Sunday, October 4, 2020

सफलता के चार पुरूषार्थ

अगर आप जीवन में वास्तविक सफलता हासिल करना चाहते हैं तो इस लेख को पूरा पढ़ें।
आज के इस लेख में मैं आपके लिये एक बहुत ही खास जानकारी लेकर आया हूँ। ये जानकारी आपकी सफलता के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है।
दोस्तों, जैसा कि आप जानते ही होंगे कि मैं पिछले 20 से अधिक वर्षों से नौकरी के साथ-साथ के. डी. परिवार के नाम से अपना एक एन.जी.ओ. भी चला रहा हूँ। के. डी. परिवार सफलता की शिक्षा व ज्ञान को समर्पित एक परिवार है, जो जरूरतमंद लोगों तक जीवनोपयोगी और रोजगार-परक शिक्षा उपलब्ध करवाता है। इस एन.जी.ओ. के माध्यम से हम सफलता सम्बन्धी विषय पर 20 से अधिक वर्षों से अध्ययन और अनुसंधान कर रहे हैं। सफलता सम्बन्धी अपने इस अध्ययन और अनुसंधान को हम ‘‘सफलता का ज्ञान-अनुसंधान यज्ञ’’ कहते हैं।
सफलता के इस ज्ञान-अनुसंधान यज्ञ में हम सफलता सम्बन्धी विषय पर ना केवल अध्ययन करते हैं, बल्कि अध्ययन करने के बाद हम हासिल ज्ञान को जीवन में लागू भी करते हैं और इसे दूसरे लोगों के साथ शेयर भी करते हैं।
हमारे इस सफलता सम्बन्धी ज्ञान-अनुसंधान यज्ञ से अब तक हजारों लोग सफलता-लाभ हासिल कर चुके हैं। अब आपकी बारी है।
आज के इस लेख में आप यह भी जानेंगे कि जीवन में सफलता हासिल करने के लिये आपको किन क्षेत्रों का ध्यान रखना होगा और साथ ही आप यह भी जानेंगे कि इन क्षेत्रों का ध्यान रखने के लिये आपको किस तरह के ज्ञान की आवश्यकता होगी और यह ज्ञान आप किन पुस्तकों अथवा किन स्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं। इसलिये आपसे पुनः प्रार्थना है कि इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
तो आईये, बात करते हैं आपकी सफलता के बारे में और सफलता देने वाले चार पुरूषार्थों के बारे में।

सफलता के चार पुरूषार्थ
जो व्यक्ति जीवन में सफल होना चाहते हैं उन्हें अपने जीवन का बहुत ही समझदारी और सावधानी के साथ प्रबन्धन यानि मैनेजमैंट करना होगा।
जीवन के ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहाँ आपको मैनेजमैंट करना होगा। सफलता सम्बन्धी अपने लगभग 20 से अधिक वर्षों के अध्ययन, शोध और अभ्यास के बाद हमने यह पाया है कि अगर आप अपने जीवन के केवल चार क्षेत्रों को सही ढंग से प्रबन्धित यानि मैनेज कर लेते हैं तो आप सरलता से सफलता हासिल कर सकते हैं। इन्हीं चार क्षेत्रों को हम सफलता के चार पुरूषार्थ कहते हैं।
सफलता हेतू मैनेज करने के लिये ये चार क्षेत्र इस तरह हैं –
o स्व-प्रबन्धन यानि सैल्फ मैनेजमैंट

o धन-प्रबन्धन यानि मनी मैनेजमैंट

o समय-प्रबन्धन यानि टाईम मैनेजमैंट

o जन-प्रबन्धन यानि प्यूपिल मैनेजमैंट


आगे हम विस्तार से इस बात पर चर्चा करेंगे कि क्यों सिर्फ ये चार तरह की मैनेजमैंट ही सफलता के लिये अनिवार्य हैं।
पहले यह समझिये कि इस मैनेजमैंट को हम पुरूषार्थ क्यों कहते हैं।
भारतीय संस्कृति में पुरूषार्थ की अवधारणा भौतिक एवम् आध्यात्मिक जगत के बीच संतुलन स्थापित करती है। पुरूषार्थ के माध्यम से ही मनुष्य के जीवन का सम्पूर्ण विकास हो पाता है।
संस्कृत के इस शब्द पुरूषार्थ का अर्थ है - मानव के उद्देश्य एवम् लक्ष्य का विषय। साधारण शब्दों में कहें तो अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये मानव जो प्रयत्न करता है उसे पुरूषार्थ कहते हैं।
इसका एक और अर्थ भी है। पुरूष का अर्थ है विवेकशील प्राणी तथा अर्थ का मतलब है लक्ष्य। इसलिये पुरूषार्थ का मतलब हुआ - विवेकशील प्राणी का लक्ष्य। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक व्यक्ति जिन उपायों को अपनाता है, वे उपाय पुरूषार्थ कहलाते हैं।
आमतौर पर शास्त्रों में चार पुरूषार्थों का जिक्र किया गया है - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।

इन चार पुरूषार्थों को आप अपनी सफलता रूपी वाहन के चार पहिये मान सकते हैं। आपकी सफलता के वाहन के दो अगले पहिये हैं - धर्म और अर्थ। काम और मोक्ष इस वाहन के दो पिछले पहिये हैं।
आईये, मानव के सम्पूर्ण विकास हेतू इन चारों पुरूषार्थों के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं।

o प्रथम पुरूषार्थ: धर्म यानि स्व-प्रबन्धन यानि सैल्फ मैनेजमैंट - सैल्फ मैनेजमैंट अर्थात् स्वयं को अच्छी तरह से जानना, अपने गुण-दोषों को समझना और उनके अनुसार कार्य का चुनाव करना। यही धर्म है। शास्त्रों के अनुसार धर्म का भाव है स्वयं के स्वभाव, स्वधर्म और स्वकर्म को जानते हुये कर्तव्यों का पालन करना।
किसी भी मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यही है कि वो सबसे पहले स्वयं को अच्छी तरह से जान ले। यह कार्य सफलता की ओर आपका पहला चरण भी है।
स्व-प्रबन्धन अर्थात् सैल्फ मैनेजमैंट में जो विषय आते हैं वो इस प्रकार हैं –
* अपने स्वास्थ्य का प्रबन्धन
* अपने सपनों का प्रबन्धन - आपके जीवन का मकसद क्या है?
* अपने विचारों का प्रबन्धन
* अपनी आदतों का प्रबन्धन
* अपने गुण व दोषों का प्रबन्धन
* अपनी शख्सियत यानि पर्सनैलिटी का प्रबन्धन
* अपने शब्दों का प्रबन्धन
* अपनी आत्मिक शक्ति का प्रबन्धन
* तय करें कि आप आज क्या हैं और भविष्य में क्या बनना चाहते हैं
* जो भी बनना चाहते हैं उसके जैसा व्यवहार आज से ही शुरू कर दें

* स्व-प्रबन्धन हेतू किताबें
सोचिये और अमीर बनिये - नेपोलियन हिल
बड़ी सोच का बड़ा जादू - डेविड जे. श्वाटर्ज
शिखर पर मिलेंगे - जिग जिगलर
बड़े सपने देखें - बॉब बेहल और पॉल स्वैट्स
लक्ष्य- ब्रायन ट्रेसी
चिन्ता छोड़ो सुख से जीओ - डेल कारनेगी
आपके अवचेतन मन की शक्ति – डॉ. जोसेफ मर्फी
आपके अवचेतन मन की शक्ति से आगे - सी. जेम्स जैन्सन
अधिकतम सफलता - ब्रायन ट्रेसी
मुश्किलें हमेशा हारती हैं - शुलर
यू इंक. - बर्क हेजेस
आदर्श स्वास्थ्य क्रान्ति – ड्यूक जॉनसन
क्या आपका डॉक्टर पोषक तत्वों के बारे में जानता है - रे डी. स्ट्रैंड
अति प्रभावशाली लोगों की 7 आदतें - स्टीफन कोवी
सन्यासी जिसने अपनी सम्पत्ति बेच दी – रॉबिन शर्मा

o द्वितीय पुरूषार्थ: अर्थ यानि धन-प्रबन्धन यानि मनी मैनेजमैंट - शास्त्रों के अनुसार अर्थ की परिभाषा है - जिसके द्वारा भौतिक सुख-समृद्धि की सिद्धि होती हो। अर्थ का सम्बन्ध धन से है और धन-प्रबन्धन का मतलब है - अपनी कमाई हुई आमदन को खर्च करने का सही ढंग।
यहाँ आपके लिये कुछ सुझाव हैं जिनसे आप अपने इस द्वितीय पुरूषार्थ को सिद्ध कर सकते हैं यानि अपनी मनी को मैनेज करते हुये सफलता की प्राप्ति कर सकते हैं –
* अर्थ का उपयोग अपने स्वयं के शरीर, मन, परिवार, समाज और राष्ट्र को पुष्ट करने के लिये होना चाहिये।
* अपने खर्चों को नियंत्रित करें
* अपने खर्चों पर निगाह रखें
* अपने खर्चों को लिख कर करना शुरू करें
* अपनी आमदन को प्रबन्धित करें
o सबसे पहले खुद को पैसा दें
o 70-30 के नियम का पालन करें
o 10 प्रतिशत दान के लिये निकालें और इसे तब खर्च करें जब आपको कोई मजबूर मिले। आप इस पैसे को धर्म स्थान में दे सकते हैं। इससे किसी की मदद कर सकते हैं।
o 10 प्रतिशत बचत के लिये निकालें - इसे एक अलग बैंक एकाउंट में रख दें और रख कर भूल जायें।
o 10 प्रतिशत निवेश के लिये निकालें - निवेश का आरम्भ सीखने से करें। इस पैसे को नये हुनर हासिल करने के लिये किताबों और कोर्सेस पर खर्च करें। इसके अलावा थोड़े बहुत शेयर्स खरीदना शुरू करें। इस पैसे से सोना-चाँदी खरीदें। धीरे-धीरे इस पैसे को बड़ा करते हुये ऐसी सम्पत्तियां खरीदनी शुरू करें जो आपकी जेब में पैसा डालें।
o बाकी बचे हुये 70 प्रतिशत को पूरी बेदर्दी से अपने ऊपर खर्च करें।
o अगर आप 30 प्रतिशत अलग नहीं निकाल सकते तो यह सोचें कि अगर किसी माह आपकी आमदन ही कम आयेगी तो आप क्या करेंगे? आप अपना काम छोड़ कर दूसरा काम तलाश करेंगे या आई हुई आमदन में गुजारा करेंगे?

