हम भारतीय वाकई बहुत स्मार्ट हैं।
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हम खराब शिक्षा व्यवस्था की शिकायत तो करते हैं पर इसके सुधार के लिये कुछ नहीं करते।
हम शिक्षा की व्यर्थता को तो जानते हैं पर फिर भी बच्चों को इसी व्यर्थता में धकेलते हैं।
हम सड़क पर खुले मेनहॉल का ढक्कन देख कर नगर निगम और सरकार को तो कोसते हैं पर सही जगह सूचना/शिकायत नहीं देते।
हम धर्म स्थानों पर सेवा तो खूब करते हैं लेकिन हमारे जीवन में इंसानियत नाम की धार्मिकता बिलकुल नहीं है।
हम रास्ते में पड़े पत्थर को देखकर चिंतित तो होते हैं पर उसे एक किनारे करने की जहमत नहीं करते।
किसी दूसरे से छोटी सी गलती होने पर भी हम उसे माफ़ नहीं करते पर अपनी बड़ी से बड़ी गलती के लिये हम क्षमादान चाहते हैं।
किसी और के बच्चे के गुण हमें स्पष्ट दिखाई देते हैं लेकिन अपने परिवार में हमें सिर्फ दोष दिखाई देते हैं।
हम पूरा पूरा दिन मैच देखने के लिये तो समय निकाल लेते हैं लेकिन पुस्तकें पढ़ने का हमारे पास समय नहीं होता।
हम सोशल साइट्स पर तो घण्टों बिता देते हैं पर परिवार के लिये हमारे पास बिलकुल भी समय नहीं।
हम भारत को विश्व में प्रथम स्थान पर तो देखना चाहते हैं पर इसके लिये खुद कुछ नहीं करना चाहते।
हम जानते हैं कि बिना मेहनत किये कुछ नहीं मिलता पर फिर भी हम सरकारी नौकरी चाहते हैं।
हम सफल होना तो चाहते हैं लेकिन सफलता के लिये कुछ नहीं सीखते।
हम सभी अवसर की तलाश में रहते हैं लेकिन जब अवसर हमारे सामने आता है तो हम अवसर का लाभ उठाने के बजाये उस अवसर की कमियाँ निकलने में लग जाते हैं।
हम जानते हैं कि एकता में शक्ति है पर फिर भी हम अच्छे कामों के लिये संगठित नहीं होते।
हम जानते हैं कि हममें शक्तियां हैं पर फिर भी हम हमेशा अपनी कमज़ोरी का रोना रोते रहते हैं।
हम अपने आने वाले कल को तो सुधारना चाहते हैं पर हम हमेशा बीत चुके कल में रहते हैं और आज कुछ नहीं करते।
हम दोहरी मानसिकता के शिकार हैं और ये बात जानते भी हैं तो भी हम इससे बाहर नहीं निकलना चाहते।
हम ये सभी (ऊपर बताई गई) बातें काफी समय से जानते हैं पर फिर भी हम इन्हें छोड़ने या बदलने के लिये तैयार नहीं होते।
इससे पता चलता है कि वाकई हम भारतीय बहुत स्मार्ट हैं।
विपिन जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुती... हम भारतीय ऐसे ही है. हम ज्यादातर दुसरों से तो ढेर सारी अपेक्षाएं करते है लेकिन खुद सुधरना ही नही चाहते.
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