Friday, March 27, 2020

आनन्द – घर बैठे काम करें और हजारों रूपये कमायें (नई नैट कहानी) (लेखक - सफलता गुरु विपिन सागर)

आपका 50% रिटर्न गिफ्ट - नई नैट कहानी

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मेरी सभी नैट कहानियों की तरह ये नई नैट कहानी भी नैटवर्कर्स यानि डायरैक्ट सैलर्स के उस समूह को समर्पित है जो हर हाल में सकारात्मक रहते हुये अपने जीवन को तो बेहतर बनाते ही हैं, साथ ही लोगों के लिये आदर्श बनकर दूसरों का जीवन भी बेहतर बनाने हेतू प्रयासरत रहते हैं। मैं ऐसे बहुत से लोगों से मिला हूँ और सौभाग्य से उनके साथ काम भी किया है। ऐसे लोग ही मेरी कहानियों की प्रेरणा भी बनते हैं।

इसके साथ-साथ ये नई नैट कहानी उन सभी पाठकों के लिये 50% रिटर्न गिफ्ट भी है जिन्होंने मेरी किताब ‘‘नैट कहानियाँ 21वीं सदी के बिजनेस की’’ पढ़ी है (बाकी के 50% रिटर्न गिफ्ट के लिए अभी थोड़ा इंतज़ार करें)। आप सभी पाठकों ने मेरी किताब को जो भरपूर प्यार और सम्मान दिया है, इसके लिये आपका बहुत-बहुत आभार। बहुत जल्द ‘‘नैट कहानियाँ 21वीं सदी के बिजनेस की’’ पुस्तक का दूसरा भाग भी आपके सामने होगा।

तब तक ‘‘नैट कहानियाँ 21वीं सदी के बिजनेस की” कहानियों और इस नई नैट कहानी का अपने बिजनेस में उपयोग करते रहें। इन कहानियों से खुद भी सीख हासिल करते रहें और अपनी टीम को लाभ पहुँचाने के लिये भी इन कहानियों का उपयोग करते रहें।

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नोट - इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं। व्यक्ति और स्थानों के नाम केवल कथानक को मनोरंजक बनाने के लिये उपयोग किये गये हैं। किसी व्यक्ति के साथ नाम की समानता मात्र संयोग होगी।

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आनन्द की उम्र 70 वर्ष थी।

जब वो छोटा था तो उसके बहुत बड़े-बड़े सपने थे। इतने बड़े कि उसके खुद के घर के लोग भी उसे शेखचिल्ली, बड़बोला और पागल कह कर बुलाते थे।

सपने देखने वाले लगभग हर व्यक्ति को इन्हीं नामों के साथ सम्मानित(!) किया जाता है। उसका सहयोग करना तो दूर की बात रही, उसके खास, उसके अपने भी उसे हौंसला तक नहीं देते। इसके बावजूद जीवट और सफलता के लिये जुनूनी कुछ लोग अपने प्रयास नहीं छोड़ते। सफल होने से पहले हर सफलाकांक्षी को असफलता के कई लैवल पार करने पड़ते हैं। लेकिन जब कोई व्यक्ति असफल होता है तो उसके वही तथाकथित ‘अपने शुभचिंतक’, जो उसे प्रयास करते समय कभी हौंसला तक नहीं देते, यह बताने का फर्ज अदा करना नहीं भूलते कि ‘‘हम तो पहले से कहते थे कि तू शेखचिल्ली की तरह सपने मत देख।’’

इतना सब कुछ होने के बाद भी कुछ लोग तो सफलता के लिये ऐसे ‘‘जिद्दी’’ होते हैं कि जिन्दगी भले ही उनकी राह में जितनी चाहे बाधायें खड़ी कर दे, वे हर बाधा को पार करके ऐसा मुकाम हासिल कर लेते हैं कि सफलता ‘‘झक मारकर, उनके कदमों तले’’ आती है।

आनन्द से मिलोगे तो आपको इस बात की सच्चाई का पूरा-पूरा अहसास हो जायेगा।

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आनन्द का शुरूआती जीवन यानि उसका बचपन कोई खास नहीं था। उसके पैदा होने पर उसके माता-पिता को खुशी कम हुई थी, इसके बजाये उन्हें इस बात की चिन्ता ज्यादा थी कि इसे क्या खिलायेंगे और कैसे?

क्योंकि आनन्द के पिता रिक्शा चलाते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन रिक्शा चलाने में ही बिताया था। इस काम से अगर उनकी कोई उपलब्धि थी तो यही थी कि उन्होंने अपना काम - रिक्शा चलाना - किराये के रिक्शे से शुरू किया था और आज उनके पास अपना खुद का रिक्शा था।

खुद का रिक्शा होने के बावजूद वो इतना नहीं कमा पाते थे कि परिवार का ढंग से गुजारा कर सकें।

इस पर समस्या ये भी थी कि आनन्द से पहले उनकी चार बेटियां भी थीं।

अपनी बहुत कम - लगभग ना के बराबर - आमदन के कारण आनन्द के पिता अपने बेटियों को स्कूल तक नहीं भेज पाते थे। ऐसे हालात में पाँचवी सन्तान निश्चित ही माता-पिता की चिन्ता का कारण बनेगी।

पर आनन्द के पिता ने सोचा, ‘‘चलो! जिस परमात्मा ने औलाद दी है वो इसके खाने का इन्तजाम भी कर ही देगा। तो मैं चिन्ता क्यों करूँ?’’

