुटि्टयों को भूल जाते हैं जो हमने बिना बताये ली थीं।

यह कुछ और नहीं बल्कि हमारा अहम है, जिसे पुष्ट करने के लिए हम अपनी गलतियों को सही सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। ध्यान रखिये दूसरों को हमारे स्पष्टीकरण में कोई रूचि नहीं है। अपनी गलती स्वीकार करने और माफी मांगने में कोइ बुराई नहीं है।

5. यह समझिये कि गलती क्यों हुई और गलती को दोहरायें नहीं :

एक व्यक्ति बहुत से कारणों के चलते गलती कर सकता है। गलती का दोहराव रोकने के लिए आपको कारणों को समझना चाहिये।

कारण को समझने के लिए अपने आप से अधिक से अधिक प्रश्न पूछें।

हो सकता है कि आप तनाव, अनिद्रा अथवा कम नींद, या फिर अपनी कुछ बुरी आदतों के कारण बार-बार गलतियां करते हों। अगर ऐसा है तो शीघ्र अति शीघ्र अपने डाक्टर से मिलें।

इस बात का खास ध्यान रखें कि अपनी गलतियों का विवेचन करते हुए आप अपराधबोध से ग्रस्त न हो जायें। बल्कि, विवेचन करते हुए आप गलतियों से सबक हासिल करें। सावधानीपूर्वक किये गये विवेचन के सतत प्रयासों से आप बहुत सी गलतियां करने से बच सकते हैं।

6. गलतियां सीखने का अवसर देती हैं, इस अवसर को जाने न दें :

असफलता की तरह आप गलतियों से भी बहुत से सबक हासिल कर सकते हैं। गलतियों के कारण आये अवसरों को व्यर्थ न जाने दें।

आप अपनी गलतियों से अपना ज्ञान-वर्द्धन कर सकते हैं और स्व-विकास की दर को बढ़ा सकते हैं। मुख्य बात यह है कि गलतियों को विकास का माध्यम समझें।

लेखक - विपिन कुमार शर्मा ‘सागर’, दिनांक - 23 जून 2014

Sunday, June 8, 2014

नैतिक शिक्षा का पतन - अतिथि लेखक - मास्टर राम एकबाल भगत




शिक्षा के क्षेत्र में भारत जहाँ लगातार पिछड़ता जा रहा है, वहीं गुरू-शिष्य का रिश्ता भी अपनी पवित्रता खोता जा रहा है।

आये दिन स्कूलों-विद्यालयों में ऐसी घटनायें घटती दिखाई दे रही हैं जो इस सत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। उदाहरण के तौर पर गत दिवस जालन्धर में जहाँ एक निजी स्कूल के छात्र ने परीक्षा अच्छी करवाने के लिए प्रिंसीपल पर पिस्तौल तान दी और उन्हें धमकाया, वहीं अमृतसर में +2 की परीक्षा के दौरान कुछ छात्रों ने डिप्टी सुपरीटेंडेंट पर हमला कर दिया। यह घटनायें देश और समाज के भविष्य को लेकर निश्चित रूप से डराने वाली हैं।

इस प्रकार की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि वर्तमान शिक्षा में कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ी है, जो छात्रों में नैतिक पतन के लिए जिम्मेदार है।

इसके लिए मात्र स्कूली शिक्षा प्रणाली को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, बल्कि इसमें माता-पिता की परवरिश भी अहम कारण है। क्योंकि बच्चे की प्रारम्भिक शिक्षा उसके घर से ही आरम्भ होती है।

विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ नैतिक शिक्षा प्रदान करना जहाँ स्कूलों की जिम्मेदारी है, वहीं अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना माता-पिता का भी परम कर्तव्य है। यही वह बुनियाद होती है जिस पर बच्चे का, समाज का और देश का भविष्य निर्भर करता है।

सर्वाधिक चिन्ता की बात यही है कि अब यह बुनियाद उतनी मजबूत नहीं दिख रही है।

अभी भी अधिक विलम्ब नहीं हुआ है और यह सभी की जिम्मेदारी है कि इसके पीछे के कारणों की तलाश की जाये और उसे सुधारने के लिए तत्काल कारगर उपक्रम भी किये जायें।

एक विद्यार्थी ही आने वाले कल का भविष्य होता है। उसका आने वाला भविष्य, उसकी सफलता, समाज व देश की उन्नति में उसका योगदान विद्यार्थी की स्कूली शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा पर भी निर्भर करता है।