* धन-प्रबन्धन हेतू किताबें
• पैसे की समझ - विपिन सागर (यह पुस्तक मंगवाने के लिए kdparivar@gmail.com पर मेल करें)
रिच डैड पूअर डैड - रॉबर्ट कियोसाकी
कैशफ्लो क्वाड्रैंट - रॉबर्ट कियोसाकी
बिजनेस स्कूल - रॉबर्ट कियोसाकी
नैट कहानियां - विपिन सागर
हम आपको अमीर क्यों बनाना चाहते हैं - रॉबर्ट कियोसाकी
ऑन योअर ऑन कॉर्पोरेशन - रॉबर्ट कियोसाकी (English)
बिफोर यू क्विट फ्रॉम जॉब - रॉबर्ट कियोसाकी (English)
रिच डैड’स गाइड टू इन्वेस्टिंग - रॉबर्ट कियोसाकी (English)
रिटायर यंग रिटायर रिच - रॉबर्ट कियोसाकी
इफ यू वांट टू बी रिच दैन डोन्ट गो टू स्कूल (English) - रॉबर्ट कियोसाकी
बी रिच एंड हैप्पी - रॉबर्ट कियोसाकी (English)
21वीं सदी का व्यवसाय - रॉबर्ट कियोसाकी
सीक्रेट्स ऑफ़ द मिलेनियर माईंड - टी. हार्व एकर
दौलत और ख़ुशी की 7 रणनीतियां - जिम रॉन
रोमांसिंग द बैलेंस शीट - अनिल लाम्बा (English)
दौलत के नियम - रिचर्ड टैम्पलर

o तृतीय पुरूषार्थ: काम अर्थात् समय-प्रबन्धन यानि टाईम मैनेजमैंट- वैसे तो शास्त्रों में काम को कामना (इच्छा) कहा गया है। लेकिन सफलता सम्बन्धी अपने अध्ययन में हमने इस ‘काम’ को कार्य यानि वर्क माना है।
आपके द्वारा किये जाने वाले कार्य अगर समयानुसार हों तो आपके लिये सफलता हासिल करना बहुत ही सरल हो सकता है। इसलिये हमने काम का अर्थ लिया है समय-प्रबन्धन।
समय-प्रबन्धन के लिये कुछ सुझाव इस प्रकार हैं –
* समय ही आपका असली धन है
* इसे धन से भी अधिक समझदारी से खर्च करें
* अपने समय का बहुत ही समझदारी से प्रबन्धन करें
* प्रत्येक माह की पहली तारीख या उससे भी पहले अगले माह का शैड्यूल बनायें
* प्रत्येक सप्ताह के पहले दिन यानि सोमवार या उससे पहले दिन यानि रविवार को अगले सप्ताह का शैड्यूल बनायें
* प्रत्येक दिन की शुरूआत में या उससे पिछले दिन के अंत (पिछली रात) में अपने अगले दिन का सुबह से लेकर शाम तक का शैड्यूल बनायें
* दुनिया का हर सफल व्यक्ति अपने समय को समझदारी से इस्तेमाल करता हुआ इसका भरपूर उपयोग करता है यानि वह शैड्यूल बना कर अपने काम करता है
* अगर आप भी सफल होना चाहते हैं तो अपने समय का भरपूर इस्तेमाल करना सीखें

* समय-प्रबन्धन हेतू किताबें
आपके साथ समय की शक्ति - बिल क्वैन
कार्य के नियम - रिचर्ड टैम्पलर
टाईम मैनेजमैंट - सुधीर दीक्षित
समय का प्रबन्धन - मैशेन मैकडॉनल्ड
सबसे मुश्किल काम सबसे पहले - ब्रायन ट्रेसी

o चतुर्थ पुरूषार्थ: मोक्ष अर्थात् जन-प्रबन्धन यानि प्यूपिल मैनेजमैंट- मोक्ष का साधारण अर्थ है - मुक्ति। एक व्यक्ति अपने काम और अपनी जिम्मेदारियों से तभी मुक्त हो सकता है जबकि वह अपना काम और जिम्मेदारियों को किसी अन्य को सफलतापूर्वक सौंप दे।
सफलता हासिल करने के लिये एक व्यक्ति को अपनी टीम का निर्माण करना और उस टीम को लीड करना होता है। एक टीम लीडर तभी सफल माना जाता है जब वह खुद फ्री यानि मुक्त रहते हुये अपनी टीम से भरपूर काम ले पाता है।
जन-प्रबन्धन को सिद्ध करने के लिये कुछ सुझाव इस प्रकार हैं –
* लोगों के बिना आप सफलता हासिल नहीं कर सकते
* आप अकेले अच्छा पैसा तो बना सकते हैं लेकिन सफलता हासिल करने के लिये आपको लोगों की टीम की आवश्यकता होगी
* टीम में लोगों का प्रबन्धन करना सीखें
* लोगों के प्रबन्धन की शुरूआत अपने घर से करें
* जन-प्रबन्धन की मेरी सबसे अधिक पसंदीदा परिभाषा यह है - जन-प्रबन्धन का अर्थ होता है लोगों से अपना मनचाहा वो काम खुशी-खुशी करवा लेना जो असल में वो करना ही नहीं चाहते
* इसके लिये आपको सबसे पहले तारीफ करने की आदत डालनी होगी
* आपको लोगों के गुणों व दोषों को पहचानना सीखना होगा
* आपको लोगों के हुनर को पहचान कर उनसे काम लेना सीखना होगा
* लोगों के साथ व्यवहार करते समय आपको यह ध्यान रखना होगा कि वे लीडरशिप के किस स्तर पर हैं - प्राथमिक, मध्यम, या उच्च
* हर स्तर के व्यक्ति को पहचान कर उस व्यक्ति के साथ उसी स्तर के अनुरूप व्यवहार करें
* यह विश्वास रखें कि दुनिया अच्छे लोगों से भरी हुई है
* शिकायत करेंगे तो शिकायत करने का मौका देने वाले लोग ही मिलेंगे, प्रशंसा करेंगे तो प्रशंसा करने का मौका देने वाले लोग ही मिलेंगे
* जानवर भी सच्चे प्रेम, सम्मान और अपनेपन को पहचान लेता है, इसलिये लोगों से सच्चा प्रेम करें, उन्हें सच्चा सम्मान दें और सच्चे अपनेपन से उन्हें अपना बनाये रखें

* जन-प्रबन्धन हेतू किताबें
लोक व्यवहार - डेल कारनेगी
ऐसी वाणी बोलिये - पॉल डब्ल्यू. स्वैट्स
लोकप्रिय बनने की कला - डॉन गैबर
टीम खिलाड़ी के 17 अनिवार्य गुण - जॉन सी. मैक्सवैल
कैसे बनें लोक व्यवहार कुशल - लेस गिबलिन
प्रेम के नियम - रिचर्ड टैम्पलर
परवरिश के नियम - रिचर्ड टैम्पलर
संवाद का जादू - टैरी फैल्बर
बच्चों का विकास कैसे करें - सर श्री
वन मिनट मैनेजर - कैनेथ ब्लैंचर्ड
सफल लीडर कैसे बनें - जॉन एच. येगर व जोसेफ फोसमैन
मैनेजमैंट के नियम - रिचर्ड टैम्पलर
मैन आर फ्रॉम मार्स वूमैन आर फ्रॉम वीनस - जॉन ग्रे (English)
प्रेम की पाँच भाषायें - गैरी चैपमैन
21वीं सदी का लोक व्यवहार - एलेन पीस, बारबारा पीस
लोगों को सर्वश्रेष्ठ कैसे बनायें - एलेन लॉय मैक्गनीस
मिलकर काम करने के 17 कारगर नियम - जॉन सी. मैक्सवैल
पारिवारिक सफलता के सूत्र - रॉबिन शर्मा
ऑफिस में बॉडी लैंग्वेज - एलेन व बारबारी पीस
अपनी टीम के लीडर्स को विकसित कैसे करें - जॉन सी. मैक्सवेल
आप भी लीडर बन सकते हैं - डेल कारनेगी
लीडर के 21 अनिवार्य गुण - जॉन सी. मैक्सवेल
व्यवहार कुशलता - लेस गिबलिन
लोक व्यवहार में कुशलता - लेस गिबलिन (English)

इस लेख में जिन किताबों का जिक्र किया गया है, वो केवल वही किताबें हैं, जिनका लेखक ने स्वयं अध्ययन किया हुआ है। इन किताबों से लेखक सहित लाखों लोग लाभ उठा चुके हैं, अब आपकी बारी है। अपनी ज़रूरत और पसंद के अनुसार कोई भी किताब चुनें और अपनी सफलता की यात्रा पर तेज़ी से आगे बढ़ चलें। किताब के नाम पर क्लिक करके आप उस किताब को आकर्षक छूट के साथ डिस्काउंटेड रेट पर घर बैठे (ऑन लाइन) खरीद सकते हैं।
अगर आप इन उपरोक्त चारों क्षेत्रों - स्व-प्रबन्धन, धन-प्रबन्धन, समय-प्रबन्धन तथा जन-प्रबन्धन, में उचित प्रबन्धन कर लेते हैं तो आप सरलता से सफलता हासिल कर सकते हैं।

इस सम्बन्ध में इस बात का ध्यान रखें कि जैसा पहले भी कहा गया कि ये चार पुरूषार्थ आपके सफलता रूपी वाहन के चार पहिये हैं। जिस प्रकार एक वाहन के समुचित चालन हेतू चारों पहियों का उत्तम होना अनिवार्य है उसी प्रकार आपकी सफलता हेतू भी इन चारों क्षेत्रों का प्रबन्धन अनिवार्य है।
अगर किसी वाहन के चारों पहियों में से कोई एक पहिया भी ठीक नहीं होगा, यानि उसमें हवा कम होगी या वो खराब होगा तो आपका वाहन या तो चलेगा ही नहीं या फिर वो खराब ढंग से चलेगा। वाहन के चारों पहिये सही होंगे तभी आपका वाहन सही ढंग से और आवश्यक गति से चल पायेगा।
इसी प्रकार सफलता हासिल करने के लिये भी ये चारों क्षेत्र सही ढंग से मैनेज होने चाहियें। इनमें से यदि कोई एक क्षेत्र भी खराब होगा तो या तो आप अपनी सफलता की यात्रा आरम्भ ही नहीं कर पायेंगे या आपकी यात्रा को सही गति नहीं मिलेगी।
इसलिये अगर आप सफलता हासिल करना चाहते हैं तो अपने जीवन के इन चार महत्वपूर्ण क्षेत्रों को मैनेज करने का अभ्यास शुरू कर दें।
अंत में एक और महत्वपूर्ण बात।
पुरूषार्थ का एक भाव यह भी है कि इसे साधना पड़ता है। यह अपने आप नहीं होता। इसी तरह जीवन में सफलता हासिल करने के लिये यहाँ बताये गये चारों क्षेत्रों को आपको खुद मैनेज करना ही होगा। ये अपने आप मैनेज नहीं होते। बल्कि अगर आपने इन पर या इनमें से किसी एक पर ध्यान नहीं दिया तो ये आपके जीवन को व्यर्थ कर सकते हैं।
अगर आप इन चारों क्षेत्रों को मैनेज करने के लिये और भी जानकारी चाहते हैं या इनके सम्बन्ध में ट्रेनिंग हासिल करना चाहते हैं तो kdparivar@gmail.com पर अभी मेल भेजें।
हमें पूरी उम्मीद है कि आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा। अगर आपको ये लेख पसंद आया है तो इस पर कमेंट करें और इसे लोगों के साथ शेयर करें।
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लेख को पूरा पढ़ने के लिये धन्यवाद।
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Friday, March 27, 2020

आनन्द – घर बैठे काम करें और हजारों रूपये कमायें (नई नैट कहानी) (लेखक - सफलता गुरु विपिन सागर)

आपका 50% रिटर्न गिफ्ट - नई नैट कहानी

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मेरी सभी नैट कहानियों की तरह ये नई नैट कहानी भी नैटवर्कर्स यानि डायरैक्ट सैलर्स के उस समूह को समर्पित है जो हर हाल में सकारात्मक रहते हुये अपने जीवन को तो बेहतर बनाते ही हैं, साथ ही लोगों के लिये आदर्श बनकर दूसरों का जीवन भी बेहतर बनाने हेतू प्रयासरत रहते हैं। मैं ऐसे बहुत से लोगों से मिला हूँ और सौभाग्य से उनके साथ काम भी किया है। ऐसे लोग ही मेरी कहानियों की प्रेरणा भी बनते हैं।

इसके साथ-साथ ये नई नैट कहानी उन सभी पाठकों के लिये 50% रिटर्न गिफ्ट भी है जिन्होंने मेरी किताब ‘‘नैट कहानियाँ 21वीं सदी के बिजनेस की’’ पढ़ी है (बाकी के 50% रिटर्न गिफ्ट के लिए अभी थोड़ा इंतज़ार करें)। आप सभी पाठकों ने मेरी किताब को जो भरपूर प्यार और सम्मान दिया है, इसके लिये आपका बहुत-बहुत आभार। बहुत जल्द ‘‘नैट कहानियाँ 21वीं सदी के बिजनेस की’’ पुस्तक का दूसरा भाग भी आपके सामने होगा।

तब तक ‘‘नैट कहानियाँ 21वीं सदी के बिजनेस की” कहानियों और इस नई नैट कहानी का अपने बिजनेस में उपयोग करते रहें। इन कहानियों से खुद भी सीख हासिल करते रहें और अपनी टीम को लाभ पहुँचाने के लिये भी इन कहानियों का उपयोग करते रहें।

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नोट - इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं। व्यक्ति और स्थानों के नाम केवल कथानक को मनोरंजक बनाने के लिये उपयोग किये गये हैं। किसी व्यक्ति के साथ नाम की समानता मात्र संयोग होगी।