आनन्द के पिता ने ना तो चिन्ता की और ना ही इस बात पर चिन्तन किया कि अब उन्हें अपने काम और अपनी आमदन को बढ़ा लेना चाहिये। नतीजा वही रहा जो पहले था। वो पहले भी बामुश्किल गुजारा करते थे, अब भी बामुश्किल ही गुजारा करने लगे। लेकिन आमदन कम और खर्चे अधिक होने के कारण घर के हालात सुधरने के बजाये, पहले से ज्यादा बिगड़ने लग गये।

आनन्द धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। घर की कमजोर हालत के कारण वो भी स्कूल नहीं जा पाता था। लेकिन आनन्द अपने नाम के अनुरूप ही था। हमेशा आनन्द में मगन रहता और दूसरों के आनन्द का भी कारण बनता। वह बातें बहुत अच्छी करता था।

छोटे बच्चे की सीखने की क्षमता बहुत अच्छी होती है। बचपन में हर बच्चा अपने जीवन में आने वाले हर व्यक्ति और हर घटना से कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है।

आनन्द का समय अधिकतर पड़ौसियों के यहाँ टेलीविजन पर फिल्में और नाटक आदि देखने में तथा खेलने में ही बीतता।

फिल्में देखकर वह उस एक्टर की नकल करता रहता था जिसके पास बहुत सारी कारें होतीं। उसके घर के पास ही एक पार्क था जिसमें अमीरों के बच्चे भी खेलने आया करते थे। जब वो बच्चे अपने माता-पिता के साथ अपनी कारों में पार्क आते तो आनन्द उन की कारों को देखता और उन बच्चों और उनके माता-पिता के हाव-भाव की नकल करता रहता।

अपने घर पर वह अपने माता-पिता और बहनों को अक्सर कहता रहता था कि ‘‘जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तो मैं भी कारें चलाया करूँगा।’’

जब आनन्द छोटा बच्चा था और तोतली जुबान में ये बोलता कि ‘‘जब मैं बला हो जाऊँदा तो मैं भी तालें चलाया तलूँदा।’’ तो उसकी बातें सुनकर उसके परिवार के सभी लोग खूब हँसते।

जब आनन्द थोड़ा बड़ा हुआ और उसकी जुबान ठीक हो गई तो भी उसकी बातें सुनकर परिवार के लोग हँसते।

जब आनन्द छोटा था तो परिवार के सदस्यों की हँसी ‘‘खुशी वाली हँसी’’ थी, लेकिन बाद में उनकी यही हँसी आनन्द का ‘‘मजाक उड़ाने वाली हँसी’’ बन गई।

आनन्द का सपना कोई एक कार नहीं थी। बल्कि वो बहुत सारी कारों के सपने देखता था। इसी कारण उसकी बहनों ने उसका नाम शेखचिल्ली रखा था।

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और जब आनन्द 14 साल का हुआ तो उसके जीवन में एक ऐसा हादसा हुआ जिसने उसके परिवार की खराब हालत को और ज्यादा खराब कर दिया।

आनन्द खुद अपने लिये तो सपने देखता ही था, उसके परिवार के लोग, खासतौर पर उसके माता-पिता भी आनन्द को लेकर बहुत से सपने देखते थे। जैसे कि जब आनन्द बड़ा होगा तो परिवार की जिम्मेदारी उठायेगा, घर के खर्चों में आनन्द भी हाथ बँटायेगा, वगैराह-वगैराह।

लेकिन उनके सभी सपने टूट गये, जिसकी वजह एक बहुत ही भयानक हादसा था। एक दिन सड़क पार करते समय आनन्द को एक कार ने टक्कर मार दी। उसे सरकारी अस्पताल ले जाया गया। वहाँ हुये इलाज के कारण उसकी जान तो बच गई लेकिन उसके शरीर का, कमर से लेकर पैरों तक का, नीचे का हिस्सा बेकार हो गया।

आनन्द अपंग हो गया। डॉक्टर्स ने उसके माता-पिता को स्पष्ट बता दिया कि आनन्द का इलाज लम्बा चलेगा। लगभग डेढ़-दो साल उसका इलाज चलेगा, लेकिन इसके बावजूद वह चल नहीं पायेगा। उसका पूरा जीवन अब व्हील चेयर पर ही बीतेगा।

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ऊपर वाला कुछ लोगों को शायद दर्द-प्रूफ बना कर भेजता है। जिन्दगी उन्हें चाहे जितनी मर्जी तकलीफें दे ले, वो कभी भी दर्द को लेकर शिकायत नहीं करते। बल्कि हर हाल में सकारात्मक और खुश रहते हैं।

आनन्द भी ऐसा ही ‘‘दर्द-प्रूफ’’ था। जब आनन्द हॉस्पिटल से व्हील चेयर पर घर वापिस लौटा तो पूरा परिवार उदास था लेकिन आनन्द नहीं। वो अपने नाम के अनुरूप तब भी आनन्द से भरा हुआ था।

उसकी बातों और आदतों में कोई फर्क नहीं पड़ा था। वह पहले भी आनन्द में मगन रहता था और दूसरों के आनन्द का कारण बनता था, और अब भी वह आनन्द में मगन रहता और दूसरों के आनन्द का कारण बनता।

इससे भी मजेदार बात ये थी कि अब भी वो अपने सपनों को नहीं भूला था। अब भी वो अपनी कारों को नहीं भूला था।

ना ही उसके परिवार के लोग आनन्द के सपनों का मजाक उड़ाना भूले थे।

अब तो हालात इतने खराब हो चुके थे कि आनन्द के सपनों और उसकी कारों के बारे में सुनकर उसके परिवार के लोग गुस्सा तक करने लगे।

एक दिन जब आनन्द ने ये कहा कि ‘‘तुम सब देखना, एक दिन मेरे पास बहुत सारी कारें होंगी’’ तो उसकी बात सुनकर आनन्द के पिता को बहुत तेज गुस्सा आ गया। गुस्से से पूरी तरह भरे हुये उन्होंने आनन्द से पूछा, ‘‘अरे बेवकूफ लड़के! कुछ तो सोच कर बोला कर। हर समय बड़ी-बड़ी बातें करता रहता है। कम से कम अपनी हालत तो देख। और मुझे ये बता कि अब तू कार का करेगा क्या? ओह कार नहीं बल्कि कारें। ठीक है तू कारें ले लेगा, पर ये बता कि उन्हें चलायेगा कैसे? अपनी हालत देखी है?’’