यदि हम चाहते हैं कि बच्चे बड़े हो कर जिम्मेदार नागरिक बनें और समाज व देश के विकास में अपना योगदान दें तो हमें बुनियादी शिक्षा में आमूल-चूल सुधार करना होगा।

सभी को यह समझना होगा कि मात्र स्कूल बैग का वजन बढ़ाने और किताबी ज्ञान देने से बच्चों का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता अपितु बच्चों का मनोभाव समझते हुए उन्हें व्यवहारिक व नैतिक शिक्षा देना भी अति आवश्यक है। यह मात्र स्कूलों को ही नहीं अभिभावकों की भी जिम्मेदारी है।

लेखक - मास्टर राम एकबाल भगत, अध्यापक एवम् व्यवसायी

Friday, June 6, 2014

सफलता का त्रिकोण - काम, आराम और मनोरंजन




अधिकतर लोग केवल अधिक मेहनत करके कामयाब होने की बात को सच मानते हैं इसलिए वे अपने काम में बहुत बुरी तरह व्यस्त रहते हैं।



वे इतनी बुरी तरह व्यस्त रहते हैं कि उनके पास ना तो अपने स्वास्थ्य की देखभाल का समय होता है, ना अपने परिवार के लिए और ना ही खुद अपने लिए।

काम में बुरी तरह व्यस्त रहने वाले और बहुत अधिक मेहनत करने वाले लोग कई बार बहुत अच्छा पैसा भी बना लेते हैं, पर बहुत कुछ ऐसा गंवा भी देते हैं जो उन्हें फिर कभी वापिस नहीं मिलता।

सच्चाई यह है कि सफलता जीवन के किसी एक ही क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल करने मात्र से नहीं मिलती।

किसी एक क्षेत्र में अति करने से नहीं बल्कि जीवन के त्रिकोण का संतुलन बनाने से सफलता मिलती है।

इसलिए आज के बाद अपने जीवन को संतुलित करने का प्रयास करो।

यहाँ काम से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण नियम बताये जा रहे हैं, इनमें से अधिकतर का हर सम्भव रूप से पालन करें। कुछ ही समय बाद आप अपने जीवन को संतुलित व पूर्ण महसूस करने लगेंगे।

तो ये हैं महत्वपूर्ण नियम –

• अपने कार्य क्षेत्र का चुनाव रूचि के अनुसार करें।

• केवल उसी क्षेत्र में कार्य करें जिसमें आपका मन लगता हो, जिसमें आप खुशी-खुशी काम कर सकें, जिसमें आप पैसों के लिए नहीं बल्कि खुश रहने के लिए काम कर सकें।

• अगर किसी काम से खुश न हों, तो उसे छोड़ दें।

• जब काम करें तो खुशी से काम करें।

• अगर नौकरी करते हैं तो अपने सहकर्मियों और अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति सम्मान का भाव रखें। कभी भी अपने वरिष्ठ अधिकारियों तथा/अथवा मालिक की पीठ पीछे आलोचना ना करें।

• अगर आप अपना व्यवसाय करते हैं तो अपने कर्मचारियों के प्रति सम्मान का भाव रखें। ध्यान रखें कि आपके कर्मचारी आपके पहले ग्राहक हैं। अगर आपके कर्मचारी आपसे खुश रहेंगे तो वे आपके बाकी ग्राहकों को भी खुश रखेंगे।

• अपने काम के अनुसार लक्ष्य निर्धारित करें। हर बार लक्ष्य पूरा होने पर सभी कर्मचारियों के साथ इसका आनंद मनायें। फिल्म देखने जायें, पिकनिक पर अथवा घूमने जायें।

• ऑफिस में समूह बना कर पढ़ना आरम्भ करें। सप्ताह में एक दिन चर्चा, विचार प्रदर्शन के लिए रखें। इस दिन पढ़े हुए पर चर्चा करें। कुछ नया सीखा हो तो उस पर चर्चा करें। कार्य के विस्तार हेतू विचार सुनें-सुनायें।



• अपने, अपने परिवार के, अपने सहयोगी कर्मचारियों के जन्म-दिन, विवाह की सालगिरह आदि कर्मचारियों व उनके परिवार के साथ मनायें।

• साल में कम से कम एक बार अपने कर्मचारियों के लिए उत्साह बढ़ाने वाला कार्यक्रम करवायें। उत्साह बढ़ाने वाले कार्यक्रमों के बारे में अधिक जानकारी हेतू http://www.kdparivar.com/KD'svipinksharma/Programs.html देखें।

