Sunday, October 19, 2014

के डी परिवार का "सफलता का ज्ञान-अनुसन्धान यज्ञ"


आओ मिलकर सफलता के व्यावहारिक कोर्स की रचना करें।

आप सब आमंत्रित हैं के डी परिवार के अभूतपूर्व "सफलता के ज्ञान-अनुसन्धान यज्ञ" में।

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है कि ये यज्ञ सफलता के ज्ञान के लिए होगा।

के डी परिवार में हम चाहते हैं कि सम्पूर्ण मानव जाती के लिए और भावी पीढ़ी के लिए कल्याणकारी व्यवहारिक शिक्षा व ज्ञान का एकत्रिकरण किया जाये।

आप भी सादर आमंत्रित हैं।

इस ज्ञान-यज्ञ में हम सभी लोग अपने-अपने ज्ञान की आहुति डालेंगे।

यह ज्ञान अनुभवजन्य हो तो अति उत्तम।

अन्यथा इस ज्ञान का अनुसन्धान किया जाए। के डी परिवार की मदद से सफलता सम्बन्धी ज्ञान हासिल करें और ज्ञान को व्यवहार में लाने का हवन करें। सफल अनुभव की पूर्णाहुती के पश्चात इस ज्ञान रूपी प्रसाद को जन-जन में वितरित करें।

आईये, सफलता के लिए आवश्यक समस्त ज्ञान को एक ही जगह इकट्ठा करें।

अपने विचारों से इस "सफलता के ज्ञान अनुसन्धान यज्ञ" को सफल बनायें।

बताइये कि एक व्यक्ति को किस उम्र में किस तरह का ज्ञान मिलना चाहिए जिसे पा कर वह सफल, सुखी और समृद्ध हो सके।

यह भी बताइये कि एक व्यक्ति को सफल होने के लिए स्कूली शिक्षा के अलावा किस तरह के ज्ञान की आवश्यकता होगी।

अगर आपके पास सफलता के लिए आवश्यक ज्ञान है तो उसे यहाँ शेयर करें, ताकि वो अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचे।

अगर आपको जानकारी है कि सफलता के लिए किस तरह के ज्ञान की आवश्यकता है, तो अपनी जानकारी यहाँ शेयर करें, ताकि हम उस ज्ञान को यहाँ शामिल करें।

अगर आपको अपनी सफलता के लिए किसी विशेष ज्ञान की आवश्यकता है तो हमें बताइये। हम वो ज्ञान आपके लिए यहाँ के डी परिवार में उपलब्ध करवायेंगे।

हमें उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप हमेशा की तरह हमारे इस प्रयास को भी पसंद करेंगे और "सफलता के इस ज्ञान-अनुसन्धान यज्ञ" को सफल बनाने हेतू अपना सहयोग अवश्य डालेंगे।