आनन्द को मानो अपनी हालत से कोई लेना-देना ही नहीं था। वो मुस्कुराते हुये बोला, ’’पापा! कारें चलाने के लिये पैर की क्या जरूरत! कारों को तो ड्राईवर्स से भी चलवा सकते हैं ना।’’

उसकी ये बात सुनकर उसके पिता पहले से भी अधिक नाराज हो गये और बोले, ‘‘अपने खाने का ठिकाना नहीं और सेठ जी ड्राईवर्स रखेंगे! आनन्द, देख मैं तुझे आखिरी बार समझा रहा हूँ। तू अपनी ये फालतू बकवास बन्द कर दे। अगली बार अगर तूने ऐसी बकवास की तो मेरे हाथों से पिट भी जायेगा।’’

आनन्द हँसते हुये बोला, ‘‘शायद उससे पहले कार ही आ जाये।’’

उसके इस मजाक ने गुस्से में आग का काम किया और आनन्द के पिता ने अगली बार का इन्तजार किये बिना, उसी दिन आनन्द की पिटाई कर दी।

लेकिन इसके बावजूद कुछ भी नहीं बदला। ना तो आनन्द का मिजाज बदला, ना उसके परिवार के लोगों का मिजाज बदला और ना ही उसके घर के हालात में कोई बदलाव हुआ।

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लेकिन आज जब आनन्द की उम्र 70 वर्ष की हो चुकी है, उसके पास वास्तव में कार नहीं बल्कि बहुत सी कारें हैं। वह एक आलीशान जीवन जीता है।

उसका रहन-सहन देखकर लोग हैरान भी होते हैं और ये भी सोचते हैं कि हम हाथ-पैर सही होते हुये भी इतना शानदार जीवन नहीं जी पाते, जितना आनन्द बिना पैरों के जी रहा है। कुछ लोग इसे आनन्द की किस्मत या भगवान का चमत्कार मानते।

लेकिन आयशा, जो कि एक पत्रकार थी, वो आनन्द के रहन-सहन को देखकर किस्मत या भगवान का चमत्कार नहीं मानती थी। बल्कि उसका ये मानना था कि आनन्द की अमीरी का कारण स्मगलिंग या नशा सप्लाई करने जैसा कोई जघन्य अपराध है।

वह इस सम्बन्ध में आनन्द के बारे में खोजबीन करती रहती थी। लेकिन उसकी खोजबीन से उसे कोई तसल्लीबख्श परिणाम नहीं मिला था।

एक दिन उसने सोचा कि क्यों ना आनन्द से ही मिला जाये और उसका इंटरव्यू लिया जाये। इंटरव्यू के दौरान ऐसी कोई न कोई बात तो पकड़ में आयेगी जिसके सहारे आनन्द के अपराध का भण्डा फोड़ा जा सकेगा।

ये सोचकर उसने आनन्द से मिलने का समय लेने के लिये फोन किया।

उसने फोन पर आनन्द को बताया, ‘‘सर! मैं डेली मीडिया से रिपोर्टर आयशा बात कर रही हूँ। मैं एक स्टोरी पर काम कर रही हूँ जो ऐसे लोगों पर आधारित है जिन्होंने ज़िन्दगी की हर तकलीफ को पार करके कोई रिमार्केबल पोजिशन बनाई हो। इस सम्बन्ध में हमने अपनी रिसर्च में ये पाया कि आपने भी ज़िन्दगी में बहुत सी तकलीफें झेली हैं और आज एक बहुत ही रैसपेक्टिड पोजिशन में हैं। सर! इस स्टोरी के लिये आपका इंटरव्यू लेना चाहती हूँ, अगर आप इजाजत दें तो।’’

आनन्द ने मुस्कुराते हुये जवाब दिया, ‘‘आयशा जी! आप जब चाहे आ सकती हैं।’’

आयशा अपनी सफलता के पहले पायदान पर विजयी हो कर उत्साहित हो गई और उत्साह में भरे-भरे ही उसने पूछ लिया, ‘‘अरे वाह! थैंक्यू वैरी मच सर! तो क्या मैं कल सुबह 10 बजे आ जाऊँ?’’

आनन्द ने हामी भर दी।

आयशा ने फोन काटने से पहले एक बार फिर थैंक्यू बोला और अपने इंटरव्यू की तैयारी में जुट गई।

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आयशा ने आनन्द से इंटरव्यू के लिये कुछ ऐसे सवाल सोचे थे जिन्हें सुनकर आनन्द को गुस्सा आने की पूरी-पूरी सम्भावना थी।

आनन्द को गुस्सा आने का मतलब था कि आयशा जिस दिशा में सोच रही थी वो सही थी, मतलब आनन्द की आमदन का स्रोत निश्चित ही कोई गलत काम था। आनन्द को गुस्सा आता तो वह आयशा को कोई धमकी वगैराह भी जारी कर सकता था, इसका भी वही मतलब निकलता जो आयशा सोचती थी।

आयशा ने आनन्द से पूछने के लिये जो सवाल सोचे थे, वो वाकई काफी गम्भीर थे और आयशा की निगाह में आनन्द जैसे अनपढ़ व्यक्ति को उलझाने के लिये काफी पर्याप्त थे। आयशा के सवालों की लिस्ट ये थी -

  • आपके पिता रिक्शा चलाते थे। ऐसी हालत में आपकी इतनी शानदार आर्थिक स्थिति का क्या राज है?
    • नोट - आनन्द की वर्तमान आर्थिक स्थिति: 100 करोड़ की सम्पत्तियां।
  • आपने ऐसा कौन सा काम किया कि केवल 50 वर्षों में इतनी सम्पत्ति जुटा ली?
  • क्या आप की आय का स्रोत अपराधियों से सम्बन्ध हैं?
  • आपके किन राजनेताओं से सम्बन्ध हैं?
  • आप टैक्स तो चुकाते नहीं होंगे?