• हर दिन अपना काम आरम्भ करने से पहले परमात्मा की प्रार्थना करें।

• योजना बना कर काम करें। एक दिन पहले अगले दिन के कामों की एक लिस्ट बना लें। लिस्ट के कामों को महत्वपूर्ण व आवश्यक वर्ग के अनुसार वर्गीकृत करें।

• चाहे आप हर दिन 18 घण्टे काम करें, परन्तु काम के दौरान छोटे-छोटे ब्रेक लेते रहें, ताकि आप काम करने के लिए तरोताजा बने रहें।

• गानों व फिल्मों से मनोरंजन करते हुए भी तरोताजा बने रहने की कोशिश करें।

• काम के दौरान व्यक्तिगत काम न करें। व्यक्तिगत मेल, फेसबुक आदि का उपयोग न करें।

• जब थक जायें तो आराम करें। थोड़ी देर के लिए कुर्सी की पीठ से टिककर बैठ जायें। आखों को आराम से बंद कर लें। शान्ति के साथ गहरी गहरी सांसें लें।



• जब गुस्से में हो तो 1000 कदम टहलने के लिए जायें। कभी भी गुस्से के दौरान किसी मेल अथवा फोन का जवाब न दें।

• सप्ताह (7 दिनों) में केवल 6 दिन काम करें। एक दिन छुटटी का रखें। यह दिन अपने परिवार के साथ बितायें। कम से कम कुछ घण्टे अपने परिवार को दें।

• अपनी आमदन को 70/30 के नियम के अनुसार खर्च करें। 70/30 के नियम के बारे में जानकारी हेतू पैसे की समझ पुस्तिका मंगवायें। अभी http://www.kdparivar.com/store.html पर पधारें।

• अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा परिवार के साथ बाहर जाने के लिए जोड़ें।

• साल में कम से कम एक बार परिवार के साथ कुछ दिनों के लिए बाहर जायें। पहाड़ों पर, रेगिस्तान में, सागर किनारे, तीर्थ स्थानों पर, चिड़ियाघर, साइर्सं हाऊस, एटंरटेनमैंट पार्क आदि में या अपनी मर्जी से कहीं भी जायें; पर जायें अवश्य।



• कोशिश करके ऐसी जगह जायें, जहाँ आपको एकान्त में रहकर प्रकृति से जुड़ने का अवसर भी मिले।

• अपने बच्चों का प्रकृति से परिचय करायें।

• अपने साथ अपने लिए तथा बच्चों को कहानियां सुनाने के लिए किताबें लेकर जायें। किस्से-कहानियां सुनें-सुनायें।



अगर आप इन नियमों का ध्यान रखते हैं तो आपका काम आपके लिए मनोरंजन बन जायेगा और कभी भी आपको थकायेगा नहीं।

इन नियमों के अनुसार काम करने से आपको अपने काम में मनचाही तरक्की मिलेगी।

लेखक - विपिन कुमार शर्मा ‘सागर’ दिनांक - 6 जून 2014

प्रेरणादायक कहानी - गलतियों से सीखना




यह कहानी एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक के बारे में है, जिसने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में बहुत से महत्वपूर्ण योगदान दिये।

एक बार एक अखबार का पत्रकार उनका साक्षात्कार ले रहा था। पत्रकार ने उनसे पूछा कि वे आम आदमी के मुकाबले इतना अधिक काम कैसे कर पाये? उनमें ऐसा क्या है जो उन्हें औरों से अलग बनाता है।

वैज्ञानिक ने जवाब दिया, “मेरे ख्याल से, इसका कारण बचपन में अपनी माताजी के साथ हुए एक अनुभव में छिपा है, जब मैं 2 साल का था। मैं फ्रिज से दूध की बोतल निकालने की कोशिश कर रहा था। अचानक बोतल मेरे हाथों से छूट गई और सारा दूध रसोई के फर्श पर बिखर गया।

जब मेरी माँ रसोई में आई तो उसने मुझे डांटने, भाषण देने या सजा देने के बजाये मुझसे कहा राबर्ट मैंने इतना दूध कभी भी फैले हुए नहीं देखा। देखो, नुक्सान तो हो चुका है। क्या इसकी सफाई करने से पहले तुम इसमें थोड़ी देर खेलना चाहोगे?