Thursday, October 16, 2014

एक प्रेरणास्पद कहानी : पुल


बटाला से के डी परिवार की माननीय सदस्या गुरजीत कौर जी को धन्यवाद सहित
दो भाई साथ साथ खेती करते थे। मशीनों की भागीदारी और चीजों का व्यवसाय किया करते थे। चालीस साल के साथ के बाद एक छोटी सी ग़लतफहमी की वजह से उनमें पहली बार झगड़ा हो गया था झगड़ा दुश्मनी में बदल गया था।
एक सुबह एक बढ़ई बड़े भाई से काम मांगने आया. बड़े भाई ने कहा “हाँ ,मेरे पास तुम्हारे लिए काम हैं। उस तरफ देखो, वो मेरा पडोसी है, यूँ तो वो मेरा भाई है, पिछले हफ्ते तक हमारे खेतों के बीच घास का मैदान हुआ करता था पर मेरा भाई बुलडोजर ले आया और अब हमारे खेतों के बीच ये खाई खोद दी, जरुर उसने मुझे परेशान करने के लिए ये सब किया है अब मुझे उसे मजा चखाना है, तुम खेत के चारों तरफ बाड़ बना दो ताकि मुझे उसकी शक्ल भी ना देखनी पड़े."
“ठीक हैं”, बढ़ई ने कहा।
बड़े भाई ने बढ़ई को सारा सामान लाकर दे दिया और खुद शहर चला गया, शाम को लौटा तो बढ़ई का काम देखकर भौंचक्का रह गया, बाड़ की जगह वहा एक पुल था जो खाई को एक तरफ से दूसरी तरफ जोड़ता था. इससे पहले की बढ़ई कुछ कहता, उसका छोटा भाई आ गया।
छोटा भाई बोला “तुम कितने दरियादिल हो , मेरे इतने भला बुरा कहने के बाद भी तुमने हमारे बीच ये पुल बनाया", कहते कहते उसकी आँखे भर आईं और दोनों एक दूसरे के गले लग कर रोने लगे. जब दोनों भाई सम्भले तो देखा कि बढ़ई जा रहा है।
"रुको! मेरे पास तुम्हारे लिए और भी कई काम हैं", बड़ा भाई बोला।
"मुझे रुकना अच्छा लगता ,पर मुझे ऐसे कई पुल और बनाने हैं", बढ़ई मुस्कुराकर बोला और अपनी राह को चल दिया.
दिल से मुस्कुराने के लिए जीवन में पुल की जरुरत होती हैं खाई की नहीं। छोटी छोटी बातों पर अपनों से न रूठें।
"दीपावली आ रही है घरेलू रिश्तों के साथ साथ सभी दोस्ती के रिश्तों पर जमी धूल भी साफ कर लेना, खुशियाँ चार गुनी हो जाएंगी"
आने वाली दीपावली आप सभी के लिए खुशियाँ ले कर आए.

Wednesday, October 8, 2014

कहानी - एक समझौता - कल्पनाओं से परे


हिमांशु पुष्करणा को धन्यवाद सहित
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वो एक खेल का मैदान था।

8 लड़के दौड़ने के लिए ट्रैक पर एकदम तैयार खड़े थे।

आवाज़ गूंजी - "रेडी! स्टेडी! गो।"

पिस्टल की आवाज़ के साथ ही सब लडकों ने दौड़ना शुरू कर दिया।

अभी वो सब 10 से 15 कदम ही दौड़ पाए थे कि उनमें से 1 लड़का फिसला और गिर गया।

दर्द के कारण वो रोने लगा।

जब दूसरे 7 लडकों ने उसकी आवाज़ सुनी तो वे दौड़ते दौड़ते "रुक गये"।

एक क्षण के लिए वो रुके, इसके बाद वे मुड़े और उस गिर गए लड़के की ओर दौड़ पड़े।

उन सभी सातों लड़कों ने मिलकर उसे उठा लिया और उसे उठाये उठाये ही वो सब दौड़ की अंतिम रेखा तक पहुँचे।

लोग सन्न हो गये।

बहुत सी आँखों में आंसू थे।

ये घटना 2 वर्ष पहले पूना में घटी थी।

नैशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हैल्थ की ओर से इस दौड़ का आयोजन किया गया था।

सभी प्रतिभागी मानसिक तौर पर कमजोर थे।

उन्होंने क्या सिखाया?
टीमवर्क,
इंसानियत,
खेल की भावना,
प्रेम,
ध्यान,
और
समानता।

हम लोग निश्चित तौर पर ऐसा कभी नहीं कर सकते,

क्योंकि ........

हम दिमाग रखते हैं .......
हममें अहम् है ........
हममें दिखावा है .......

के डी परिवार की ओर से निवेदन - यदि इस घटना ने आपके दिल को छुआ हो, आपको जरा भी प्रभावित किया हो तो इसे अपने मित्रों के साथ जरुर शेअर करें।

Saturday, October 4, 2014

स्वच्छ भारत : एक अभियान


प्रधानमन्त्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 3 अक्तूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान का शुभारम्भ किया गया।
श्री मोदी जी के अनुसार ये अभियान राजनीती से नहीं बल्कि देश भक्ति से प्रेरित है।
प्रधानमन्त्री महोदय ने देश को साफ़ रखने में किसी भी तरह के पूर्व में किये कार्यों की प्रशंसा की और देश के प्रत्येक नागरिक को पूरे देश को स्वच्छ रखने के लिए प्रेरित किया।
मैं श्री मोदी जी के इस कार्य को देश भक्ति के साथ साथ मानवता से भी प्रेरित मानता हूँ।
माननीय मोदी जी ने कुछ सूत्र दिए हैं : अगला चित्र देखें