आयशा को तो ये तक लग रहा था कि आनन्द उसके रिपोर्टर होने की बात सुनकर खौफ में आ चुका होगा और इंटरव्यू में आमना-सामना होने पर वह घबराया हुआ होगा।

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लेकिन आनन्द ने आयशा की सारी उम्मीदों को तोड़ दिया।

जब आयशा आनन्द से मिलने उसके घर पर ही स्थित ऑफिस में उसे मिलने पहुँची तो आनन्द अपनी राईटिंग टेबल पर बैठा उसी का इन्तजार कर रहा था। जैसे ही आयशा ने आनन्द के ऑफिस में कदम रखा, आनन्द ने मुस्कुराते हुये और एक बुलन्द आवाज के साथ आयशा का स्वागत किया।

आयशा, आनन्द के स्वागत करने के तरीके से एक तरफ तो हैरान थी और दूसरी तरफ खुश भी थी, कि कितने सभ्य ढंग से स्वागत किया गया।

आनन्द के शब्द कुछ ऐसे थे, ‘‘आईये आयशा जी आईये! आपका स्वागत है। मैं आपका ही इन्तजार कर रहा था। माफ कीजियेगा, आपके सम्मान में खड़े होकर आपका स्वागत नहीं कर सकता।’’ इन शब्दों में आनन्द ने जो भाव डाले थे, वो एक महिला के प्रति किसी पुरूष के भाव नहीं थे। बल्कि वो तो एक पिता के अपनी पुत्री के लिये जैसे भाव थे। शब्द महत्वपूर्ण नहीं थे, उन शब्दों के भीतर छिपे भाव और आनन्द की भावना महत्वपूर्ण थी।

आयशा, जो आनन्द के अपराध की जड़ें उखाड़ने आई थी, वो आनन्द के भाव से बहुत ही प्रभावित हो गई। उसकी सारी नकारात्मकता जैसे एकदम गायब सी हो गई थी। आनन्द के ऑफिस में उसके सामने रखी कुर्सी पर बैठने से पहले वह आनन्द के प्रति बहुत सकारात्मक हो चुकी थी। उसने मन ही मन ये मान लिया था कि ये आदमी कुछ भी हो, पर अपराधी नहीं हो सकता।

अब उसे अपने ऊपर इस बात के लिये गुस्सा आने लगा था कि उसने इंटरव्यू के लिये ऐसे टेढ़े सवाल क्यों रखे थे!

लेकिन अब वो कुछ नहीं कर सकती थी। हाँ उसे घबराहट हो सकती थी, जो कि उसे हो भी रही थी।

एक तरफ तो उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था और साथ ही घबराहट भी हो रही थी, दूसरी तरफ उसने इंटरव्यू के लिये जो सवाल सोचे थे, वे सब सवाल उसे बेमानी और गलत लगने लगे थे और अब उसे ये नहीं सूझ रहा था कि वो आनन्द से कौन से सवाल पूछे।

इसी घबराहट में उसने आनन्द से वही सवाल पूछने शुरू कर दिये जो वो लिख कर लाई थी।

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आयशा ने पूछा, ‘‘आनन्द जी, सबसे पहले तो मुझे यह जानना है कि आपके पिता रिक्शा चलाते थे। ऐसी हालत में आपकी इतनी शानदार आर्थिक स्थिति का क्या राज है? मेरी जानकारी के अनुसार आपकी वर्तमान आर्थिक स्थिति बहुत ही मजबूत है और आप 100 करोड़ की सम्पत्तियों के मालिक हैं। इस बारे में कुछ बतायें कि आपने ऐसा कौन सा काम किया कि केवल 50 वर्षों में इतनी सम्पत्ति जुटा ली?’’

आनन्द ने मुस्कुराते हुये ही जवाब दिया, ‘‘आयशा जी! मेरी आर्थिक स्थिति के बारे में आप गलत बोल रही हैं कि मैं 100 करोड़ की सम्पत्तियों का मालिक हूँ। साथ ही आप ये भी गलत बोल रही हैं कि मैंने 50 वर्षों में ये सम्पत्ति जुटाई है।

सच तो यह है कि वर्तमान में मैं 100 करोड़ नहीं बल्कि 125 करोड़ की सम्पत्तियों का मालिक हूँ। साथ ही मैंने ये सम्पत्ति 50 वर्षों में नहीं जुटाई। बल्कि इसे जुटाने में मुझे केवल 15 वर्ष लगे हैं।’’

आनन्द की बात सुनकर आयशा पहले से अधिक हैरान हो गई। स्वाभाविक तौर पर उसके मुँह से यही निकला, ‘‘कमाल है! लेकिन कैसे?’’

आनन्द की मुस्कुराहट और बढ़ गई। आनन्द ने कहा, ‘‘जो लोग नैटवर्क बिजनेस की ताकत को नहीं जानते उनके लिये ये हैरानी की बात हो सकती है। लेकिन नैटवर्क की ताकत का उपयोग करने वालों के लिये ये बिल्कुल भी हैरानी की बात नहीं है।’’

आयशा को समझ तो कुछ नहीं आया, फिर भी उसने हिम्मत दिखाते हुये अपना तैयार किया हुआ अगला सवाल पूछा, ‘‘नैटवर्क यानि ताल्लुकात। इसका मतलब क्या अपराधियों के नैटवर्क से आपके सम्बन्ध आपकी आय के स्रोत हैं?’’

आनन्द हँस पड़ा। हँसते-हँसते उसने कहा, ‘‘अरे नहीं-नहीं आयशा जी। मेरा अपराधियों के किसी नैटवर्क से कोई सम्बन्ध नहीं है। बल्कि मैं एक सीधा-सादा और सरल सा बिजनेस करता हूँ।’’

इंटरव्यू के इस पड़ाव पर पहुँचते-पहुँचते आयशा की हिम्मत बढ़ चुकी थी। आनन्द की बातों से उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। अब उसे फिर से अपनी पहले वाली सोच ही सही लगने लगी थी। अब उसने आनन्द से सधे शब्दों में सवाल किया, ‘‘सर! सीधे-सादे और सरल बिजनेस से इतनी आमदन! बात कुछ हजम नहीं हो रही। कहीं आपके इस सीधे-सादे और सरल बिजनेस के पीछे किसी राजनेता का काला धन तो नहीं छिपा हुआ? आपके किन राजनेताओं से ताल्लकुात हैं?’’

इस सवाल से आनन्द थोड़ा गम्भीर हो गया और उसने धीर-गम्भीर आवाज में आयशा के सवाल का जवाब देना शुरू किया, ‘‘आयशा जी! मेरे किसी भी राजनेता से कोई ताल्लुकात नहीं हैं। और मैं रखना भी नहीं चाहता। मुझे अपने बिजनेस से ही फुर्सत नहीं मिलती।’’

आयशा ने अगला सवाल पूछा, ‘‘सर! आप सरकार को कोई टैक्स तो चुकाते नहीं होंगे?’’