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आनन्द की उम्र 70 वर्ष थी।

जब वो छोटा था तो उसके बहुत बड़े-बड़े सपने थे। इतने बड़े कि उसके खुद के घर के लोग भी उसे शेखचिल्ली, बड़बोला और पागल कह कर बुलाते थे।

सपने देखने वाले लगभग हर व्यक्ति को इन्हीं नामों के साथ सम्मानित(!) किया जाता है। उसका सहयोग करना तो दूर की बात रही, उसके खास, उसके अपने भी उसे हौंसला तक नहीं देते। इसके बावजूद जीवट और सफलता के लिये जुनूनी कुछ लोग अपने प्रयास नहीं छोड़ते। सफल होने से पहले हर सफलाकांक्षी को असफलता के कई लैवल पार करने पड़ते हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति असफल होता है तो उसके वही तथाकथित ‘अपने शुभचिंतक’, जो उसे प्रयास करते समय कभी हौंसला तक नहीं देते, यह बताने का फर्ज अदा करना नहीं भूलते कि ‘‘हम तो पहले से कहते थे कि तू शेखचिल्ली की तरह सपने मत देख।’’

इतना सब कुछ होने के बाद भी कुछ लोग तो सफलता के लिये ऐसे ‘‘जिद्दी’’ होते हैं कि जिन्दगी भले ही उनकी राह में जितनी चाहे बाधायें खड़ी कर दे, वे हर बाधा को पार करके ऐसा मुकाम हासिल कर लेते हैं कि सफलता ‘‘झक मारकर, उनके कदमों तले’’ आती है।

आनन्द से मिलोगे तो आपको इस बात की सच्चाई का पूरा-पूरा अहसास हो जायेगा।

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आनन्द का शुरूआती जीवन यानि उसका बचपन कोई खास नहीं था। उसके पैदा होने पर उसके माता-पिता को खुशी कम हुई थी, इसके बजाये उन्हें इस बात की चिन्ता ज्यादा थी कि इसे क्या खिलायेंगे और कैसे?

क्योंकि आनन्द के पिता रिक्शा चलाते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन रिक्शा चलाने में ही बिताया था। इस काम से अगर उनकी कोई उपलब्धि थी तो यही थी कि उन्होंने अपना काम - रिक्शा चलाना - किराये के रिक्शे से शुरू किया था और आज उनके पास अपना खुद का रिक्शा था।

खुद का रिक्शा होने के बावजूद वो इतना नहीं कमा पाते थे कि परिवार का ढंग से गुजारा कर सकें।

इस पर समस्या ये भी थी कि आनन्द से पहले उनकी चार बेटियां भी थीं।

अपनी बहुत कम - लगभग ना के बराबर - आमदन के कारण आनन्द के पिता अपने बेटियों को स्कूल तक नहीं भेज पाते थे। ऐसे हालात में पाँचवी सन्तान निश्चित ही माता-पिता की चिन्ता का कारण बनेगी।

पर आनन्द के पिता ने सोचा, ‘‘चलो! जिस परमात्मा ने औलाद दी है वो इसके खाने का इन्तजाम भी कर ही देगा। तो मैं चिन्ता क्यों करूँ?’’

आनन्द के पिता ने ना तो चिन्ता की और ना ही इस बात पर चिन्तन किया कि अब उन्हें अपने काम और अपनी आमदन को बढ़ा लेना चाहिये। नतीजा वही रहा जो पहले था। वो पहले भी बामुश्किल गुजारा करते थे, अब भी बामुश्किल ही गुजारा करने लगे। लेकिन आमदन कम और खर्चे अधिक होने के कारण घर के हालात सुधरने के बजाये, पहले से ज्यादा बिगड़ने लग गये।

आनन्द धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। घर की कमजोर हालत के कारण वो भी स्कूल नहीं जा पाता था। लेकिन आनन्द अपने नाम के अनुरूप ही था। हमेशा आनन्द में मगन रहता और दूसरों के आनन्द का भी कारण बनता। वह बातें बहुत अच्छी करता था।

छोटे बच्चे की सीखने की क्षमता बहुत अच्छी होती है। बचपन में हर बच्चा अपने जीवन में आने वाले हर व्यक्ति और हर घटना से कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है।

आनन्द का समय अधिकतर पड़ौसियों के यहाँ टेलीविजन पर फिल्में और नाटक आदि देखने में तथा खेलने में ही बीतता।

फिल्में देखकर वह उस एक्टर की नकल करता रहता था जिसके पास बहुत सारी कारें होतीं। उसके घर के पास ही एक पार्क था जिसमें अमीरों के बच्चे भी खेलने आया करते थे। जब वो बच्चे अपने माता-पिता के साथ अपनी कारों में पार्क आते तो आनन्द उन की कारों को देखता और उन बच्चों और उनके माता-पिता के हाव-भाव की नकल करता रहता।

अपने घर पर वह अपने माता-पिता और बहनों को अक्सर कहता रहता था कि ‘‘जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तो मैं भी कारें चलाया करूँगा।’’

जब आनन्द छोटा बच्चा था और तोतली जुबान में ये बोलता कि ‘‘जब मैं बला हो जाऊँदा तो मैं भी तालें चलाया तलूँदा।’’ तो उसकी बातें सुनकर उसके परिवार के सभी लोग खूब हँसते।

जब आनन्द थोड़ा बड़ा हुआ और उसकी जुबान ठीक हो गई तो भी उसकी बातें सुनकर परिवार के लोग हँसते।

जब आनन्द छोटा था तो परिवार के सदस्यों की हँसी ‘‘खुशी वाली हँसी’’ थी, लेकिन बाद में उनकी यही हँसी आनन्द का ‘‘मजाक उड़ाने वाली हँसी’’ बन गई।

आनन्द का सपना कोई एक कार नहीं थी। बल्कि वो बहुत सारी कारों के सपने देखता था। इसी कारण उसकी बहनों ने उसका नाम शेखचिल्ली रखा था।

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और जब आनन्द 14 साल का हुआ तो उसके जीवन में एक ऐसा हादसा हुआ जिसने उसके परिवार की खराब हालत को और ज्यादा खराब कर दिया।

आनन्द खुद अपने लिये तो सपने देखता ही था, उसके परिवार के लोग, खासतौर पर उसके माता-पिता भी आनन्द को लेकर बहुत से सपने देखते थे। जैसे कि जब आनन्द बड़ा होगा तो परिवार की जिम्मेदारी उठायेगा, घर के खर्चों में आनन्द भी हाथ बँटायेगा, वगैराह-वगैराह।

लेकिन उनके सभी सपने टूट गये, जिसकी वजह एक बहुत ही भयानक हादसा था। एक दिन सड़क पार करते समय आनन्द को एक कार ने टक्कर मार दी। उसे सरकारी अस्पताल ले जाया गया। वहाँ हुये इलाज के कारण उसकी जान तो बच गई लेकिन उसके शरीर का, कमर से लेकर पैरों तक का, नीचे का हिस्सा बेकार हो गया।

आनन्द अपंग हो गया। डॉक्टर्स ने उसके माता-पिता को स्पष्ट बता दिया कि आनन्द का इलाज लम्बा चलेगा। लगभग डेढ़-दो साल उसका इलाज चलेगा, लेकिन इसके बावजूद वह चल नहीं पायेगा। उसका पूरा जीवन अब व्हील चेयर पर ही बीतेगा।

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ऊपर वाला कुछ लोगों को शायद दर्द-प्रूफ बना कर भेजता है। जिन्दगी उन्हें चाहे जितनी मर्जी तकलीफें दे ले, वो कभी भी दर्द को लेकर शिकायत नहीं करते। बल्कि हर हाल में सकारात्मक और खुश रहते हैं।

आनन्द भी ऐसा ही ‘‘दर्द-प्रूफ’’ था। जब आनन्द हॉस्पिटल से व्हील चेयर पर घर वापिस लौटा तो पूरा परिवार उदास था लेकिन आनन्द नहीं। वो अपने नाम के अनुरूप तब भी आनन्द से भरा हुआ था।

उसकी बातों और आदतों में कोई फर्क नहीं पड़ा था। वह पहले भी आनन्द में मगन रहता था और दूसरों के आनन्द का कारण बनता था, और अब भी वह आनन्द में मगन रहता और दूसरों के आनन्द का कारण बनता।

इससे भी मजेदार बात ये थी कि अब भी वो अपने सपनों को नहीं भूला था। अब भी वो अपनी कारों को नहीं भूला था।

ना ही उसके परिवार के लोग आनन्द के सपनों का मजाक उड़ाना भूले थे।

अब तो हालात इतने खराब हो चुके थे कि आनन्द के सपनों और उसकी कारों के बारे में सुनकर उसके परिवार के लोग गुस्सा तक करने लगे।

एक दिन जब आनन्द ने ये कहा कि ‘‘तुम सब देखना, एक दिन मेरे पास बहुत सारी कारें होंगी’’ तो उसकी बात सुनकर आनन्द के पिता को बहुत तेज गुस्सा आ गया। गुस्से से पूरी तरह भरे हुये उन्होंने आनन्द से पूछा, ‘‘अरे बेवकूफ लड़के! कुछ तो सोच कर बोला कर। हर समय बड़ी-बड़ी बातें करता रहता है। कम से कम अपनी हालत तो देख। और मुझे ये बता कि अब तू कार का करेगा क्या? ओह कार नहीं बल्कि कारें। ठीक है तू कारें ले लेगा, पर ये बता कि उन्हें चलायेगा कैसे? अपनी हालत देखी है?’’

आनन्द को मानो अपनी हालत से कोई लेना-देना ही नहीं था। वो मुस्कुराते हुये बोला, ’’पापा! कारें चलाने के लिये पैर की क्या जरूरत! कारों को तो ड्राईवर्स से भी चलवा सकते हैं ना।’’

उसकी ये बात सुनकर उसके पिता पहले से भी अधिक नाराज हो गये और बोले, ‘‘अपने खाने का ठिकाना नहीं और सेठ जी ड्राईवर्स रखेंगे! आनन्द, देख मैं तुझे आखिरी बार समझा रहा हूँ। तू अपनी ये फालतू बकवास बन्द कर दे। अगली बार अगर तूने ऐसी बकवास की तो मेरे हाथों से पिट भी जायेगा।’’

आनन्द हँसते हुये बोला, ‘‘शायद उससे पहले कार ही आ जाये।’’

उसके इस मजाक ने गुस्से में आग का काम किया और आनन्द के पिता ने अगली बार का इन्तजार किये बिना, उसी दिन आनन्द की पिटाई कर दी।

लेकिन इसके बावजूद कुछ भी नहीं बदला। ना तो आनन्द का मिजाज बदला, ना उसके परिवार के लोगों का मिजाज बदला और ना ही उसके घर के हालात में कोई बदलाव हुआ।

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लेकिन आज जब आनन्द की उम्र 70 वर्ष की हो चुकी है, उसके पास वास्तव में कार नहीं बल्कि बहुत सी कारें हैं। वह एक आलीशान जीवन जीता है।

उसका रहन-सहन देखकर लोग हैरान भी होते हैं और ये भी सोचते हैं कि हम हाथ-पैर सही होते हुये भी इतना शानदार जीवन नहीं जी पाते, जितना आनन्द बिना पैरों के जी रहा है। कुछ लोग इसे आनन्द की किस्मत या भगवान का चमत्कार मानते।

लेकिन आयशा, जो कि एक पत्रकार थी, वो आनन्द के रहन-सहन को देखकर किस्मत या भगवान का चमत्कार नहीं मानती थी। बल्कि उसका ये मानना था कि आनन्द की अमीरी का कारण स्मगलिंग या नशा सप्लाई करने जैसा कोई जघन्य अपराध है।

वह इस सम्बन्ध में आनन्द के बारे में खोजबीन करती रहती थी। लेकिन उसकी खोजबीन से उसे कोई तसल्लीबख्श परिणाम नहीं मिला था।

एक दिन उसने सोचा कि क्यों ना आनन्द से ही मिला जाये और उसका इंटरव्यू लिया जाये। इंटरव्यू के दौरान ऐसी कोई न कोई बात तो पकड़ में आयेगी जिसके सहारे आनन्द के अपराध का भण्डा फोड़ा जा सकेगा।

ये सोचकर उसने आनन्द से मिलने का समय लेने के लिये फोन किया।

उसने फोन पर आनन्द को बताया, ‘‘सर! मैं डेली मीडिया से रिपोर्टर आयशा बात कर रही हूँ। मैं एक स्टोरी पर काम कर रही हूँ जो ऐसे लोगों पर आधारित है जिन्होंने ज़िन्दगी की हर तकलीफ को पार करके कोई रिमार्केबल पोजिशन बनाई हो। इस सम्बन्ध में हमने अपनी रिसर्च में ये पाया कि आपने भी ज़िन्दगी में बहुत सी तकलीफें झेली हैं और आज एक बहुत ही रैसपेक्टिड पोजिशन में हैं। सर! इस स्टोरी के लिये आपका इंटरव्यू लेना चाहती हूँ, अगर आप इजाजत दें तो।’’

आनन्द ने मुस्कुराते हुये जवाब दिया, ‘‘आयशा जी! आप जब चाहे आ सकती हैं।’’

आयशा अपनी सफलता के पहले पायदान पर विजयी हो कर उत्साहित हो गई और उत्साह में भरे-भरे ही उसने पूछ लिया, ‘‘अरे वाह! थैंक्यू वैरी मच सर! तो क्या मैं कल सुबह 10 बजे आ जाऊँ?’’

