शिक्षा के क्षेत्र में भारत जहाँ लगातार पिछड़ता जा रहा है, वहीं गुरू-शिष्य का रिश्ता भी अपनी पवित्रता खोता जा रहा है।
आये दिन स्कूलों-विद्यालयों में ऐसी घटनायें घटती दिखाई दे रही हैं जो इस सत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। उदाहरण के तौर पर गत दिवस जालन्धर में जहाँ एक निजी स्कूल के छात्र ने परीक्षा अच्छी करवाने के लिए प्रिंसीपल पर पिस्तौल तान दी और उन्हें धमकाया, वहीं अमृतसर में +2 की परीक्षा के दौरान कुछ छात्रों ने डिप्टी सुपरीटेंडेंट पर हमला कर दिया। यह घटनायें देश और समाज के भविष्य को लेकर निश्चित रूप से डराने वाली हैं।
इस प्रकार की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि वर्तमान शिक्षा में कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ी है, जो छात्रों में नैतिक पतन के लिए जिम्मेदार है।
इसके लिए मात्र स्कूली शिक्षा प्रणाली को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, बल्कि इसमें माता-पिता की परवरिश भी अहम कारण है। क्योंकि बच्चे की प्रारम्भिक शिक्षा उसके घर से ही आरम्भ होती है।
विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ नैतिक शिक्षा प्रदान करना जहाँ स्कूलों की जिम्मेदारी है, वहीं अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना माता-पिता का भी परम कर्तव्य है। यही वह बुनियाद होती है जिस पर बच्चे का, समाज का और देश का भविष्य निर्भर करता है।
सर्वाधिक चिन्ता की बात यही है कि अब यह बुनियाद उतनी मजबूत नहीं दिख रही है।
अभी भी अधिक विलम्ब नहीं हुआ है और यह सभी की जिम्मेदारी है कि इसके पीछे के कारणों की तलाश की जाये और उसे सुधारने के लिए तत्काल कारगर उपक्रम भी किये जायें।
एक विद्यार्थी ही आने वाले कल का भविष्य होता है। उसका आने वाला भविष्य, उसकी सफलता, समाज व देश की उन्नति में उसका योगदान विद्यार्थी की स्कूली शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा पर भी निर्भर करता है।
यदि हम चाहते हैं कि बच्चे बड़े हो कर जिम्मेदार नागरिक बनें और समाज व देश के विकास में अपना योगदान दें तो हमें बुनियादी शिक्षा में आमूल-चूल सुधार करना होगा।
सभी को यह समझना होगा कि मात्र स्कूल बैग का वजन बढ़ाने और किताबी ज्ञान देने से बच्चों का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता अपितु बच्चों का मनोभाव समझते हुए उन्हें व्यवहारिक व नैतिक शिक्षा देना भी अति आवश्यक है। यह मात्र स्कूलों को ही नहीं अभिभावकों की भी जिम्मेदारी है।
लेखक - मास्टर राम एकबाल भगत, अध्यापक एवम् व्यवसायी
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