आनन्द ने इस सवाल के बदले आयशा से ही कुछ सवाल पूछ लिए जिसने आयशा को पूरी तरह निरूत्तर कर दिया।

आनन्द बोला, ‘‘आयशा जी! क्या आप पहले से ही जवाब तय करके आई हैं? आपको ऐसा क्यों लगा कि मैं सरकार को टैक्स नहीं देता?

आयशा जी! इससे पहले कि मैं आगे कुछ बताऊँ, मैं आपसे और आपके माध्यम से पूरे मीडिया जगत से और साथ ही हर भारतीय से कुछ सवाल पूछना चाहता हूँ।

ऐसा क्यों है कि हम हर सफलता में अपराध की गंध ढूँढते हैं?

हमारा मीडिया और समाज इतना नकारात्मक क्यों है? क्या कारण है कि हम हर सफल व्यक्ति की सफलता के लिये या तो उसकी किस्मत को जिम्मेदार मानते हैं या फिर किसी अपराध को? हमें ऐसा क्यों नहीं लगता कि ईमानदारी और मेहनत से ही सफलता पाई जा सकती है, जबकि यही सच है? कहीं इसका कारण ये तो नहीं कि क्योंकि हम खुद पूरी तरह ईमानदार नहीं हैं, इसलिये हमें कोई दूसरा भी ईमानदार नहीं लगता?

ऐसा भी क्यों है कि जो चीज हमें समझ नहीं आती, हम हमेशा उसे गलत ही मानते हैं? और उसे सही मानने वाले को भी हम गलत मानते हैं? क्यों हम चीजों को सही ढंग से और सकारात्मक नजरिये से समझने की कोशिश तक नहीं करते?

आपके सवालों से ऐसा नहीं लगता कि आप मेरी उन्नति को हाईलाईट करने के लिये मेरा इंटरव्यू लेने आई हैं, बल्कि ऐसा लगता है कि आप मुझे गलत और अपराधी साबित करने आई हैं। ऐसा क्यों? क्या केवल इसलिये कि मैं आर्थिक दृष्टिकोण से आपकी उम्मीदों से कहीं अधिक सक्षम हो चुका हूँ?

अगर आप ये जानना ही चाहती हैं कि मेरी आर्थिक उन्नति का क्या राज है तो आप उसे समझने के लिये समय क्यों नहीं देना चाहतीं?

मेरे इस तरह के सवालों के लिये माफी चाहूँगा। लेकिन ये देख कर बहुत बुरा लगता है कि हम अपने देश के सफल लोगों का बिल्कुल भी सम्मान नहीं करते। मैं केवल अपनी बात नहीं कर रहा। किसी भी क्षेत्र के सफल व्यक्ति के प्रति हमारा रवैया लगभग ऐसा ही है।

उदाहरण के लिये यदि कोई सफल खिलाड़ी किसी मैच में अच्छा प्रदर्शन ना कर पाये तो हमें ये लगता है कि उसने खराब प्रदर्शन जान-बूझ कर किया है। इससे भी बड़ी हैरानी की बात ये है कि हमें जो लगता है, हम उसे ही सच मानकर उस खिलाड़ी के प्रति क्रूरता की हद तक चले जाते हैं। क्या ऐसा व्यवहार उचित है?

ऐसे ही फिल्मी दुनिया के सफल लोगों की किसी मामूली सी बात को हम इतना बड़ा बतंगड़ बना देते हैं कि हम उनकी पिछली सारी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। आखिर हम किसी की मेहनत का सम्मान क्यों नहीं कर पा रहे हैं?’’

इतना बोलकर आनन्द चुप हो गया और आयशा की ओर सवालिया निगाहों से देखने लगा।

लेकिन आयशा आनन्द के सवालों को सुनकर पूरी तरह निरूत्तर हो चुकी थी। वह कुछ पलों तक कुछ बोल ही नहीं पाई।

फिर किसी तरह उसने हिम्मत जुटा कर बोलना शुरू किया। वो धीमी आवाज में बोली, ‘‘आई एम वैरी सॉरी सर! आप सच कह रहे हैं। मैं आपके खिलाफ कुछ सबूत ही जुटाने आई थी। सच में मुझे यही लग रहा था कि आपकी मजबूत आर्थिक स्थित का कारण कोई अपराध ही है।

और सच कहूँ तो यहाँ आकर आपसे मिलने के बाद मुझे ये अहसास तो हो गया कि आपकी सफलता का राज कोई अपराध तो नहीं है। लेकिन मुझे अभी भी ये नहीं पता चला कि आपकी सफलता का राज क्या है?

अगर आप मेरी इस बात से नाराज हैं तो मैं आपसे हाथ जोड़कर माफी माँगती हूँ।’’ ऐसा कह कर आयशा ने अपने हाथ जोड़ लिये। उसकी आँखों में आँसू तक छलछला गये।

आनन्द तुरन्त बोला, ‘‘नहीं-नहीं आयशा जी! आपको माफी माँगने की जरूरत नहीं। जरूरत सिर्फ समझने की है। प्लीज आप अपने मन पर कोई बोझ ना रखें।’’

आयशा ने अपनी आँखों को पोंछा और बोली, ‘‘थैंक्यू वैरी मच सर! यू आर वैरी काइंड।’’

आनन्द ने मुस्कुराते हुये आयशा का थैंक्यू स्वीकार किया।

तभी वहाँ आनन्द के घर का नौकर चाय और नाश्ता लेकर आ गया जिससे उन दोनों की बातों में अल्प विराम लग गया।

आनन्द बोला, ‘‘चलिये बाकी बातें चाय-नाश्ते के साथ करते हैं।’’

आयशा हैरानी से बोली, ‘‘बाकी बातें सर! मुझे तो लगा आपने इंटरव्यू खत्म कर दिया!’’

आनन्द हँसते हुये बोला, ‘‘ऐसे कैसे खत्म! अभी-अभी आपने कहा ना कि यहाँ आकर मुझसे मिलने के बाद आपको ये तो पता चल गया कि मेरी सफलता का राज कोई अपराध नहीं है। लेकिन अभी भी आपको ये नहीं पता चला कि मेरी सफलता का राज क्या है! तो क्या आप वो राज नहीं जानना चाहेंगी?’’