आनन्द ने हामी भर दी।

आयशा ने फोन काटने से पहले एक बार फिर थैंक्यू बोला और अपने इंटरव्यू की तैयारी में जुट गई।

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आयशा ने आनन्द से इंटरव्यू के लिये कुछ ऐसे सवाल सोचे थे जिन्हें सुनकर आनन्द को गुस्सा आने की पूरी-पूरी सम्भावना थी।

आनन्द को गुस्सा आने का मतलब था कि आयशा जिस दिशा में सोच रही थी वो सही थी, मतलब आनन्द की आमदन का स्रोत निश्चित ही कोई गलत काम था। आनन्द को गुस्सा आता तो वह आयशा को कोई धमकी वगैराह भी जारी कर सकता था, इसका भी वही मतलब निकलता जो आयशा सोचती थी।

आयशा ने आनन्द से पूछने के लिये जो सवाल सोचे थे, वो वाकई काफी गम्भीर थे और आयशा की निगाह में आनन्द जैसे अनपढ़ व्यक्ति को उलझाने के लिये काफी पर्याप्त थे। आयशा के सवालों की लिस्ट ये थी -

  • आपके पिता रिक्शा चलाते थे। ऐसी हालत में आपकी इतनी शानदार आर्थिक स्थिति का क्या राज है?
    • नोट - आनन्द की वर्तमान आर्थिक स्थिति: 100 करोड़ की सम्पत्तियां।
  • आपने ऐसा कौन सा काम किया कि केवल 50 वर्षों में इतनी सम्पत्ति जुटा ली?
  • क्या आप की आय का स्रोत अपराधियों से सम्बन्ध हैं?
  • आपके किन राजनेताओं से सम्बन्ध हैं?
  • आप टैक्स तो चुकाते नहीं होंगे?

आयशा को तो ये तक लग रहा था कि आनन्द उसके रिपोर्टर होने की बात सुनकर खौफ में आ चुका होगा और इंटरव्यू में आमना-सामना होने पर वह घबराया हुआ होगा।

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लेकिन आनन्द ने आयशा की सारी उम्मीदों को तोड़ दिया।

जब आयशा आनन्द से मिलने उसके घर पर ही स्थित ऑफिस में उसे मिलने पहुँची तो आनन्द अपनी राईटिंग टेबल पर बैठा उसी का इन्तजार कर रहा था। जैसे ही आयशा ने आनन्द के ऑफिस में कदम रखा, आनन्द ने मुस्कुराते हुये और एक बुलन्द आवाज के साथ आयशा का स्वागत किया।

आयशा, आनन्द के स्वागत करने के तरीके से एक तरफ तो हैरान थी और दूसरी तरफ खुश भी थी, कि कितने सभ्य ढंग से स्वागत किया गया।

आनन्द के शब्द कुछ ऐसे थे, ‘‘आईये आयशा जी आईये! आपका स्वागत है। मैं आपका ही इन्तजार कर रहा था। माफ कीजियेगा, आपके सम्मान में खड़े होकर आपका स्वागत नहीं कर सकता।’’ इन शब्दों में आनन्द ने जो भाव डाले थे, वो एक महिला के प्रति किसी पुरूष के भाव नहीं थे। बल्कि वो तो एक पिता के अपनी पुत्री के लिये जैसे भाव थे। शब्द महत्वपूर्ण नहीं थे, उन शब्दों के भीतर छिपे भाव और आनन्द की भावना महत्वपूर्ण थी।

आयशा, जो आनन्द के अपराध की जड़ें उखाड़ने आई थी, वो आनन्द के भाव से बहुत ही प्रभावित हो गई। उसकी सारी नकारात्मकता जैसे एकदम गायब सी हो गई थी। आनन्द के ऑफिस में उसके सामने रखी कुर्सी पर बैठने से पहले वह आनन्द के प्रति बहुत सकारात्मक हो चुकी थी। उसने मन ही मन ये मान लिया था कि ये आदमी कुछ भी हो, पर अपराधी नहीं हो सकता।

अब उसे अपने ऊपर इस बात के लिये गुस्सा आने लगा था कि उसने इंटरव्यू के लिये ऐसे टेढ़े सवाल क्यों रखे थे!

लेकिन अब वो कुछ नहीं कर सकती थी। हाँ उसे घबराहट हो सकती थी, जो कि उसे हो भी रही थी।

एक तरफ तो उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था और साथ ही घबराहट भी हो रही थी, दूसरी तरफ उसने इंटरव्यू के लिये जो सवाल सोचे थे, वे सब सवाल उसे बेमानी और गलत लगने लगे थे और अब उसे ये नहीं सूझ रहा था कि वो आनन्द से कौन से सवाल पूछे।

इसी घबराहट में उसने आनन्द से वही सवाल पूछने शुरू कर दिये जो वो लिख कर लाई थी।

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आयशा ने पूछा, ‘‘आनन्द जी, सबसे पहले तो मुझे यह जानना है कि आपके पिता रिक्शा चलाते थे। ऐसी हालत में आपकी इतनी शानदार आर्थिक स्थिति का क्या राज है? मेरी जानकारी के अनुसार आपकी वर्तमान आर्थिक स्थिति बहुत ही मजबूत है और आप 100 करोड़ की सम्पत्तियों के मालिक हैं। इस बारे में कुछ बतायें कि आपने ऐसा कौन सा काम किया कि केवल 50 वर्षों में इतनी सम्पत्ति जुटा ली?’’

आनन्द ने मुस्कुराते हुये ही जवाब दिया, ‘‘आयशा जी! मेरी आर्थिक स्थिति के बारे में आप गलत बोल रही हैं कि मैं 100 करोड़ की सम्पत्तियों का मालिक हूँ। साथ ही आप ये भी गलत बोल रही हैं कि मैंने 50 वर्षों में ये सम्पत्ति जुटाई है।

सच तो यह है कि वर्तमान में मैं 100 करोड़ नहीं बल्कि 125 करोड़ की सम्पत्तियों का मालिक हूँ। साथ ही मैंने ये सम्पत्ति 50 वर्षों में नहीं जुटाई। बल्कि इसे जुटाने में मुझे केवल 15 वर्ष लगे हैं।’’

आनन्द की बात सुनकर आयशा पहले से अधिक हैरान हो गई। स्वाभाविक तौर पर उसके मुँह से यही निकला, ‘‘कमाल है! लेकिन कैसे?’’

आनन्द की मुस्कुराहट और बढ़ गई। आनन्द ने कहा, ‘‘जो लोग नैटवर्क बिजनेस की ताकत को नहीं जानते उनके लिये ये हैरानी की बात हो सकती है। लेकिन नैटवर्क की ताकत का उपयोग करने वालों के लिये ये बिल्कुल भी हैरानी की बात नहीं है।’’

आयशा को समझ तो कुछ नहीं आया, फिर भी उसने हिम्मत दिखाते हुये अपना तैयार किया हुआ अगला सवाल पूछा, ‘‘नैटवर्क यानि ताल्लुकात। इसका मतलब क्या अपराधियों के नैटवर्क से आपके सम्बन्ध आपकी आय के स्रोत हैं?’’

आनन्द हँस पड़ा। हँसते-हँसते उसने कहा, ‘‘अरे नहीं-नहीं आयशा जी। मेरा अपराधियों के किसी नैटवर्क से कोई सम्बन्ध नहीं है। बल्कि मैं एक सीधा-सादा और सरल सा बिजनेस करता हूँ।’’

इंटरव्यू के इस पड़ाव पर पहुँचते-पहुँचते आयशा की हिम्मत बढ़ चुकी थी। आनन्द की बातों से उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। अब उसे फिर से अपनी पहले वाली सोच ही सही लगने लगी थी। अब उसने आनन्द से सधे शब्दों में सवाल किया, ‘‘सर! सीधे-सादे और सरल बिजनेस से इतनी आमदन! बात कुछ हजम नहीं हो रही। कहीं आपके इस सीधे-सादे और सरल बिजनेस के पीछे किसी राजनेता का काला धन तो नहीं छिपा हुआ? आपके किन राजनेताओं से ताल्लकुात हैं?’’

इस सवाल से आनन्द थोड़ा गम्भीर हो गया और उसने धीर-गम्भीर आवाज में आयशा के सवाल का जवाब देना शुरू किया, ‘‘आयशा जी! मेरे किसी भी राजनेता से कोई ताल्लुकात नहीं हैं। और मैं रखना भी नहीं चाहता। मुझे अपने बिजनेस से ही फुर्सत नहीं मिलती।’’

आयशा ने अगला सवाल पूछा, ‘‘सर! आप सरकार को कोई टैक्स तो चुकाते नहीं होंगे?’’

आनन्द ने इस सवाल के बदले आयशा से ही कुछ सवाल पूछ लिए जिसने आयशा को पूरी तरह निरूत्तर कर दिया।

आनन्द बोला, ‘‘आयशा जी! क्या आप पहले से ही जवाब तय करके आई हैं? आपको ऐसा क्यों लगा कि मैं सरकार को टैक्स नहीं देता?

आयशा जी! इससे पहले कि मैं आगे कुछ बताऊँ, मैं आपसे और आपके माध्यम से पूरे मीडिया जगत से और साथ ही हर भारतीय से कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ।

ऐसा क्यों है कि हम हर सफलता में अपराध की गंध ढूँढते हैं?

हमारा मीडिया और समाज इतना नकारात्मक क्यों है? क्या कारण है कि हम हर सफल व्यक्ति की सफलता के लिये या तो उसकी किस्मत को जिम्मेदार मानते हैं या फिर किसी अपराध को? हमें ऐसा क्यों नहीं लगता कि ईमानदारी और मेहनत से ही सफलता पाई जा सकती है, जबकि यही सच है? कहीं इसका कारण ये तो नहीं कि क्योंकि हम खुद पूरी तरह ईमानदार नहीं हैं, इसलिये हमें कोई दूसरा भी ईमानदार नहीं लगता?

ऐसा भी क्यों है कि जो चीज हमें समझ नहीं आती, हम हमेशा उसे गलत ही मानते हैं? और उसे सही मानने वाले को भी हम गलत मानते हैं? क्यों हम चीजों को सही ढंग से और सकारात्मक नजरिये से समझने की कोशिश तक नहीं करते?

आपके सवालों से ऐसा नहीं लगता कि आप मेरी उन्नति को हाईलाईट करने के लिये मेरा इंटरव्यू लेने आई हैं, बल्कि ऐसा लगता है कि आप मुझे गलत और अपराधी साबित करने आई हैं। ऐसा क्यों? क्या केवल इसलिये कि मैं आर्थिक दृष्टिकोण से आपकी उम्मीदों से कहीं अधिक सक्षम हो चुका हूँ?

अगर आप ये जानना ही चाहती हैं कि मेरी आर्थिक उन्नति का क्या राज है तो आप उसे समझने के लिये समय क्यों नहीं देना चाहतीं?