इन सूत्रों को पढ़ने के लिए दैनिक जागरण देखें।
पर क्या ये 10 सूत्रीय कार्यक्रम सफल हो पायेगा? जैसा पंजाब की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांत चावला जी का कहना है अगर वैसा हुआ तो सच में ये कार्यक्रम असफल हो जाएगा।


प्रो. लक्ष्मीकांत चावला जी का कहना है कि ये अभियान केवल फोटो खिंचवाने तक ही सीमित ना रह जाए। बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ वर्ष में एक दिन भी कोई सफाईकर्मी नहीं पहुँचता। ऐसे बहुत से स्थान हैं जहाँ चूहे और मच्छर भरे पड़े हैं, ऐसे स्थानों की भी सुध ली जाये।
एक सूत्र के डी परिवार की ओर से : हमें अपनी आदतों और व्यवहार में बहुत बड़ा परिवर्तन लाना होगा। साफ़ सफाई से सम्बन्धित आदतों में हमें बदलाव करना होगा।
हम फलों, मूंगफलियों के छिलके, टॉफ़ी - चिप्स - चाकलेट आदि के खाली पैकेट और खाली बोतलें हम जहाँ तहां फैंकने के आदी हैं। हमें ये आदत बदलनी होगी।
क्या हम अपने घर में भी ऐसा ही करते हैं?
क्या हम अपने घर में केला या मूंगफलियां खा कर छिलके ऐसे ही इधर उधर फेंकते हैं? अगर नहीं तो घर से बाहर होने पर हम ऐसा क्यों करते हैं? अगर हम अपने घर में कूड़ा फैलाना पसंद नहीं करते तो घर से बाहर कूड़ा क्यों फैलाते हैं?
प्रधानमन्त्री जी के इस "स्वच्छता अभियान" को हमारे और आपके सहयोग के बिना पूरा नहीं किया जा सकता।
मेरे ख्याल से श्री मोदी जी के इस कार्य को सभी ने पसंद किया होगा। पर क्या सभी आज से ही गंदगी फैलाना बंद कर देंगे? क्या ये उम्मीद की जा सकती है कि कल सुबह जब सडकों पर जायेंगे तो सडकें साफ़ मिलेंगी? क्या हम घर से बाहर भी घर की तरह ही साफ़ सफाई रखने में सहयोग देंगे?
अगर हाँ तो मेरा यकीन मानिए हम अपने देश को भी उतना ही खुबसूरत बना लेंगे जितने हम सब के घर हैं।
हममें से जो लोग बाहर देश जा के आते हैं वो बाहर के देशों की सफाई और सुन्दरता के गुण गाते हैं। आओ मिलकर अपने देश को इतना स्वच्छ और सुंदर बनायें कि बाहर देश से आये लोग हमारे गुण गायें।
इसके अलावा जिन क्षेत्रों में लोग गंदगी में रहते हैं उन स्थानों पर बार-2 जा कर उन लोगों को गंदगी को साफ करने और गंदगी ना फ़ैलाने के लिए प्रेरित किया जाये। उन्हें समझाया जाये कि अगर उनके क्षेत्र में सफाईकर्मी नहीं आता तो वे खुद सफाई करें। क्योंकि सफाईकर्मी के ना आने से नुकसान सफाईकर्मी का नहीं बल्कि लोगों का ही होता है।
के डी परिवार पिछले 8 वर्षों से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को स्वच्छ रहने की प्रेरणा दे रहा है। आप अपने क्षेत्र में ऐसे स्थानों की तलाश करें और वहां रहने वाले लोगों को सफाई हेतू प्रेरित करें।
आओ संकल्प लें, जैसा कि "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" की टीम ने कहा - "आज से ना तो खुद गन्दगी फैलायेंगे और ना ही किसी को फ़ैलाने देंगे"।
जय हिन्द! जय भारत!
शुभेच्छाओं के साथ के डी परिवार
(चित्र साभार दैनिक सवेरा)

Thursday, October 2, 2014

गाँधी जी के शिक्षा सम्बन्धी कुछ विचार


गाँधी जयंती की हार्दिक बधाई के साथ गाँधी जी के शिक्षा सम्बन्धी कुछ विचार गौर फरमाएं।