आयशा एकदम तपाक से बोली, ‘‘अरे सर! बिल्कुल! मैं जरूर ये राज जानना चाहती हूँ। प्लीज बतायें।’’

आनन्द मुस्कुराते हुये बोला, ‘‘श्योर। लेकिन चाय-नाश्ते के साथ।’’

आयशा ने भी मुस्कुराते हुये जवाब दिया, ‘‘श्योर सर!’’

नौकर चाय-नाश्ते की ट्रे रख कर वापिस चला गया और उनकी बात दोबारा शुरू हो गई।

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आयशा सम्भल कर बैठ गई और आनन्द ने बोलना शुरू किया, ‘‘आयशा जी! मेरे एक्सीडैंट के बाद मेरे परिवार के लोगों और मुझे जानने वाले लोगों को ये लगने लगा कि अब मेरा जीवन खत्म हो चुका है। मैं जीवन भर कुछ भी नहीं कर पाऊँगा। लेकिन ऐसा उन्हें लगता था, मुझे नहीं।

अगर किस्मत नाम की कोई चीज होती है तो उससे मुझे सिर्फ एक ही उपहार मिला है और वो है मेरी सकारात्मकता और सपने देखने की हिम्मत।

ज्यादातर लोग जीवन अच्छा होते हुये भी अक्सर नकारात्मक रहते हैं और कुछ भी नया या बड़ा करने की जीवन भर हिम्मत नहीं दिखा पाते। उनमें से कुछ लोग अगर कोशिश करते भी हैं तो शुरूआती असफलतायें उन्हें फिर से नकारात्मक कर देती हैं और उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है जिससे वे नकारा बन जाते हैं। जबकि असफलता तो सफलता का शुरूआती चरण है।

अपने एक्सीडैंट के बाद थोड़े दिनों तक घर में बन्द रहने के बाद जब मैं खालीपन की बोरियत से परेशान हो गया तो मैंने ये सोचा कि सारा दिन घर में बन्द पड़े रहने के बजाये क्यों ना कोई काम कर लिया जाये। ऐसा सोचकर मैं अपनी व्हील चेयर पर बैठकर घरवालों को यह कहकर घर से निकल गया कि ‘‘थोड़ी देर में आता हूँ।’’

घर से निकल कर मैं अपने मौहल्ले के पास बनी फैक्ट्रियों में पहुँचा। मैंने उन फैक्ट्रियों के मालिकों से मिल कर अपने लिये काम माँगा।

अधिकतर लोगों ने तो मेरी हालत देख कर ये समझा कि मैं काम माँगने नहीं बल्कि भीख माँगने आया हूँ, इसलिये उन्होंने मुझे कुछ पैसे देने की कोशिश की। लेकिन मुझे पैसों की नहीं बल्कि काम की जरूरत थी, सो मैंने पैसे लेने से और उन्होंने काम देने से इन्कार कर दिया।

एक दो फैक्ट्री मालिकों ने थोड़ी दया दिखाते हुये मुझसे जब ये पूछा कि, ‘‘ठीक है, विचार करते हैं। तुम कितना पढ़े लिखे हो और क्या काम कर सकते हो?’’ और जब मैंने उन्हें ये बताया कि मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूँ और कोई काम भी नहीं जानता तो उन फैक्ट्री मालिकों का दया-भाव भी शर्मिन्दा हो गया और मुझे खाली हाथ लौटना पड़ा।

मैं घर पर भले ही खाली हाथ लौटा, लेकिन मेरा आत्मविश्वास पहले की तरह ही भरपूर था। बल्कि मेरी निगाह में मुझे कम से कम एक काम तो मिल ही गया था - लोगों से मिलना। मैंने सोचा कि भले ही काम नहीं मिला लेकिन कम से कम बोरियत तो नहीं हुई।

अब जब मेरे लिये लोगों से मिलना ही काम बन गया था तो मैं हर रोज घर से निकल जाता और सारा दिन अपने काम पर लगा रहता यानि लोगों से मिलता रहता।

लगभग 5-7 दिन घूमने के बाद मुझे एक फैक्ट्री में काम मिल ही गया। फैक्ट्री मालिक बहुत ही भले दिल का आदमी था। मुझे देखकर वो फैक्ट्री मालिक बोला कि अगर शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद तुम कुछ काम करना चाहते हो तो तुम्हारे लिये मुझे काम ढूँढ ही लेना चाहिये।

और जैसा कि कबीरदास जी ने कहा था कि
खोजी होय तुरन्त मिल जाये, इक पल की तलाश में।
कहत कबीर सुनो भई साधो, मैं तो हूँ विश्वास में।

मेरे और उस फैक्ट्री के मालिक के सकारात्मक विश्वास की वजह से एक काम मिल ही गया जो मुझे दिया जा सकता था। फैक्ट्री मालिक को अक्सर अपने काम के सिलसिले में बाहर जाना पड़ता था। इसलिये उसने मुझे फैक्ट्री की देखभाल करने के लिये काम पर रख लिया।

उस दिन मैं मिठाई लेकर अपने घर लौटा। उसी दिन मेरे घर मिठाई के साथ-साथ खुशी भी आई।

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मुझे उस फैक्ट्री में काम करते हुये दो साल हो चुके थे, जब एक दिन फैक्ट्री में काम करने वाले मेरे एक सहकर्मी को उसके कुछ दोस्त मिलने आये। वो अपने दोस्त को एक पार्ट टाईम बिजनेस समझा रहे थे। उनकी बातें सुनकर मेरी भी उनके काम में रूचि पैदा हो गई। जब मैंने उस काम को पूरे विस्तार से और ध्यान से समझा तो मेरी आँखों में एक चमक पैदा हो गई। मुझे वो काम समझ भी आ गया और पसन्द भी।

उस दिन मैंने पहली बार नैटवर्क बिजनेस देखा। अक्सर लोग इसे गोले बनाने वाला या चेन बनाने वाला काम कहकर इससे दूर भाग जाते हैं। वे इसके सकारात्मक पहलूओं और इस बिजनेस के भीतर छिपी सम्भावनाओं को देख ही नहीं पाते। शायद इसकी एक बड़ी वजह वही है जिसका मैंने अभी थोड़ी देर पहले जिक्र किया था कि हमारा समाज नकारात्मक है। नकारात्मकता हमारी नसों में बसी हुई सी लगती है, जिसकी वजह से हम हर अवसर में सिर्फ नकारात्मक पहलू ही देख पाते हैं। जबकि सच तो ये है कि सकारात्मकता हो या नकारात्मकता, ये सिर्फ हमारा दृष्टिकोण है। कोई घटना या परिस्थिति सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होती, हमारा दृष्टिकोण ही उसे सकारात्मक या नकारात्मक तौर पर स्वीकार या अस्वीकार करता है।’’