और मैंने ऐसा ही किया। थोड़ी देर बाद माँ ने मुझसे कहा राबर्ट, जब भी तुमसे ऐसी कोई गलती हो जाये तो ध्यान रखना कि तुम्हें ही सफाई करनी होगी और चीजों को पहले की तरह सम्भाल कर रखना होगा।

तो तुम सफाई कैसे करना चाहोगे? स्पोंज से, तौलिये से या पौचे से? तुम क्या लेना पसंद करोगे?

मैंने स्पोंज लिया और फिर हम दोनों ने मिलकर फैले हुए दूध को साफ किया।

इसके बाद मेरी माँ ने कहा राबर्ट, क्या तुम्हें पता है कि अभी-२ तुमने दो छोटे-२ हाथों से दूध की बोतल को उठाने का असफल अनुभव किया है? अब तुम एक काम करो। घर के पीछे यार्ड में चले जाओ और बोतल में पानी भर कर ये देखो कि तुम बोतल को बिना गिराये कैसे सम्भाल कर ले जा सकते हो। उस दिन एक छोटे से बच्चे के रूप में मैंने ये सीखा कि यदि मैं बोतल को गर्दन से पकड़ लूँ तो उसे गिराये बिना आसानी से कहीं भी ले जा सकता हूँ।

कितना शानदार सबक है?

इस प्रसिद्ध वैज्ञानिक को उस दिन बाद में यह भी पता चला कि उसे गलतियां करने से डरना नहीं चाहिये। उसने यह सीखा कि गलतियां कुछ और नहीं बल्कि कुछ नया सीखने का अवसर होती हैं।

वैज्ञानिक ने बताया, “इसी सबक की वजह से मैंने अपने सभी वैज्ञानिक प्रयोग किये हैं।”

वैज्ञानिक ने बताया, “मेरे सभी प्रयोगों की जड़ में यही सबक निहित होता है। अगर मेरा कोई प्रयोग सफल नहीं होता तो भी हम उस प्रयोग से कुछ न कुछ सीखते ही हैं।

भले ही कोइ खास मकसद से किया जाने वाला प्रयोग असफल हो जाये, तो भी वह होता तो प्रयोग ही है।

हम गलत साबित हो जायें तो भी हम गलतियां करना नहीं छोड़ते।

बस इसी बात ने हमें बहुत से अविष्कार दे दिये।

एक नया अविष्कार करने के हजारों असफल प्रयोगों ने हमें कई अविष्कार दिये।

हमने गलतियां करना नहीं छोड़ा, हर बार गलती से सीखा, फिर उसी गलती को दोहराये बिना फिर से प्रयोग किया।

यही वो बात है जिसकी वजह से हम इतना कुछ कर पाये।

गलतियां ना करना और गलतियों को दोहराये बिना फिर-फिर गलतियां करते रहना ही मेरी वो आदत है जो मुझे औरों से अलग करती है।”

ये सच्ची कहानी प्रसिद्ध वैज्ञानिक थामस एल्वा एडीसन की है, जिनके नाम 1,093 पेटैण्ट दर्ज हैं।



कहानी से मिलने वाली शिक्षा

आपने भी कभी न कभी जीवन में किसी काम में कोइ गलती की होगी। आप भी कभी किसी काम में असफल हुये होंगे।

तब आपने क्या किया था?

क्या आपने गलतियां करना, असफलता के बाद भी प्रयास करते रहना जारी रखा था, या छोड़ दिया था?

अब आप क्या करते हैं?

अगर आप जीवन में सफलता पाना चाहते हैं तो इस सबक को याद रखें।

“असफलता पाने के बाद भी प्रयास जारी रखें। गलतियां करने से ना डरें। गलतियों को दोहरायें नहीं।”

चाहे आप दुनिया का कोई भी काम करते हों अगर आप इस सबक को ध्यान में रखते हैं तो आप अपने काम में मनचाही उपलब्धि हासिल कर सकते हैं।

आप मनचाहे लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।



अन्त में गलतियों से सीखने का एक और सबक

सभी गलतियां खुद न करने बैठ जायें, दूसरों की गलतियों से भी सीखें।



अगला लेख -

गलतियों से किस तरह सीखें?