मेरे इस तरह के सवालों के लिये माफी चाहूँगा। लेकिन ये देख कर बहुत बुरा लगता है कि हम अपने देश के सफल लोगों का बिल्कुल भी सम्मान नहीं करते। मैं केवल अपनी बात नहीं कर रहा। किसी भी क्षेत्र के सफल व्यक्ति के प्रति हमारा रवैया लगभग ऐसा ही है।

उदाहरण के लिये यदि कोई सफल खिलाड़ी किसी मैच में अच्छा प्रदर्शन ना कर पाये तो हमें ये लगता है कि उसने खराब प्रदर्शन जान-बूझ कर किया है। इससे भी बड़ी हैरानी की बात ये है कि हमें जो लगता है, हम उसे ही सच मानकर उस खिलाड़ी के प्रति क्रूरता की हद तक चले जाते हैं। क्या ऐसा व्यवहार उचित है?

ऐसे ही फिल्मी दुनिया के सफल लोगों की किसी मामूली सी बात को हम इतना बड़ा बतंगड़ बना देते हैं कि हम उनकी पिछली सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। आखिर हम किसी की मेहनत का सम्मान क्यों नहीं कर पा रहे हैं?’’

इतना बोलकर आनन्द चुप हो गया और आयशा की ओर सवालिया निगाहों से देखने लगा।

लेकिन आयशा आनन्द के सवालों को सुनकर पूरी तरह निरूत्तर हो चुकी थी। वह कुछ पलों तक कुछ बोल ही नहीं पाई।

फिर किसी तरह उसने हिम्मत जुटा कर बोलना शुरू किया। वो धीमी आवाज में बोली, ‘‘आई एम वैरी सॉरी सर! आप सच कह रहे हैं। मैं आपके खिलाफ कुछ सबूत ही जुटाने आई थी। सच में मुझे यही लग रहा था कि आपकी मजबूत आर्थिक स्थित का कारण कोई अपराध ही है।

और सच कहूँ तो यहाँ आकर आपसे मिलने के बाद मुझे ये अहसास तो हो गया कि आपकी सफलता का राज कोई अपराध तो नहीं है। लेकिन मुझे अभी भी ये नहीं पता चला कि आपकी सफलता का राज क्या है?

अगर आप मेरी इस बात से नाराज हैं तो मैं आपसे हाथ जोड़कर माफी माँगती हूँ।’’ ऐसा कह कर आयशा ने अपने हाथ जोड़ लिये। उसकी आँखों में आँसू तक छलछला गये।

आनन्द तुरन्त बोला, ‘‘नहीं-नहीं आयशा जी! आपको माफी माँगने की जरूरत नहीं। जरूरत सिर्फ समझने की है। प्लीज आप अपने मन पर कोई बोझ ना रखें।’’

आयशा ने अपनी आँखों को पोंछा और बोली, ‘‘थैंक्यू वैरी मच सर! यू आर वैरी काइंड।’’

आनन्द ने मुस्कुराते हुये आयशा का थैंक्यू स्वीकार किया।

तभी वहाँ आनन्द के घर का नौकर चाय और नाश्ता लेकर आ गया जिससे उन दोनों की बातों में अल्प विराम लग गया।

आनन्द बोला, ‘‘चलिये बाकी बातें चाय-नाश्ते के साथ करते हैं।’’

आयशा हैरानी से बोली, ‘‘बाकी बातें सर! मुझे तो लगा आपने इंटरव्यू खत्म कर दिया!’’

आनन्द हँसते हुये बोला, ‘‘ऐसे कैसे खत्म! अभी-अभी आपने कहा ना कि यहाँ आकर मुझसे मिलने के बाद आपको ये तो पता चल गया कि मेरी सफलता का राज कोई अपराध नहीं है। लेकिन अभी भी आपको ये नहीं पता चला कि मेरी सफलता का राज क्या है! तो क्या आप वो राज नहीं जानना चाहेंगी?’’

आयशा एकदम तपाक से बोली, ‘‘अरे सर! बिल्कुल! मैं जरूर ये राज जानना चाहती हूँ। प्लीज बतायें।’’

आनन्द मुस्कुराते हुये बोला, ‘‘श्योर। लेकिन चाय-नाश्ते के साथ।’’

आयशा ने भी मुस्कुराते हुये जवाब दिया, ‘‘श्योर सर!’’

नौकर चाय-नाश्ते की ट्रे रख कर वापिस चला गया और उनकी बात दोबारा शुरू हो गई।

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आयशा सम्भल कर बैठ गई और आनन्द ने बोलना शुरू किया, ‘‘आयशा जी! मेरे एक्सीडैंट के बाद मेरे परिवार के लोगों और मुझे जानने वाले लोगों को ये लगने लगा कि अब मेरा जीवन खत्म हो चुका है। मैं जीवन भर कुछ भी नहीं कर पाऊँगा। लेकिन ऐसा उन्हें लगता था, मुझे नहीं।

अगर किस्मत नाम की कोई चीज होती है तो उससे मुझे सिर्फ एक ही उपहार मिला है और वो है मेरी सकारात्मकता और सपने देखने की हिम्मत।

ज्यादातर लोग जीवन अच्छा होते हुये भी अक्सर नकारात्मक रहते हैं और कुछ भी नया या बड़ा करने की जीवन भर हिम्मत नहीं दिखा पाते। उनमें से कुछ लोग अगर कोशिश करते भी हैं तो शुरूआती असफलतायें उन्हें फिर से नकारात्मक कर देती हैं और उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है जिससे वे नकारा बन जाते हैं। जबकि असफलता तो सफलता का शुरूआती चरण है।

अपने एक्सीडैंट के बाद थोड़े दिनों तक घर में बन्द रहने के बाद जब मैं खालीपन की बोरियत से परेशान हो गया तो मैंने ये सोचा कि सारा दिन घर में बन्द पड़े रहने के बजाये क्यों ना कोई काम कर लिया जाये। ऐसा सोचकर मैं अपनी व्हील चेयर पर बैठकर घरवालों को यह कहकर घर से निकल गया कि ‘‘थोड़ी देर में आता हूँ।’’

घर से निकल कर मैं अपने मौहल्ले के पास बनी फैक्ट्रियों में पहुँचा। मैंने उन फैक्ट्रियों के मालिकों से मिल कर अपने लिये काम माँगा।

अधिकतर लोगों ने तो मेरी हालत देख कर ये समझा कि मैं काम माँगने नहीं बल्कि भीख माँगने आया हूँ, इसलिये उन्होंने मुझे कुछ पैसे देने की कोशिश की। लेकिन मुझे पैसों की नहीं बल्कि काम की जरूरत थी, सो मैंने पैसे लेने से और उन्होंने काम देने से इन्कार कर दिया।

एक दो फैक्ट्री मालिकों ने थोड़ी दया दिखाते हुये मुझसे जब ये पूछा कि, ‘‘ठीक है, विचार करते हैं। तुम कितना पढ़े लिखे हो और क्या काम कर सकते हो?’’ और जब मैंने उन्हें ये बताया कि मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूँ और कोई काम भी नहीं जानता तो उन फैक्ट्री मालिकों का दया-भाव भी शर्मिन्दा हो गया और मुझे खाली हाथ लौटना पड़ा।

मैं घर पर भले ही खाली हाथ लौटा, लेकिन मेरा आत्मविश्वास पहले की तरह ही भरपूर था। बल्कि मेरी निगाह में मुझे कम से कम एक काम तो मिल ही गया था - लोगों से मिलना। मैंने सोचा कि भले ही काम नहीं मिला लेकिन कम से कम बोरियत तो नहीं हुई।

अब जब मेरे लिये लोगों से मिलना ही काम बन गया था तो मैं हर रोज घर से निकल जाता और सारा दिन अपने काम पर लगा रहता यानि लोगों से मिलता रहता।

लगभग 5-7 दिन घूमने के बाद मुझे एक फैक्ट्री में काम मिल ही गया। फैक्ट्री मालिक बहुत ही भले दिल का आदमी था। मुझे देखकर वो फैक्ट्री मालिक बोला कि अगर शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद तुम कुछ काम करना चाहते हो तो तुम्हारे लिये मुझे काम ढूँढ ही लेना चाहिये।

और जैसा कि कबीरदास जी ने कहा था कि
खोजी होय तुरन्त मिल जाये, इक पल की तलाश में।
कहत कबीर सुनो भई साधो, मैं तो हूँ विश्वास में।

मेरे और उस फैक्ट्री के मालिक के सकारात्मक विश्वास की वजह से एक काम मिल ही गया जो मुझे दिया जा सकता था। फैक्ट्री मालिक को अक्सर अपने काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ता था। इसलिये उसने मुझे फैक्ट्री की देखभाल करने के लिये काम पर रख लिया।

उस दिन मैं मिठाई लेकर अपने घर लौटा। उसी दिन मेरे घर मिठाई के साथ-साथ खुशी भी आई।

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मुझे उस फैक्ट्री में काम करते हुये दो साल हो चुके थे, जब एक दिन फैक्ट्री में काम करने वाले मेरे एक सहकर्मी को उसके कुछ दोस्त मिलने आये। वो अपने दोस्त को एक पार्ट टाईम बिजनेस समझा रहे थे। उनकी बातें सुनकर मेरी भी उनके काम में रूचि पैदा हो गई। जब मैंने उस काम को पूरे विस्तार से और ध्यान से समझा तो मेरी आँखों में एक चमक पैदा हो गई। मुझे वो काम समझ भी आ गया और पसन्द भी।

उस दिन मैंने पहली बार नैटवर्क बिजनेस देखा। अक्सर लोग इसे गोले बनाने वाला या चेन बनाने वाला काम कहकर इससे दूर भाग जाते हैं। वे इसके सकारात्मक पहलूओं और इस बिजनेस के भीतर छिपी सम्भावनाओं को देख ही नहीं पाते। शायद इसकी एक बड़ी वजह वही है जिसका मैंने अभी थोड़ी देर पहले जिक्र किया था कि हमारा समाज नकारात्मक है। नकारात्मकता हमारी नसों में बसी हुई सी लगती है, जिसकी वजह से हम हर अवसर में सिर्फ नकारात्मक पहलू ही देख पाते हैं। जबकि सच तो ये है कि सकारात्मकता हो या नकारात्मकता, ये सिर्फ हमारा दृष्टिकोण है। कोई घटना या परिस्थिति सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होती, हमारा दृष्टिकोण ही उसे सकारात्मक या नकारात्मक तौर पर स्वीकार या अस्वीकार करता है।’’

आयशा की गर्दन सहमति में हिली।

आनन्द ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘मैंने इस बिजनेस के हर पहलू को समझने के लिये अपनी कम्पनी की मीटिंग्स और सैमीनार्स में जाना शुरू कर दिया। जब मुझे आवश्यक शुरूआती जानकारी मिल गई तो मैंने अपना काम शुरू कर दिया।

अपनी हालत की वजह से मैं खुद घूम-फिर कर काम नहीं कर सकता था, इसलिये मैंने एक फोन ले लिया और फोन पर ही काम शुरू कर दिया।’’

आनन्द की ये बात सुनकर आयशा बोली, ‘‘टोकने के लिये सॉरी सर! पर मैंने ऐसा सुना है कि लोग फोन पर समझते नहीं। उन्हें मिलकर ही समझाया जा सकता है।’’

आनन्द ने कहा, ‘‘यह ठीक है आयशा जी कि मिलना बेहतर होता है। लेकिन मैंने कहीं पढ़ा था कि अगर आपके पास एक फोन और इंटरनैट कनैक्शन है तो आप पूरी दुनिया के साथ बिजनेस कर सकते हो। सो मैंने काम शुरू कर दिया। वैसे भी लोगों को जा-जा कर मिलना मेरे लिये आसान नहीं था सो मैंने फोन पर ही समझाना शुरू कर दिया। जो लोग फिर भी मिलने की इच्छा रखते उन्हें मैं अपने पास बुला लेता।

मैंने अपने जानकार लोगों को फोन करने शुरू कर दिये। उनमें से कुछ लोगों ने मेरी बात सुनी और समझी। कुछ लोग तो ऐसे भी थे जिन्होंने मेरी पूरी बात ही नहीं सुनी और उससे पहले ही पता नहीं क्या समझ गये।

जिन लोगों ने मेरी बात सुनी और समझी, उनमें से कुछ लोगों ने काम शुरू कर दिया। उनमें से भी जब कुछ लोगों को काम शुरू करने पर असफलता मिली तो उन्होंने अपने काम करने के ढंग को सही करने के बजाये, काम को गलत कह कर छोड़ना ही मुनासिब समझा और वो चले गये।