आयशा की गर्दन सहमति में हिली।

आनन्द ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘मैंने इस बिजनेस के हर पहलू को समझने के लिये अपनी कम्पनी की मीटिंग्स और सैमीनार्स में जाना शुरू कर दिया। जब मुझे आवश्यक शुरूआती जानकारी मिल गई तो मैंने अपना काम शुरू कर दिया।

अपनी हालत की वजह से मैं खुद घूम-फिर कर काम नहीं कर सकता था, इसलिये मैंने एक फोन ले लिया और फोन पर ही काम शुरू कर दिया।’’

आनन्द की ये बात सुनकर आयशा बोली, ‘‘टोकने के लिये सॉरी सर! पर मैंने ऐसा सुना है कि लोग फोन पर समझते नहीं। उन्हें मिलकर ही समझाया जा सकता है।’’

आनन्द ने कहा, ‘‘यह ठीक है आयशा जी कि मिलना बेहतर होता है। लेकिन मैंने कहीं पढ़ा था कि अगर आपके पास एक फोन और इंटरनैट कनैक्शन है तो आप पूरी दुनिया के साथ बिजनेस कर सकते हो। सो मैंने काम शुरू कर दिया। वैसे भी लोगों को जा-जा कर मिलना मेरे लिये आसान नहीं था सो मैंने फोन पर ही समझाना शुरू कर दिया। जो लोग फिर भी मिलने की इच्छा रखते उन्हें मैं अपने पास बुला लेता।

मैंने अपने जानकार लोगों को फोन करने शुरू कर दिये। उनमें से कुछ लोगों ने मेरी बात सुनी और समझी। कुछ लोग तो ऐसे भी थे जिन्होंने मेरी पूरी बात ही नहीं सुनी और उससे पहले ही पता नहीं क्या समझ गये।

जिन लोगों ने मेरी बात सुनी और समझी, उनमें से कुछ लोगों ने काम शुरू कर दिया। उनमें से भी जब कुछ लोगों को काम शुरू करने पर असफलता मिली तो उन्होंने अपने काम करने के ढंग को सही करने के बजाये, काम को गलत कह कर छोड़ना ही मुनासिब समझा और वो चले गये।

इसके अलावा मैंने अखबार में विज्ञापन देना शुरू किया, जिससे मुझे अनजान लोगों के फोन आने लगे। उनमें से भी कुछ लोगों ने मेरी पूरी बात ही नहीं सुनी और उससे पहले ही ‘सब’ समझ गये और कुछ लोगों ने मेरी पूरी बात सुनी और समझी। समझने वाले कुछ लोगों ने काम शुरू कर दिया।

फिर वही हुआ कि जिन लोगों ने काम शुरू किया था उनमें से कुछ लोगों को जब असफलता मिली तो उन्होंने काम छोड़ दिया।

मैंने उन लोगों की परवाह नहीं की जो छोड़ कर जा रहे थे। बल्कि मैंने उन लोगों पर ध्यान दिया जो रूक कर काम करना चाहते थे। धीरे-धीरे मेरा अच्छा नैटवर्क बनने लगा, जिससे मेरी आमदन भी बनने लगी। ऐसे ही धीरे-धीरे काम बढ़ता गया और आमदन भी बढ़ती गई।

असल में नैटवर्क बिजनेस की असली ताकत ये नैटवर्क ही है। नैटवर्क की ताकत को समझना है तो आप टेलीकॉम कम्पनियों के नैटवर्क को देखिये, जहाँ एक फोन नैटवर्क के जरिये दुनिया के हर दूसरे फोन से जुड़ जाता है और लाखों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति से भी चंद सैंकेण्ड्स में सम्पर्क बना देता है।

आयशा जी! नैटवर्क का अर्थ है किसी वस्तु अथवा सेवा को एक सप्लाई सिस्टम के माध्यम से लोगों तक पहुँचाना।

नैटवर्क को समझने के लिये मुझे कुछ किताबों के सुझाव दिये गये। सो मैंने उन किताबों से फायदा उठाया और इस सिस्टम को अच्छी तरह समझा।’’

आयशा ने फिर एक बार सॉरी बोलते हुये आनन्द को टोका और सवाल किया, ‘‘लेकिन सर! मेरी जानकारी के अनुसार तो आप कभी स्कूल ही नहीं गये। फिर आपने किताबों से फायदा कैसे उठाया?’’

आयशा का सवाल सुनकर आनन्द को हँसी आ गई। हँसते हुये आनन्द ने आयशा से ही एक सवाल किया, ‘‘आयशा जी! क्या आमलेट का स्वाद लेने के लिये अण्डा देना जरूरी है?’’

आनन्द का सवाल सुनकर आयशा की भी हँसी निकल गई और वो हँसते-हँसते बोली, ‘‘जी बिल्कुल नहीं सर! लेकिन फिर भी ......’’

आनन्द ने आयशा के सवाल को बीच में रोकते हुये कहा, ‘‘आपके इस फिर भी का मैं जवाब देता हूँ ना! आयशा जी, मैं खुद पढ़ा लिखा नहीं हूँ लेकिन मेरे आस-पास और मेरी टीम में ऐसे बहुत से लोग थे और हैं जो पढ़े-लिखे थे। मैंने उनके पढ़े-लिखे होने का फायदा उठाया और मजे की बात ये है कि इस तरीके से मैंने उन्हें भी फायदा पहुँचाया। मैं तो बहुत कुछ सीखा ही, वो भी बहुत कुछ सीख गये। यानि हमारी पूरी टीम का बहुत तेजी से विकास हुआ।’’

आनन्द की ये बात सुनकर आयशा के मुँह से निकला, ‘‘वाह सर! क्या शानदार आईडिया निकाला!’’