जल्द ही के. डी. परिवार के ब्लोग http://kdsakhir.blogspot.in पर प्रकाशित होगा।

लेखक - विपिन कुमार शर्मा ‘सागर’ दिनांक - 6 जून 2014

Thursday, June 5, 2014

प्रेरणादायक कहानी - अवसर को हाथ से जाने ना दें






एक जवान लड़का अपनी प्रेमिका से शादी करना चाहता था। इसके लिए वह प्रेमिका के पिता से इजाजत लेने गया।

प्रेमिका के पिता ने लड़के को बड़े ही गौर से देखा और कहा, “सुनो बेटा। अगर तुम मेरी लड़की से शादी करना चाहते हो तो तुम्हें एक परीक्षा देनी होगी।

तुम मैदान के बीच में खड़े हो जाओ। मैं तुम्हारे ऊपर एक-एक करके तीन बैल छोड़ूँगा। अगर तुमने किसी भी एक बैल की पूँछ पकड़ ली तो मैं अपनी बेटी की शादी तुम्हारे साथ कर दूँगा।”

लड़का इसके लिए तैयार हो गया।

वह मैदान में जाकर खड़ा हो गया और पहले बैल का इंतजार करने लगा।

बाड़े का दरवाजा खुला और एक बहुत बड़ा बैल उससे बाहर का निकला। लड़के ने कभी इतना बड़ा बैल नहीं देखा था। उसने सोचा कि इस बैल की पूँछ पकड़ने से अच्छा है कि दूसरे बैल का इंतजार किया जाये। इसलिए वह एक किनारे हो गया और बैल को दूसरे दरवाजे से बाड़े के अदंर जाने दिया।

फिर बाड़े का दरवाजा दोबारा खुला। इस बार पहले से भी अधिक बड़ा और खतरनाक बैल दिखाई दिया।

ये बैल जोर जोर से रम्भा रहा था। अपने सींगों और खुरों से जमीन को रौंद रहा था। लड़के ने सोचा कि इस बैल को पकड़ने का खतरा उठाने के बजाये क्यों ना तीसरे बैल का इंतजार किया जाये।

इसलिए वह फिर से एक किनारे हो गया और बैल का निकल जाने दिया।

तीसरी बार बाड़े का दरवाजा खुला। इस बार बैल को देखकर लड़का मुस्कुराया। इस बार वाला बैल कमजोर और छोटे कद का था। वह इस बैल की पूँछ को आसानी से पकड़ सकता था। जैसे ही बैल बाहर की ओर दौड़ा लड़का तैयार हो गया और मौका पाते ही बैल की पूँछ पकड़ने के लिए लड़के ने छलांग लगाई।

लेकिन ये क्या ?

इस बैल की तो पूँछ ही नहीं थी।

कहानी से मिलने वाला सबक

जीवन अवसरों से भरा हुआ है। कुछ लोग आसानी से अवसर का लाभ उठा लेते हैं, लेकिन कुछ लोगों के लिए यह मुश्किल होता है। कुछ लोगों का हर अवसर आसान लगता है तो कुछ लोग हर अवसर में मुश्किल देख लेते हैं।

जिन्हें अवसर में मुश्किल नजर आती है वे अवसर का लाभ उठाने के बजाये मैदान छोड़ जाते हैं। लेकिन एक बार अगर अवसर चला जाये तो यह दोबारा नहीं मिलता।

इसलिए पहला अवसर सामने आते ही उसका लाभ उठा लेना चाहिये।

Thursday, May 29, 2014

सफलता का एक और नियम - पोस्टर पॉजिटिव


सफलता का नियम - पोस्टर पॉजिटिव


लम्बा जीवन चाहते हैं तो लक्ष्य निर्धारित करें


क्या आप लम्बी आयु का आनंद उठाना चाहते हैं?

यदि हां तो आज ही अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करें।

हाल ही में हुए शोधों के अनुसार लक्ष्य निर्धारित करने वाले लोग लम्बी आयु भोगते हैं।

यानि लक्ष्य निर्धारित करना ना केवल जीवन में सफलता हासिल करने के लिए अनिवार्य है बल्कि यह आयु को लम्बा करने का तरीका भी है।

है ना मजेदार! तो आज ही अपना लक्ष्य निर्धारित करें।

अगर लक्ष्य निर्धारण करने में कोइ समस्या आये तो के. डी. परिवार से टी एफ एस (टूल फोर सक्सेस) - 1 फ्री में मंगवायें।

निःशुल्क टी एफ एस 1 मंगवाने के लिए info@kdparivar.com पर अभी मेल भेजें।

(दैनिक भास्कर से धन्यवाद सहित)