इसके अलावा मैंने अखबार में विज्ञापन देना शुरू किया, जिससे मुझे अनजान लोगों के फोन आने लगे। उनमें से भी कुछ लोगों ने मेरी पूरी बात ही नहीं सुनी और उससे पहले ही ‘सब’ समझ गये और कुछ लोगों ने मेरी पूरी बात सुनी और समझी। समझने वाले कुछ लोगों ने काम शुरू कर दिया।

फिर वही हुआ कि जिन लोगों ने काम शुरू किया था उनमें से कुछ लोगों को जब असफलता मिली तो उन्होंने काम छोड़ दिया।

मैंने उन लोगों की परवाह नहीं की जो छोड़ कर जा रहे थे। बल्कि मैंने उन लोगों पर ध्यान दिया जो रूक कर काम करना चाहते थे। धीरे-धीरे मेरा अच्छा नैटवर्क बनने लगा, जिससे मेरी आमदन भी बनने लगी। ऐसे ही धीरे-धीरे काम बढ़ता गया और आमदन भी बढ़ती गई।

असल में नैटवर्क बिजनेस की असली ताकत ये नैटवर्क ही है। नैटवर्क की ताकत को समझना है तो आप टेलीकॉम कम्पनियों के नैटवर्क को देखिये, जहाँ एक फोन नैटवर्क के जरिये दुनिया के हर दूसरे फोन से जुड़ जाता है और लाखों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति से भी चंद सैंकेण्ड्स में सम्पर्क बना देता है।

आयशा जी! नैटवर्क का अर्थ है किसी वस्तु अथवा सेवा को एक सप्लाई सिस्टम के माध्यम से लोगों तक पहुँचाना।

नैटवर्क को समझने के लिये मुझे कुछ किताबों के सुझाव दिये गये। सो मैंने उन किताबों से फायदा उठाया और इस सिस्टम को अच्छी तरह समझा।’’

आयशा ने फिर एक बार सॉरी बोलते हुये आनन्द को टोका और सवाल किया, ‘‘लेकिन सर! मेरी जानकारी के अनुसार तो आप कभी स्कूल ही नहीं गये। फिर आपने किताबों से फायदा कैसे उठाया?’’

आयशा का सवाल सुनकर आनन्द को हँसी आ गई। हँसते हुये आनन्द ने आयशा से ही एक सवाल किया, ‘‘आयशा जी! क्या आमलेट का स्वाद लेने के लिये अण्डा देना जरूरी है?’’

आनन्द का सवाल सुनकर आयशा की भी हँसी निकल गई और वो हँसते-हँसते बोली, ‘‘जी बिल्कुल नहीं सर! लेकिन फिर भी ......’’

आनन्द ने आयशा के सवाल को बीच में रोकते हुये कहा, ‘‘आपके इस फिर भी का मैं जवाब देता हूँ ना! आयशा जी, मैं खुद पढ़ा लिखा नहीं हूँ लेकिन मेरे आस-पास और मेरी टीम में ऐसे बहुत से लोग थे और हैं जो पढ़े-लिखे थे। मैंने उनके पढ़े-लिखे होने का फायदा उठाया और मजे की बात ये है कि इस तरीके से मैंने उन्हें भी फायदा पहुँचाया। मैं तो बहुत कुछ सीखा ही, वो भी बहुत कुछ सीख गये। यानि हमारी पूरी टीम का बहुत तेजी से विकास हुआ।’’

आनन्द की ये बात सुनकर आयशा के मुँह से निकला, ‘‘वाह सर! क्या शानदार आईडिया निकाला!’’

आनन्द ने आयशा का शुक्रिया अदा किया और आगे बताना शुरू किया, ‘‘आयशा जी! ये शानदार आईडिया इस नैटवर्क बिजनेस की ही देन है। अगर मैं इस बिजनेस में नहीं आता तो शायद मुझे ये आईडिया ही नहीं आता।

आयशा जी! मेरा यकीन मानिये नैटवर्क बिजनेस में ऐसा बहुत कुछ है जो बहुत ही अच्छा है। लेकिन लोग अपने खराब और नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण इसकी अच्छाई को देखने से वंचित रह जाते हैं।

अब देखिये ना कि मैं कभी स्कूल नहीं जा पाया, लेकिन आज केवल अच्छे लोगों की संगत और अपनी प्रैक्टिस के कारण मैं किताबों का फायदा उठा पाता हूँ। बल्कि अब तो थोड़ा बहुत मैं खुद भी पढ़-लिख लेता हूँ। यहाँ तक कि थोड़ी-बहुत अंग्रेजी भाषा भी सुन-समझ लेता हूँ।

लेकिन अपने इस काम में मुझे सबसे अच्छी बात ये लगती है कि इस काम पर किसी भी तरह की मंदी या हालात का बुरा असर नहीं पड़ता। यहाँ तक कि अगर शहर में कर्फ्यू लगा हो तो भी इस काम को किया जा सकता है।’’

आनन्द की ये बात सुनकर आयशा बहुत हैरान हुई। हैरानी से भरे हुये उसने आनन्द से पूछा, ‘‘सर! ये बात मैं समझ नहीं पाई! ऐसा कैसे सम्भव है? कर्फ्यू में आप इस काम को कैसे कर सकते हैं?’’

आनन्द ने मुस्कुराते हुये कहा, ‘‘अंग्रेजी भाषा की एक कहावत है - थिंक आउट ऑफ द बॉक्स। आम आदमी इसलिये आम आदमी है क्योंकि वो अपनी सोच के दायरे से बाहर की बात सोच ही नहीं पाता। जबकि एक व्यक्ति अपनी सोच के दायरे से बाहर की बात सोच कर और उसके अनुसार काम करके आम आदमी से खास आदमी बन जाता है।

अगर शहर में कर्फ्यू लगा हो तो उस समय फोन पर लोगों के साथ बात करते हुये इस काम को किया जा सकता है। ये बिजनेस टीम वर्क का बिजनेस है। ऐसे समय में जबकि आप घर से बाहर नहीं निकल सकते उस समय नये लोगों को अपनी टीम का हिस्सा बनने के लिये प्रेरित कर सकते हैं। इस काम में आप सोशल मीडिया की भी मदद ले सकते हैं।

इसके अलावा जो आपकी पहले से बनी हुई टीम है उसके साथ आप फोन पर बातचीत कर सकते हैं। फोन पर ही अपने टीम को मोटीवेट करने का काम कर सकते हैं।

जैसा कि मैंने आपको थोड़ी देर पहले बताया कि इस डिजीटल युग में अगर आपके पास एक फोन और इंटरनैट कनैक्शन है तो आप पूरी दुनिया के साथ बिजनेस कर सकते हैं। कर्फ्यू के दौरान आप मीटिंग्स और सैमीनार्स नहीं कर सकते, लेकिन वैबीनार्स मतलब वैब साईट पर यानि इंटरनैट पर सैमीनार्स कर सकते हैं। आप यूट्यूब आदि प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके अपने वीडियोस बनाकर लोगों तक अपनी बात पहुँचा सकते हैं।

इसके अलावा इस काम की एक बहुत महत्वपूर्ण जरूरत है सीखना। अब सीखने का काम भी घर बैठ कर किया सकता है। अगर मैं घर बैठ कर वीडियो बना कर इंटरनैट पर डाल सकता हूँ तो मैं घर बैठ कर सीखने के लिये किताबें पढ़ने और लोगों के वीडियो देखने या ऑडियो सुनने का काम भी आसानी से कर सकता हूँ।

इसलिये मैं आज तक ये ही करता आया हूँ, ये ही कर रहा हूँ और आज एक अच्छा जीवन जी रहा हूँ।

आयशा जी! यही है मेरी सफलता का राज! ना कि कोई अपराध या अपराधियों और राजनेताओं से मेरे सम्बन्ध।

और हाँ! आपने पूछा था कि मैं सरकार को टैक्स तो नहीं देता होऊँगा। तो इस सम्बन्ध में मैं आपको ये बताना चाहूँगा कि इस सिस्टम से मुझ जो भी आमदन मिलती है वो टैक्स कटने के बाद ही मिलती है। यानि मैं सरकार को कर चुकाने वाला एक ईमानदार व्यवसायी हूँ।’’

आयशा ने आनन्द के प्रति अपने विचारों के लिये फिर से माफी माँगी और वादा किया कि इस तरह के काम को लोगों के बीच पहुँचाने की जरूरत है जिसे वो अपने अखबार के माध्यम से जरूर करेगी।

आनन्द ने आयशा को थैंक्यू कहा तो आयशा ने कहा, ‘‘सर! थैंक्यू तो आपका कि आपने अपनी सफलता के राज मेरे साथ शेयर किये। इसके अलावा इस बात के लिये खास थैंक्यू कि आपने मेरी नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल दिया। मैं आपकी बातों को हमेशा याद रखूँगी। और हाँ मैं भी आपके इस पोसीटिव नैटवर्क का हिस्सा बनना चाहूँगी, क्या आप मेरे जैसी नैगेटिव लड़की को इसका हिस्सा बनने का अवसर देंगे?’’

आनन्द ने मुस्कुराते हुये जवाब दिया, ‘‘यू आर आलवेस मोस्ट वैलकम आयशा जी! इस रविवार को सुबह 11 बजे हमारी एक बिजनेस मीटिंग है, आपका इसमें स्वागत है।’’

आयशा ने मुस्कुराते हुये आनन्द को थैंक्यू कहा और आनन्द से विदा ली।

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अगले दिन के अखबार का मुख्य आकर्षण 70 वर्षीय आनन्द और उसकी प्रेरणादायक कहानी था, जिसे लोगों ने बहुत अधिक पसंद किया।

निश्चित ही इससे आनन्द के बिजनेस को और भी फायदा मिलने वाला था।

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नैट कहानियां 21वीं सदी के बिजनेस की

  • आपके नैटवर्क बिजनेस और इस बिजनेस में आपकी आमदन को तेजी से बढ़ाने वाली एक शानदार पुस्तक।

  • अगर आप नैटवर्क बिजनेस से मनचाही आमदन बनाना चाहते हैं तो ये पुस्तक आपके बहुत काम की है।


मैं पिछले 19 वर्षों से नैटवर्क इंडस्ट्री में कम्पनीस और डायरैक्ट सैलर्स के लिये ट्रेनिंग मॉड्यूल्स और ट्रेनिंग प्रोग्राम्स बनाता आ रहा हूँ। मैंने बहुत से नैटवर्कर्स को जीरो से हीरो और हीरो से जीरो बनते देखा है।

मैंने उनके बीच रह कर कुछ लोगों को सही काम करते हुये कामयाब होते देखा है, तो साथ ही कुछ लोगों को ऐसी गलतियां भी करते देखा है जिनसे वे फेल हो गये।

अपने इस अनुभव जनित ज्ञान से इस इंडस्ट्री के प्रत्येक व्यक्ति को लाभ पहुँचाने के लिये मैंने यह पुस्तक ‘‘नैट कहानियां 21वीं सदी के बिजनेस की’’ तैयार की है।

कहानियों की इस पुस्तक में नैटवर्क मार्केट के उन नियमों के बारे में बताया गया है, जिनका पालन किये बिना इस इंडस्ट्री में कामयाब होना नामुमकिन है। इन कहानियों को पढ़ें और इनके भीतर छिपे संदेशों को ग्रहण करें।

इस पुस्तक में दिया गया ज्ञान नैटवर्क बिजनेस में कार्य कर रही हर एक कम्पनी और हर एक व्यक्ति के काम का है। इसलिये इस पुस्तक को कोई भी पढ़ सकता है।

ज्ञान से असली लाभ लेना हो तो उसे फैलायें। नैटवर्क बिजनेस कर रहे दूसरे लोगों को भी ये कहानियां पढ़ने की प्रेरणा दें। अपनी मीटिंग्स आदि में इन कहानियों को सुनायें। इस तरह इन कहानियों से स्वयं भी लाभ कमायें और अपनी टीम को भी लाभ दिलावायें।

अभी ऑर्डर करें:


  • अमेजोन -



Monday, March 23, 2015

हम भारतीय बहुत स्मार्ट हैं - I am Sorry!!