आनन्द ने आयशा का शुक्रिया अदा किया और आगे बताना शुरू किया, ‘‘आयशा जी! ये शानदार आईडिया इस नैटवर्क बिजनेस की ही देन है। अगर मैं इस बिजनेस में नहीं आता तो शायद मुझे ये आईडिया ही नहीं आता।

आयशा जी! मेरा यकीन मानिये नैटवर्क बिजनेस में ऐसा बहुत कुछ है जो बहुत ही अच्छा है। लेकिन लोग अपने खराब और नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण इसकी अच्छाई को देखने से वंचित रह जाते हैं।

अब देखिये ना कि मैं कभी स्कूल नहीं जा पाया, लेकिन आज केवल अच्छे लोगों की संगत और अपनी प्रैक्टिस के कारण मैं किताबों का फायदा उठा पाता हूँ। बल्कि अब तो थोड़ा बहुत मैं खुद भी पढ़-लिख लेता हूँ। यहाँ तक कि थोड़ी-बहुत अंग्रेजी भाषा भी सुन-समझ लेता हूँ।

लेकिन अपने इस काम में मुझे सबसे अच्छी बात ये लगती है कि इस काम पर किसी भी तरह की मंदी या हालात का बुरा असर नहीं पड़ता। यहाँ तक कि अगर शहर में कर्फ्यू लगा हो तो भी इस काम को किया जा सकता है।’’

आनन्द की ये बात सुनकर आयशा बहुत हैरान हुई। हैरानी से भरे हुये उसने आनन्द से पूछा, ‘‘सर! ये बात मैं समझ नहीं पाई! ऐसा कैसे सम्भव है? कर्फ्यू में आप इस काम को कैसे कर सकते हैं?’’

आनन्द ने मुस्कुराते हुये कहा, ‘‘अंग्रेजी भाषा की एक कहावत है - थिंक आउट ऑफ द बॉक्स। आम आदमी इसलिये आम आदमी है क्योंकि वो अपनी सोच के दायरे से बाहर की बात सोच ही नहीं पाता। जबकि एक व्यक्ति अपनी सोच के दायरे से बाहर की बात सोच कर और उसके अनुसार काम करके आम आदमी से खास आदमी बन जाता है।

अगर शहर में कर्फ्यू लगा हो तो उस समय फोन पर लोगों के साथ बात करते हुये इस काम को किया जा सकता है। ये बिजनेस टीम वर्क का बिजनेस है। ऐसे समय में जबकि आप घर से बाहर नहीं निकल सकते उस समय नये लोगों को अपनी टीम का हिस्सा बनने के लिये प्रेरित कर सकते हैं। इस काम में आप सोशल मीडिया की भी मदद ले सकते हैं।

इसके अलावा जो आपकी पहले से बनी हुई टीम है उसके साथ आप फोन पर बातचीत कर सकते हैं। फोन पर ही अपने टीम को मोटीवेट करने का काम कर सकते हैं।

जैसा कि मैंने आपको थोड़ी देर पहले बताया कि इस डिजीटल युग में अगर आपके पास एक फोन और इंटरनैट कनैक्शन है तो आप पूरी दुनिया के साथ बिजनेस कर सकते हैं। कर्फ्यू के दौरान आप मीटिंग्स और सैमीनार्स नहीं कर सकते, लेकिन वैबीनार्स मतलब वैब साईट पर यानि इंटरनैट पर सैमीनार्स कर सकते हैं। आप यूट्यूब आदि प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके अपने वीडियोस बनाकर लोगों तक अपनी बात पहुँचा सकते हैं।

इसके अलावा इस काम की एक बहुत महत्वपूर्ण जरूरत है सीखना। अब सीखने का काम भी घर बैठ कर किया सकता है। अगर मैं घर बैठ कर वीडियो बना कर इंटरनैट पर डाल सकता हूँ तो मैं घर बैठ कर सीखने के लिये किताबें पढ़ने और लोगों के वीडियो देखने या ऑडियो सुनने का काम भी आसानी से कर सकता हूँ।

इसलिये मैं आज तक ये ही करता आया हूँ, ये ही कर रहा हूँ और आज एक अच्छा जीवन जी रहा हूँ।

आयशा जी! यही है मेरी सफलता का राज! ना कि कोई अपराध या अपराधियों और राजनेताओं से मेरे सम्बन्ध।

और हाँ! आपने पूछा था कि मैं सरकार को टैक्स तो नहीं देता होऊँगा। तो इस सम्बन्ध में मैं आपको ये बताना चाहूँगा कि इस सिस्टम से मुझ जो भी आमदन मिलती है वो टैक्स कटने के बाद ही मिलती है। यानि मैं सरकार को कर चुकाने वाला एक ईमानदार व्यवसायी हूँ।’’

आयशा ने आनन्द के प्रति अपने विचारों के लिये फिर से माफी माँगी और वादा किया कि इस तरह के काम को लोगों के बीच पहुँचाने की जरूरत है जिसे वो अपने अखबार के माध्यम से जरूर करेगी।

आनन्द ने आयशा को थैंक्यू कहा तो आयशा ने कहा, ‘‘सर! थैंक्यू तो आपका कि आपने अपनी सफलता के राज मेरे साथ शेयर किये। इसके अलावा इस बात के लिये खास थैंक्यू कि आपने मेरी नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल दिया। मैं आपकी बातों को हमेशा याद रखूँगी। और हाँ मैं भी आपके इस पोसीटिव नैटवर्क का हिस्सा बनना चाहूँगी, क्या आप मेरे जैसी नैगेटिव लड़की को इसका हिस्सा बनने का अवसर देंगे?’’

आनन्द ने मुस्कुराते हुये जवाब दिया, ‘‘यू आर आलवेस मोस्ट वैलकम आयशा जी! इस रविवार को सुबह 11 बजे हमारी एक बिजनेस मीटिंग है, आपका इसमें स्वागत है।’’

आयशा ने मुस्कुराते हुये आनन्द को थैंक्यू कहा और आनन्द से विदा ली।

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अगले दिन के अखबार का मुख्य आकर्षण 70 वर्षीय आनन्द और उसकी प्रेरणादायक कहानी था, जिसे लोगों ने बहुत अधिक पसंद किया।

निश्चित ही इससे आनन्द के बिजनेस को और भी फायदा मिलने वाला था।

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