Wednesday, May 28, 2014

अमीरी और कामयाबी की रैसीपी


क्या आप जानते हैं कि सफलता के केन्द्र में अमीरी छिपी है? क्या आप जानते हैं कि अमीर बनने के लिए अथवा सफल होने के लिए आपको बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता होती है? चलिये आज से अपना सीखना आरम्भ करें। अपने व्यक्तिगत सफलता गुरू मि. टी. एस. मदान से आज जानें अमीरी और कामयाबी की रैसीपी। अपने व्यक्तिगत सफलता गुरू मि. टी. एस. मदान का यह वीडियो देखें।

https://www.youtube.com/watch?v=ZzFeh2OhmK0



कृपया अपने विचारों - सुझावों से के. डी. परिवार को अवश्य अवगत करायें।

Wednesday, May 14, 2014

महादेव से सीखा



भगवान शिव उवाच

* जो ज्ञान का संचय करता है उसे वर्तमान, भूत और भविष्य सब ज्ञात रहता है।
* संतान की कल्पनाओं को दिशा देना माता-पिता का कर्तव्य होता है।
* बिना ज्ञान के सम्पत्ति का कोइ मूल्य नहीं है।
* उस लाभ का क्या महत्व जिसके साथ शुभ ना हो।
……………… जारी रहेगा

Thursday, May 8, 2014

शख्सियत - बाकि है जिनके दम से ............................


तनाव कम करने के लिए उपयुक्त भोजन

आज का जीवन भागमभाग और आपाधापी से भरा हुआ है। जिसे देखो जल्दी लगी है। ऐसे में एक व्यक्ति का तनाव में आ जाना बहुत ही मामूली बात है।

तनावमुक्त रहने का एक आसान तरीका है - उपयुक्त भोजन लेना।

इस लेख में हम आपको बता रहे हैं कुछ इस तरह के भोजन के बारे में जो आपको तनावमुक्त रहने में मदद करेगा।

• सबसे पहले तो यह निश्चित करें कि आपको अपने भोजन से मैग्नीशियम, जिंक और विटामिन बी १२ भरपूर मात्रा में मिले।

• मैग्नीशियम आपके दिमाग को ओवररिएक्ट करने से रोकता है और बढ़ते तनाव को रोकता है।

• जिंक और विटामिन बी १२ मूड के संतुलन को बनाये रखने में मददगार होते हैं।

• पालक और साबुत अनाज से बने पास्ते से आपको अच्छी मात्रा में मैग्नीशियम मिल जाता है। इसलिए अगर तनाव हो तो पालक अथवा साबुत अनाज से बना पास्ता खायें।

• मूड खराब हो तो बादाम खायें। बादाम से आपको विटामिन बी १२ और जिंक मिलते हैं जो आपके खराब मूड को संतुलित करने में आपकी मदद करेंगे।

• मूड सही ना हो तो जइ के आटे (ओट्स) को भोजन में शामिल करें। जइ के आटे में कार्बोहाइर्ड्रेट्स होते हैं। कार्बोहाइर्ड्रेट्स से हमारे शरीर में सेरोटिन बनता है। सेरोटिन मूड को अच्छा रखने और मन को शान्त बनाये रखने में बहुत सहायक होता है।

• बढ़ते तनाव के साथ ब्लड प्रैशर के बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है। इसके लिए संतरे का सेवन करें। संतरे में विटामिन सी होता है जो ब्लड प्रैशर को कम करने का काम करता है। इसके अलावा विटामिन सी तनाव बढ़ाने वाले हारमोन कोर्टिसोल को भी कम करता है।

• नाश्ते पर ध्यान दें। आपका पूरा दिन तनाव मुक्त रहे इसके लिए नाश्ते में टोस्ट या सैंडविच शामिल करें।

• सब की मनपसंद चाकलेट भी तनाव कम करने में बहुत सहायक है। इसलिए जब कभी तनाव में हो तो एक चाकलेट खायें और मस्त हो जायें।

आशा है कि इन छोटी-२ पर बहुत काम की बातों को ध्यान में रखने से आप अपने तनाव को नियंत्रित कर पायेंगे।

इनके अलावा अपने तनाव की असल वजह को भी दूर करने की कोशिश करें।

अगर आप अपनी परेशानी की वजह और उसे दूर करने का रास्ता नहीं खोज पा रहे तो आज ही के. डी. परिवार से सम्पर्क करें।

अभी kdparivar@gmail.com पर मेल करें। आपकी मदद करके हमें बेहद ख़ुशी होगी।