हम भारतीय वाकई बहुत स्मार्ट हैं।



हम खराब शिक्षा व्यवस्था की शिकायत तो करते हैं पर इसके सुधार के लिये कुछ नहीं करते।

हम शिक्षा की व्यर्थता को तो जानते हैं पर फिर भी बच्चों को इसी व्यर्थता में धकेलते हैं।

हम सड़क पर खुले मेनहॉल का ढक्कन देख कर नगर निगम और सरकार को तो कोसते हैं पर सही जगह सूचना/शिकायत नहीं देते।

हम धर्म स्थानों पर सेवा तो खूब करते हैं लेकिन हमारे जीवन में इंसानियत नाम की धार्मिकता बिलकुल नहीं है।

हम रास्ते में पड़े पत्थर को देखकर चिंतित तो होते हैं पर उसे एक किनारे करने की जहमत नहीं करते।

किसी दूसरे से छोटी सी गलती होने पर भी हम उसे माफ़ नहीं करते पर अपनी बड़ी से बड़ी गलती के लिये हम क्षमादान चाहते हैं।

किसी और के बच्चे के गुण हमें स्पष्ट दिखाई देते हैं लेकिन अपने परिवार में हमें सिर्फ दोष दिखाई देते हैं।

हम पूरा पूरा दिन मैच देखने के लिये तो समय निकाल लेते हैं लेकिन पुस्तकें पढ़ने का हमारे पास समय नहीं होता।

हम सोशल साइट्स पर तो घण्टों बिता देते हैं पर परिवार के लिये हमारे पास बिलकुल भी समय नहीं।

हम भारत को विश्व में प्रथम स्थान पर तो देखना चाहते हैं पर इसके लिये खुद कुछ नहीं करना चाहते।

हम जानते हैं कि बिना मेहनत किये कुछ नहीं मिलता पर फिर भी हम सरकारी नौकरी चाहते हैं।

हम सफल होना तो चाहते हैं लेकिन सफलता के लिये कुछ नहीं सीखते।

हम सभी अवसर की तलाश में रहते हैं लेकिन जब अवसर हमारे सामने आता है तो हम अवसर का लाभ उठाने के बजाये उस अवसर की कमियाँ निकलने में लग जाते हैं।

हम जानते हैं कि एकता में शक्ति है पर फिर भी हम अच्छे कामों के लिये संगठित नहीं होते।

हम जानते हैं कि हममें शक्तियां हैं पर फिर भी हम हमेशा अपनी कमज़ोरी का रोना रोते रहते हैं।

हम अपने आने वाले कल को तो सुधारना चाहते हैं पर हम हमेशा बीत चुके कल में रहते हैं और आज कुछ नहीं करते।

हम दोहरी मानसिकता के शिकार हैं और ये बात जानते भी हैं तो भी हम इससे बाहर नहीं निकलना चाहते।

हम ये सभी (ऊपर बताई गई) बातें काफी समय से जानते हैं पर फिर भी हम इन्हें छोड़ने या बदलने के लिये तैयार नहीं होते।

इससे पता चलता है कि वाकई हम भारतीय बहुत स्मार्ट हैं।

Monday, February 9, 2015

बुक रीव्यू - सफलता के कोर्स की तीसरी किताब - “बड़ी सोच का बड़ा जादू”


द्वारा - के. डी.’स विपिन कुमार शर्मा ‘सागर’

(To read Book Review in English CLICK HERE)

सम्पादिका की टिप्पणी –
आखिर’ के आरम्भ से ही हर माह बुक ऑफ दि मंथ कॅालम के माध्यम से हम आपको एक महत्वपूर्ण किताब के बारे में जानकारी देते आ रहे हैं।

अब उसी कॅालम को हम यहां बुक रीव्यू के रूप में आरम्भ कर रहे हैं।

जैसा कि आप जानते ही हैं कि सफल होने के लिये सीखना बहुत अनिवार्य है। सीखने का यह आवश्यक कार्य पुस्तकों के माध्यम से बहुत आसानी से हो जाता है।

हमें पूरी उम्मीद है कि सफलता के सम्बन्ध में पुस्तकों के महत्व को आप अच्छी तरह समझते हैं।

इस कॅालम के माध्यम से हम आपको उन महत्वपूर्ण पुस्तकों की जानकारी देंगे जो सफलता की राह में आपका भरपूर मार्गदर्शन कर सकें, आपको सही राह दिखा सकें और सफलता पाने के लिये आपकी सहायक बन सकें।

इस कॅालम में आपको जिन पुस्तकों के बारे में जानकारी दी जायेगी, उन पुस्तकों को आपसे पहले बहुत से लोग पढ़ चुके हैं और इनका लाभ उठा चुके हैं।

यह भी हो सकता है कि आप भी इन पुस्तकों को पढ़ चुके हों या इन के बारे में जानते हों। जो भी हो यह कॅालम आपकी बहुत अधिक मदद करेगा। क्योंकि इस कॅालम के माध्यम से आप पुस्तकों को सफलता के संदर्भ में एक नये दृष्टिकोण से देखेंगे।

प्रत्येक पुस्तक के साथ उस पुस्तक के मिलने का विवरण दिया जायेगा, जहाँ से आप पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं। न मिलने पर हमसे kdparivar@gmail.com पर सम्पर्क करें।

सफलता के कोर्स की तीसरी किताब -
बड़ी सोच का बड़ा जादू (The Magic of Thinking Big)



इमर्सन नामक एक पाश्चात्य विद्वान ने कहा थाः जो यह देख सकते हैं कि विचार ही दुनिया पर शासन करते हैं वे लोग ही महान होते हैं।

शेक्सपियर ने कहा थाः न तो कोई चीज अच्छी होती है और न ही बुरी, हमारा दृष्टिकोण ही उसे अच्छा या बुरा बना देता है।

मिल्टन नामक विद्वान का कहना थाः मनुष्य का दिमाग बहुत शक्तिशाली है। यह स्वर्ग को नरक और नरक को स्वर्ग बना सकता है।

इन विचारों के प्रति आपका क्या विचार है? क्या आप इन महान लोगों के महान विचारों से सहमत हैं? क्या आप यह मानते हैं कि आदमी जो सोचता है, वह वही बनता है?

अगर ऐसा है तो फिर क्या कारण है कि हर व्यक्ति सफल होने के बारे में सोचता तो है लेकिन हर व्यक्ति सफल हो नहीं पाता?

कहते हैं कि आदमी अपनी सोच को बड़ा करके बड़ा आदमी बन सकता है। अगर ऐसा है तो फिर हर कोइ अपनी सोच को बड़ा क्यों नहीं कर पाता?

इन महत्वपूर्ण सवालों के जवाब आपको मिलेंगे इस पुस्तक में जिसे हमने सफलता हेतू आवश्यक कोर्स की तीसरी पुस्तक की सेज्ञा दी है। यह पुस्तक है डाक्टर डेविड जे. श्वाटर्ज की "बड़ी सोच का बड़ा जादू" (The Magic of Thinking Big)

यह पुस्तक दुनिया की बेहतरीन पुस्तकों में से एक है और प्रत्येक उस व्यक्ति के लिये अनिवार्य पुस्तक है जो जीवन में सफल होना चाहता है।

यह तो निश्चित ही है कि व्यक्ति की सफलता का स्तर उसकी सोच के स्तर से तय होता है।

इसलिये जो व्यक्ति जितना बड़ा सोचेगा वह उतनी ही बड़ी सफलता प्राप्त करेगा। बड़ा कैसे सोचें और बड़ी सोच से बड़ी सफलता कैसे पायें, इन सवालों के जवाब हैं "बड़ी सोच का बड़ा जादू" (The Magic of Thinking Big) में।


इस पुस्तक की आवश्यकताः

हम जिस माहौल में जी रहे हैं, उसमें यह पुस्तक बहुत ही महत्वपूर्ण व अनिवार्य पुस्तक है। स्वयं लेखक के शब्दों में कहें तो हम अपने आसपास के माहौल से प्रभावित होते हैं। हमारी सोच हमारे आसपास की सोच का प्राडक्ट होती है। और हमारे आसपास की अधिकतर सोच छोटी होती है, बडी नहीं।

इसलिये हमारी सोच भी हमारे आसपास के माहौल से प्रभावित होने के कारण छोटी ही रह जाती है, यह सफलता दिलवाने लायक बड़ी नहीं हो पाती। इस छोटी सोच वाले माहौल में व्यक्ति यह सोचने लग जाता है उसका ‘भाग्य’ उसके ‘कर्म’ से अधिक बड़ा है। इसलिये वह मानने लगता है कि उसकी सफलता भी उसके भाग्य पर निर्भर करती है।

लेकिन जरा किसी सफल व्यक्ति के बारे में सोचिये, अपने आसपास निगाहें दौड़ाइये और ढूँढिये किसी सफल व्यक्ति को। उसका जीवन देख कर आपको पता चल जायेगा कि सफलता के लिये

भाग्य नहीं कर्म महत्वपूर्ण होता है। और सफलता का निर्धारण किस्मत से नहीं बल्कि सोच से होता है।

किसी शायर ने क्या खूब कहा है -

नज़र को बदलो तो नज़ारे बदल जाते हैं

सोच को बदलो तो सितारे बदल जाते हैं।

आप अपनी सोच को बदल कर अपनी किस्मत को बदल सकते हैं। इस पुस्तक में सोच को बदलने का एक ऐसा व्यवहारिक व सरल सिद्धान्त बताया गया है जिससे आप अपने सितारे बदल सकते हैं अर्थात् सफल हो सकते हैं।

सफलता के लिये एक आवश्यक एवम् महत्वपूर्ण गुण है - सफलता में रूचि रखना, जो कि आपके भीतर है। यह तो निश्चित है कि आप अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहते हैं, आप अपने जीवन को पहले से अधिक बेहतर बनाना चाहते हैं और आप हर वह चीज हासिल करना चाहते हैं, जो आप सोचते हैं कि आपके पास होनी चाहिये। आप सफल होना चाहते हैं, तभी आप आखिर’ पढ़ रहे हैं। बड़ी सोच का बड़ा जादू के लेखक डेविड जे. श्वार्टज का भी यही कहना है कि सफलता में रूचि रखना एक अद्भुत गुण है।

आपमें एक और गुण हैः चुनाव करने की क्षमता। अपनी इस क्षमता का उपयोग कीजिये और अपनी सफलता के लिये इस पुस्तक का चुनाव कीजिये। यह पुस्तक आपकी सफलता के लिये महत्वपूर्ण औजार (Tool for success) है।

इस पुस्तक के बारे में एक और महत्वपूर्ण बात - इस पुस्तक में आपको कोरे सिद्धान्त नहीं बताये गये। बल्कि इसमें आपको जाँचे, परखे तथा व्यवहारिक सिद्धान्त बताये गये हैं। इस पुस्तक में जीवन की विभिन्न परिस्थितियों के बारे में परखी हुइ निश्चित तौर पर सफलता दिलवाने वाली वे तकनीकें हैं जो जादू की तरह काम करती हैं।


इस पुस्तक के लाभः

यह पुस्तक आपको आशा से अधिक लाभ प्रदान करेगी। इस पुस्तक में बताई गई विधियों को अपना कर आप अपनी सोच की जादुई शक्ति का दोहन कर पायेंगे। इस पुस्तक को अपना कर आप मनचाही सफलता, सुख और सन्तुष्टि प्राप्त करेंगे।

इस पुस्तक में केवल किताबी बातें नहीं हैं, बल्कि जीवन के वे शाश्वत सिद्धान्त हैं, जिन्हें सफल हो चुके लोग अपनाते हैं और जिन्हें अपना कर आप भी सफलता पा सकते हैं।

इस पुस्तक का लाखों लोगों ने लाभ उठा लिया है। अब आपकी बारी है।

यह पुस्तक आपकी सफलता के लिये आपका मार्गदर्शक व गुरू बनने की क्षमता रखती है। इससे आप सफलता दिलाने वाली निम्नलिखित बातें सीखेंगेः
• आप सीखेंगे कि सोच को बड़ा करके कैसे बेहतर नौकरी हासिल की जा सकती है और अधिक धन कमाया जा सकता है।
• आप सुखी और खुशहाल रहना सीखेंगे।
• आप अपनी सफलता की मंजिल तक आसानी से पहुँचना सीखेंगे।
• आप सीखेंगे कि महान सफलता हासिल करने के लिये असाधारण बुद्धिमानी या प्रतिभा की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि बड़ी सोच की आवश्यकता होती है।