1) शिक्षा में हृदय की शिक्षा यानि चरित्र के विकास को पहला स्थान मिलना चाहिए।

2) चरित्र सफलता की बुनियाद है। अगर बुनियाद मजबूत हो तो अवसर मिलने पर दूसरी बातें किसी की मदद से या खुद भी सीखी जा सकती हैं।

3) शिक्षा के साथ विद्यार्थियों को चरित्र का ज्ञान तभी मिल सकता है जब शिक्षक स्वयं चरित्रवान होंगे।

4) साधारण चरित्र वाले शिक्षक के हाथ में कभी भी बच्चों को नहीं सौंपना चाहिये। शिक्षक में अक्षर ज्ञान भले ही थोड़ा हो पर उसमें चरित्र बल तो ज़रूर ही होना चाहिये।


मोहनदास करमचंद गाँधी, मेरे सत्य के साथ प्रयोग की कहानी पुस्तक से
द्वारा के डी'स विपिन कुमार शर्मा

काश मैं आजाद होता : देश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत एक भावुक कविता


लेखक कवि के बारे में -
इस कविता के लेखक श्री उमेश कुमार शर्मा हैं, जो अपनी रचनाओं में अपने नाम के साथ “रूप” लिखते हैं। उमेश जी गाजियाबाद में रहते हैं और नौकरी करते हैं।


उमेश जी में लेखन के साथ-2 गायन और तबला वादन का भी हुनर है।
उमेश जी की कविताओं में लोगों की भावनायें दिखती हैं। इनकी कविता पढ़-सुन कर ऐसा लगता है मानो कोई हमारे ही दिल की बात कह रहा हो।
ऐसी ही है उमेश जी की ये कविता - काश मैं आजाद होता।
उमेश जी के अनुसार - वैसे तो हमारा देश 1947 में आजाद हो गया था। लेकिन आज आजादी के 67 साल बाद भी देश के हालात को देख कर बिल्कुल भी नहीं लगता कि हम आजाद हैं।
देश की बुरे हालातों को अपनी कविता “काश मैं आजाद होता” में उमेश जी देश की ओर से कहते हैं किः

काश मैं आजाद होता
खुले रहते घर के दरवाजे, शीतल मंद पवन लहराती।
मेरी मां, बहन और बेटी, निर्भीक हो कहीं भी जाती।
लूट रेप का डर ना सताता।
काश मैं आजाद होता॥

बेईमानी का कागज और लालच का कलम ना होता।
(तो) अपनी काबिलियत के दम पर, दुनिया में परचम लहराता।
रिश्वत का चारा ना खिलाता।
काश मैं आजाद होता॥

देश में ना कोई दंगा होता।
किसी का ना कोई पंगा होता।
साम्प्रदायिकता खत्म कराता।
काश मैं आजाद होता॥

गैर मुल्क की हिम्मत देखो, रोज है हमको आँख दिखाता।
वोटों की राजनीति में, ध्यान किसी का उधर ना जाता।
अपना कश्मीर मैं अपना बनाता।
काश मैं आजाद होता॥

एक वर्ष में दो-दो बार जो, कन्या पूजन हैं करवाते।
कन्या के जन्म से पहले वो ही, अर्थी उसकी हैं सजवाते।
(कन्या के) भ्रूण हत्या पर (पूर्ण रूप से) रोक लगाता।
काश मैं आजाद होता॥

आजादी की वर्षगांठ पर, नेताजी झंडा फहराते।
कस्में वादे (चाहे) ना करते, पर देश पे अपने प्राण गंवाते।
ऐसे महान देश भक्त पर, कोटि-कोटि निज शीश गंवाता।
काश ........... ! काश मैं आजाद होता॥

“रूप” है मेरा प्यारा पर, भ्रष्टाचार की गर्दिश छाई है।
मेरे ही अपनों ने देखो, मुझमें आग लगाई है।
(काश आज भी) सोने की चिड़िया कहलाता।
काश मैं आजाद होता॥

प्रिय मित्रों, उमेश जी की ये पहली कविता हमने आपके सामने पेश की है। आशा है आपको पसंद आई होगी। शीघ्र ही अन्य कवितायें भी प्रस्तुत करेंगे।
कृपया अपने सुझावों, विचारों से उमेश जी और के. डी. परिवार की हिम्मत बढ़ायें।
और हां, कविता को अपने मित्रों के साथ शेअर करना ना भूलें।