सम्पादिका की टिप्पणी
सुरेन्द्र मोहन पाठक जी भारत के एक जाने-माने सफल नावल लेखक हैं। आज उनके बहुत से चाहने वाले पाठक हैं। पाठक जी के नावेल्स में एक खास बात होती है, वे अपनी लेखनी के माध्यम से बहुत कुछ ऐसा कह देते हैं जो हमारे लिए बहुत गहरी सीख बन जाता है।
पाठक जी के नावेल्स से संग्रह की गइ कुछ ऐसी ही सीखों को इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं। आशा है आपको हमारा ये प्रयास अवश्य पसंद आयेगा। कृपया इस पोस्ट को अपने मित्रों के साथ शेयर करें। अपने सुझावों व विचारों से हमारा मार्गदर्शन अवश्य करें।
अरूणिमा, सम्पादिका
पाठक जी से सीखा

कोई काम नामुमकिन नहीं होता। मुश्किल होता है, ज्यादा मुश्किल होता है लेकिन नामुमकिन नहीं होता।
डबल गेम, पेज 34
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जिंदगी को एक सिग्रेट की तरह एंजाय करो, वरना सुलग तो रही ही है, एक दिन वैसे ही खत्म हो जानी है।
चोरों की बारात
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गुनाह को आंखों के सामने होता देख कर खामोश रहना गुनहगार की मदद करना है।
डबल गेम, बैक कवर
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खतरों से डरने से क्या होता है? जो शख्स खतरों से डरता है, उसके लिए तो जिन्दगी में खतरे ही खतरे हैं।
पूरे चान्द की रात, पृष्ठ 187
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कोई अनुष्ठान, कोई यज्ञ, कोई जप-तप प्रारब्ध को नहीं बदल सकता। फेट इज इनएवीटेबल। नियति अटल है।
पूरे चान्द की रात, पृष्ठ 22
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दुश्मन को निन्यानवें बार फेल होने पर भी सिर्फ एक बार सफल होना है।
पलटवार
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कुत्ते और आदमी में बुनियादी फर्क ये है कि तुम किसी भूखे कुत्ते के लिये दयाभाव दिखाओ और उसे रोटी खिला कर मरने से बचाओ तो वो तुम्हें कभी नहीं काटता।
पूरे चान्द की रात, पृष्ठ 48
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गलती किसी से भी हो सकती है। गलती करना नादानी है। गलती करके उसको सुधारने की कोशिश ना करना ज्यादा बड़ी नादानी है।
सीक्रेट एजेंट, पृष्ठ 279
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जीवित रहना एक महान कर्तव्य है| जीवन जैसा भी हो उसे सहन करना चाहिए|
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सच का गला झूठ उतना नहीं घोंटता जितना कि खामोशी घोंटती है।
डबल गेम, पृष्ठ 112
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कुछ न कहने से भी छिन जाता है एजाजे सुकून! जुल्म सहने से जालिम की मदद होती है।
हार-जीत
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लाख जौहर हों आदमी में, आदमियत नहीं तो कुछ भी नहीं।
कोलाबा कान्सपिरेसी, पृष्ठ 85
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सफलतायें दोस्त बनाती है, विफलतायें उन्हें आजमाती है।
कोलाबा कान्सपिरेसी, पृष्ठ 52
Waaaaah.......
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