इस पुस्तक से आप अपनी सोच को बड़ा करना और सफलता की ऊँचाईयों को छूना सीखेंगे।

यह पुस्तक अभी अपने नजदीकी पुस्तक विक्रेता से मांगें या नीचे दिये लिंक पर क्लिक करें या kdparivar@gmail.com पर हमें मेल करें।


To purchase this book in English - Click Here - The Magic of Thinking Big (English)

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सफलता के कोर्स की दूसरी और पहली किताब के बारे में जानकारी लेने के लिए दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें -
* सफलता के कोर्स की पहली किताब - http://kdsakhir.blogspot.com/2014/09/blog-post.html
* सफलता के कोर्स की दूसरी किताब - http://kdsakhir.blogspot.com/2015/02/blog-post.html

बुक रीव्यू - सफलता के कोर्स की दूसरी किताब - “अमीरी की चाबी आपके हाथ में”


बुक रीव्यू
द्वारा - के. डी.’स विपिन कुमार शर्मा ‘सागर’

(To read Book Review in English CLICK HERE)

सम्पादिका की टिप्पणी –
आखिर’ के आरम्भ से ही हर माह बुक ऑफ दि मंथ कॅालम के माध्यम से हम आपको एक महत्वपूर्ण किताब के बारे में जानकारी देते आ रहे हैं।

अब उसी कॅालम को हम यहां बुक रीव्यू के रूप में आरम्भ कर रहे हैं।

जैसा कि आप जानते ही हैं कि सफल होने के लिये सीखना बहुत अनिवार्य है। सीखने का यह आवश्यक कार्य पुस्तकों के माध्यम से बहुत आसानी से हो जाता है।

हमें पूरी उम्मीद है कि सफलता के सम्बन्ध में पुस्तकों के महत्व को आप अच्छी तरह समझते हैं।

इस कॅालम के माध्यम से हम आपको उन महत्वपूर्ण पुस्तकों की जानकारी देंगे जो सफलता की राह में आपका भरपूर मार्गदर्शन कर सकें, आपको सही राह दिखा सकें और सफलता पाने के लिये आपकी सहायक बन सकें।

इस कॅालम में आपको जिन पुस्तकों के बारे में जानकारी दी जायेगी, उन पुस्तकों को आपसे पहले बहुत से लोग पढ़ चुके हैं और इनका लाभ उठा चुके हैं।

यह भी हो सकता है कि आप भी इन पुस्तकों को पढ़ चुके हों या इन के बारे में जानते हों। जो भी हो यह कॅालम आपकी बहुत अधिक मदद करेगा। क्योंकि इस कॅालम के माध्यम से आप पुस्तकों को सफलता के संदर्भ में एक नये दृष्टिकोण से देखेंगे।

प्रत्येक पुस्तक के साथ उस पुस्तक के मिलने का विवरण दिया जायेगा, जहाँ से आप पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं। न मिलने पर हमसे kdparivar@gmail.com पर सम्पर्क करें।

सफलता के कोर्स की दूसरी किताब
अमीरी की चाबी आपके हाथ में (Hindi Edition)



क्या आपने एंड्रयू कारनेगी का नाम सुना है?

क्या आप यह जानते हैं कि एंड्रयू कारनेगी अपने समय के सबसे अधिक सफल व धनी व्यक्ति थे?

एंड्रयू कारनेगी अपनी सफलता और अमीरी के रहस्य को आम आदमी तक पहुँचाना चाहते थे।

इसके लिये उन्होंने उस समय के सबसे बेहतरीन लेखक (जिसका नाम आप इस लेख के अन्त में पढ़ेंगे) को अपनी सफलता और अमीरी के तमाम रहस्य बताये। एंड्रयू कारनेगी से जाने रहस्यों को लेखक ने एक कहानी के रूप सरल तरीके से प्रस्तुत किया और इस पुस्तक की रचना की, जिसके बारे में हम आपको इस कालम में बता रहे हैं और जिसका नाम है - अमीरी की चाबी आपके हाथ में

बहुत सी पुस्तकें ऐसी होती हैं, जिन्हें प्रायः प्रत्येक व्यक्ति ने पढ़ा होता है। लेकिन कुछ पुस्तकें ऐसी होती हैं, जिनको पढ़ना तो दूर उनके बारे में जानने वाले लोग भी बहुत कम होते हैं।

"अमीरी की चाबी आपके हाथ में" एक ऐसी ही पुस्तक है जिसका नाम तक बहुत से लोगों ने नहीं सुना।

जैसा कि इस पुस्तक के नाम से ही जाहिर होता है - यह लोगों को अमीर बनने के तौर-तरीकों के बारे में बताती है। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक एक साधारण व्यक्ति को असाधारण स्तर का अमीर व्यक्ति बनना सिखाता है।

इस पुस्तक के पूर्वकथन के माध्यम से लेखक स्वयं इस बात को स्पष्ट करता है कि अमीरी की चाहत स्वार्थपूर्ण लग सकती है, लेकिन हम सब जानते हैं कि यह एक स्वाभाविक इच्छा है।

अमीरी का सफलता से बहुत पुराना और गहरा सम्बन्ध है। जब से इस सृष्टि पर मानव की सफलता-असफलता का निर्णय किया जाने लगा है - इस निर्णय में उसके आर्थिक स्तर ने सबसे अधिक सहयोग दिया है। प्राचीन काल से ही धन सफलता का पैमाना रहा है। जिसके पास अधिक धन वह अधिक सफल। न केवल प्राचीन काल में बल्कि आज भी अधिकतर लोग सफलता के लिये इसी पैमाने का उपयोग करते हैं और वे धनी व्यक्ति को ही सफल मानते हैं।

यह पुस्तक एक व्यक्ति को इस तरह से अमीर बनना सिखाती है कि वह सही मायने में सफल हो जाये।

पुस्तक के आरम्भ में लेखक ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अमीरी का ताल्लुक भौतिक वस्तुओं, धन या बैंक बैलेंस से ही नहीं है।

लेखक आगे चलकर पूरी तरह से यह स्पष्ट करता है कि अमीरी का ताल्लुक बारह प्रकार की दौलतों से है। जिस भी व्यक्ति के पास ये बारह दौलतें होंगी वह बहुत उच्च दर्जे का अमीर व सफल व्यक्ति बन सकता है।

इतना जानने के बाद आपको यह लग सकता है कि इस पुस्तक में बहुत कठिन नियमों के बारे में बताया गया होगा। ऐसा सोचना स्वाभाविक भी है। आखिर’ एंड्रयू कारनेगी जितना अमीर व सफल बनना किसे आसान लगेगा?

लेकिन कारनेगी के माध्यम से लेखक पुस्तक के आरम्भ में ही यह बता देता है कि इन 12 दौलतों को पाने और अमीर बनने की शर्तें बहुत मुश्किल नहीं। बल्कि कोई औसत बुद्धि का व्यक्ति भी इन शर्तों को आसानी से पूरा कर सकता है।

अमीर बनने के लिये इस पुस्तक में न तो कोई चालाकी से भरे जाल का उपयोग किया गया है, न ही शब्दों का आडम्बर रचा गया है और न ही कोई झूठे व बड़े-२ वादे किये गये हैं।

बल्कि बडे ही सरल ढंग से व्यवहारिक नियमों की व्याख्या की गई है। ये नियम इतने साधारण हैं कि कोई भी औसत बुद्धि का व्यक्ति इन नियमों का पालन कर सकता है।

अगर आप वाकई अमीर या कामयाब बनना चाहते हैं तो आपको एंड्रयू कारनेगी के इन रहस्यों को अवश्य जानना चाहिये। ये रहस्य कोई गम्भीर रहस्य नहीं, बल्कि व्यक्ति की आदतों के बारे में हैं।

लेखक एड्रंयू कारनेगी के माध्यम से स्पष्ट करता है कि अमीर या गरीब अथवा सफल या असफल होना भाग्य की नहीं बल्कि आदत की बात है। अगर आप को गरीबी में रहने की आदत पड़ जाये तो आप अमीर बनने के लिये प्रयास तक नहीं करेंगे और यदि आपको अमीर बनना है तो भले ही आप फिलहाल गरीब हों, तो भी आप इस पुस्तक में बताई गई आदतों को अपना कर अमीर बन सकते हैं।

और अब बात करते हैं इस पुस्तक के लेखक के बारे में। लेखक का नाम बताने से पूर्व लेखक तथा एंड्रयू कारनेगी की मुलाकात तथा उनकी कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में बात कर लें।

जब एंड्रयू कारनेगी पहली बार इस लेखक से मिले तो उन्होंने पूछा - अगर मैं तुम्हें व्यक्तिगत सफलता की दुनिया की पहली फिलासफी विकसित करने का अवसर दूँ और उन लोगों से तुम्हारा परिचय करवाऊँ, जो इसे विकसित करने में तुम्हारी मदद करेंगे, तो क्या तुम इस अवसर का लाभ उठाना चाहोगे? क्या तुम यह काम करना चाहोगे?

लेखक ने बिना हिचकिचाये जवाब दिया - मैं यह काम अवश्य करूँगा।

लेखक ने यह जवाब मात्र 29 सैकेण्ड में दिया था, जबकि एंड्रयू कारनेगी ने इस जवाब के लिये 60 सैकेण्ड निर्धारित किये हुये थे और यह तय किया हुआ था कि यदि इसका जवाब लेखक 60 सैकेण्ड में नहीं दे पाता तो वे उस लेखक को यह काम नहीं सौंपते बल्कि किसी और को सौंपते। पर क्योंकि लेखक ने मात्र २९ सैकेण्ड में बड़ा स्पष्ट जवाब दिया, इसलिये न केवल उसे यह ज्ञान मिला बल्कि दुनिया भर की प्रसिद्धि भी मिली।

इस काम को करने के लिये एंड्रयू कारनेगी ने लेखक को किसी भी तरह का पारिश्रमिक (Labour) अर्थात् मेहनत का मूल्य देने से साफ इन्कार कर दिया। जबकि लेखक को लग रहा था कि दुनिया का सबसे अमीर आदमी इस काम के बदले में मुँह मांगा पारिश्रमिक देगा। कारनेगी ने पारिश्रमिक न देने का कारण स्पष्ट किया और कहा - ऐसी बात नहीं कि मैं पारिश्रमिक नहीं देना चाहता। मैं तो सिर्फ यह जानना चाहता हूँ कि क्या तुम में (सफलता प्राप्त करवाने वाला) यह गुण है कि तुम सेवा करते समय पारिश्रमिक की आशा किये बिना एक मील आगे तक जा सकते हो या नहीं?

अपने समय के दुनिया के सबसे अमीर आदमी एंड्रयू कारनेगी ने अमीरी के रहस्यों को जन-२ तक पहुँचाने के लिये इस लेखक को जिम्मेदारी सौंपी। और इस लेखक ने इस जिम्मेदारी को सफलता पूर्वक निभाया, जिसका परिणाम है यह पुस्तक।

आप इस लेखक से पहले भी मिल चुके हैं।

इस लेखक का नाम है - नेपोलियन हिल। विश्व-प्रसिद्ध पुस्तक सोचिये और अमीर बनिये के लेखक। लेखक की यह रचना सोचिये और अमीर बनने से आगे की बात बताती है। सोचिये और अमीर बनिये पुस्तक अपने आप में सम्पूर्ण कोर्स है। अमीरी की चाबी आपके हाथ में इस कोर्स का दूसरा एवम् व्यवहारिक हिस्सा है। अगर आपने सोचिये और अमीर बनिये पढ़ी है तो आपको इस पुस्तक को अवश्य पढ़ना चाहिये।

यह पुस्तक दुनिया के सैंकड़ों सबसे शक्तिशाली और दौलतमंद लोगों के सफलता के अनुभवों पर आधारित है। इसमें सफलता का सबसे महान व्यवहारिक दर्शन पूरे विस्तार से दिया गया है। यह पुस्तक आपको यह बताती है कि आप किसी भी क्षेत्र में सफल कैसे हों।

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* सफलता के कोर्स की पहली किताब - http://kdsakhir.blogspot.com/2014/09/blog-post.html